जी हाँ कहाँ गयी हमारे हिंदुस्तान की गंगा जमुनी तहजीब ? शायद किसी को भी इस सवाल का जवाब मालूम नहीं है और शायद जानना भी नहीं चाहते क्यूंकी आज लोगो के मन मे इतनी नफरत और घृणा भर गयी है दूसरे धर्मो के प्रति की रोज दंगे होना आम बात है | ये दंगे बहुत मामूली बातों पर हो जाते है | इस धार्मिक अशहिष्णुता का फायदा राजनीतिक दलो को होता है और तब शुरू होता है हिन्दू मुस्लिम तुष्टीकरण | जिसका बिलकुल ताज़ा उदाहरण है उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर मे हुआ 2013 का दंगा जो बिलकुल छोटी सी बात पर हुआ था | बात ये थी की एक हिन्दू लड़की को दो मुस्लिम भाई रोज़ छेड़ते थे एक दिन आजिज़ आकार उसने अपने भाइयों से इस बात की शिकायत की तो लड़की के दो भाई उनसे बात करने पहुचे लेकिन वहा मारपीट हो गयी और उन दो हिन्दू लड़को को पीट कर मार डाला गया | इसके बाद वहा इलाके के नेता पहुचे फिर सांसद , विधायक आदि | दोनों तरफ क लोगो ने थाने मे एफ।आई।आर दायर की और उन दो भाइयों की हत्या मे शामिल दो मुस्लिम युवको को गिरफ्तार कर लिया गया और बाद मे छोड़ दिया गया लेकिन उस समय के थानेदार ने एक चैनल के स्टिंग ऑपरेशन मे ये भी कबूला की उनको छोडने का आदेश ऊपर से आया था | उन युवको के छूटने के बाद माहौल बिगड़ने लगा लेकिन प्रशासन और पुलिस ने लगातार एक ही पक्ष का समर्थन किया | इधर सरकार ने लगातार वहा के डीएम और एसएसपी को बदलना शुरू किया कुल 3 डीएम और 4 एसएसपी इस बीच बदले गए जब तक कोई अधिकारी माहौल समझने की कोशिश करता उसका तबादला हो जाता | ये सर्वविदित है की लगातार एक पक्ष का समर्थन और एक पक्ष की अनदेखी इस दंगे का कारण बनी | धीरे धीरे वहा की स्थिति इतनी विस्फोटक हो गयी की सितंबर के पहले हफ्ते मे वहा दंगा हो गया और 60 लोग मारे गए गाँव के गाँव तबाह हो गए और हजारो लोग शरणार्थी शिविरो मे आ कर रहने लगे जिनको दिसंबर मे सरकार ने जबरन हटा दिया ताकि लोग वापस जा सके |
ये तो सिर्फ एक घटना है इसी दिवाली मे दिल्ली के त्रिलोकपुरी इलाके मे दंगा हुआ “ अभी इसी साल बरेली मे सांप्रदायिक तनाव हुआ , पिछले साल राम नवमी के दिन राम बारात निकालने के दौरान उत्तर प्रदेश के कानपुर मे सांप्रदायिक माहौल खराब हुआ , कल बिहार के मुजजफरपुर मे हुई सांप्रदायिक हिंसा मे 3 लोग मारे गए |2001 ,1992, 1988 , 1984 के दंगे तो हिंदुस्तान के इतिहास का वो स्याह पहलू हैं जिनहे ना खोलना ही मुनासिब होगा |
अगर हम आंकड़ो पर नज़र डाले तो 2014 मे उत्तर प्रदेश मे 247 सांप्रदायिक झड़पे हुई जिनमे 140 लोग मारे गए 10000 घायल हुए और 1 लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हुए | और अगर इन घटनाओ के घटने का पैटर्न देखे तो आप ये पाएंगे की इनमे ज़्यादातर घटनाए तब हुई जब देश मे चुनावी सरगरमिया तेज़ थी और चुनावो का समय नजदीक आ रहा था मुजफ्फरनगर का दंगा 2013 मे हुआ था और 2014 मे लोक सभा चुनाव थे | इन चुनावो मे बीजेपी के उम्मीदवार संजीव बालियान भारी मतो से जीते | इन पर भी दंगे भड़काने का आरोप था | कानपुर मे सांप्रदायिक हिंसा तब हुई जब चुनाव चल रहे थे और इसका असर ये हुआ की कानपुर मे मुरली मनोहर जोशी जो बीजेपी के उम्मीदवार थे उन्होने पिछले 15 सालो से सांसद और केन्द्रीय कोयला मंत्री श्री प्रकाश जायसवाल कों 1 लाख वोटो से हरा दिया | त्रिलोकपुरी दंगो के वक़्त झारखंड और जम्मू कश्मीर के चुनाव होने थे और इसी साल हो रहे बिहार चुनावो से पहले मुजफ्फरपुर कादंगा इस बात की पुष्टि भी करता है की ये दंगे खुद नही होते , करवाए जाते हैं गढ़े जाते है ताकि वोटो का ध्रुवीकरण किया जा सके |उसे एक लहर बनाया जा सके |
भारत एक ऐसा देश है जहां धर्म और जाति का राजनीति मे गहरा दखल रहता है और ये चिंताजनक होने के साथ साथ विस्फोटक मिश्रण है | भारत की मूल भावना सर्व धर्म समभाव की है । भारत एक मिश्रित आबादी का देश है विभिन धर्मो , जातियो, समप्रदायों के लोग यहा रहते है | भारत अपने इसी सर्व धर्म समभाव की भावना के कारण ही विश्व प्रसिद्ध है | हिन्दू , मुस्लिम, सिख ,ईसाई सब आपस मे भाई भाई हर भारतीय का नारा होना चाहिए | हिन्दू और मुस्लिम दोनों ने कंधे से कंधा मिलाकर कर इस देश की आज़ादी मे अपना योगदान दिया | इस हिन्दू मुस्लिम एकता के कारण ही डर कर अंग्रेज़ो ने इस देश को बाँट दिया लेकिन तब भी इस देश के सर्व पंथ संभाव की भावना जीवित रही | यही भावना गंगा जमुनी तहज़ीब है | दो अलग नदिया जिस तरह से मिलकर संगम जैसे पवित्र स्थान की रचना करती हैं उसी प्रकार से हिन्दू और मुस्लिम आपस मे मिलकर हिंदुस्तान का निर्माण करते हैं | जितना योगदान इस देश को आगे ले जाने मे हिन्दू का है उतना ही योगदान मुस्लिम का भी है| धर्म और राजनीति का मिश्रण बिलकुल भी नही होना चाहिए |धर्म और राजनीति का आपस मे कोई संबंध नहीं और ये भी सत्य है की एक राज नेता का कोई धर्म नहीं होता | ये सोचना की ये उस धर्म का है तो उसका साथ देगा और इसके खिलाफ होगा ये मूर्खता है| एक नेता अपने फायदे को देख कर बदल जाता है |
धार्मिक गुरुओ और मौलानाओ को भी ये बात ध्यान मे रखनी होगी और बार बार अपने अनुयाइयों को किसी के पक्ष वोट देने की अपील को बंद करना होगा चाहे वो शाही इमाम हो, चाहे शंकराचार्य हो, चाहे रामदेव हो या श्री श्री रविशंकर | इनका काम लोगो को धर्म की शिक्षा देना है उन्हे ईमान के रास्ते मे भेजना है बाकी वोट तो वो खुद ही दे देगा उसकी चिंता आपको करर्ने की आवश्यकता नहीं |
हम भारतियों को इन नेताओ और राजनीतिकदलो की चाल और साज़िश को समझना होगा बात बात पर लड़ना बंद करना होगा क्यूकी इन झड़पो और तनावों से हमे कुछ नहीं मिलता कोई फायदा नहीं होता नुकसान ही होता है फ़ायदा तो सिर्फ नेताओ का होता है क्यूकी लोगो की भावनाए वोट मे बदल जाती हैं | हम भारतीय एक हैं अनेकता मे एकता हमारी पहचान है | भारत की इस स्थिति मे मुझे राहत इंदौरी साहब का एक शेर याद आता है –
“अगर खिलाफ हैं होने दो , अगर खिलाफ हैं होने दो,
जान थोड़ी है | ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है ,
लगेगी आग तो आएंगे घर कई जद मे,
यहा पर सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है |
जो आज साहिबे मसनद हैं , जो आज साहिबे मसनद हैं,
कल नहीं होंगे | किराये दार हैं, ज्याती मकान थोड़ी है |”
इसे सभी कों याद रखना होगा दंगे फसाद देश की संप्रभुता , एकता, और अखंडता पर सवालिया निशान लगाते हैं| जागिए , देखिये और समझिए बाकी जो है सो हइए है | जय हिन्द , जय भारत
गन्गा जमुनेी तहजेीब् सिर्फ इलहाबाद तक् है इस्के बाद सिर्फ गन्गा हि कहलायि जति है !
अगर्५०% से ज्यदा वोत् पाने वाले को हि विजयि घोशित किये जाने का नियम बन जये तो नेता दन्गो का लाभ नहि ले पायेन्गे क्योकि ५०% से ज्यादा वोत जन्ता को जोद कर मिल पायेन्गे !
गंगा -जमुनी तहज़ीब केवल इलाहाबाद नहीं पूरे देश के लिए है, हिन्दू और मुस्लिम दोनों हिंदुस्तान के मजबूत कंधे है और मेरा यह कहना है कि जिस तरह दो नदियां मिलकर संगम बनाती हैं उसी तरह सफल हिंदुस्तान के लिए दोनों की आवश्यकता है। 50 % वालीसीमा आप तबतक नहीं कर सकतेजब तक 90-10 0 % वोटिंग ना हो
वोत का प्रतिशत् कुच् भेी हो ! ५०% से ज्यादा वोत पाना लोक्तन्त्र के लिये अनिवार्य् होना चहिये
इलाहाबाद के बाद सिर्फ गन्गा रहति है इस्लिये तहजिब का अल्गाव् बन्द कर्के सिर्फ सत्य को स्वेीकारा जाना चाहिये ! सत्य को समज्ह्ने के लिये, खोज के लिये कोइ अग्रह पहले से तय नहेी होना चाहिये
जब तक शत प्रतिशत वोटिंग नहीं हो सकती तब तक 50% का सीमा व्यर्थ है क्यूकी जब 60% कुल वोटिंग होगी तब कैसे कोई 50% वोट पाएगा | गंगा जामुनी तहज़ीब का मतलब है हिन्दू मुस्लिम एकता से भाई तहज़ीब और सभ्यता मे अंतर है ham यहा तहज़ीब की बात कर रहे है
ganga jamuni tahzeeb sirf ab kitabo me hai ya mushaira aur kavi sammmelan tak hi simit hai . haqeeqat se koi waasta nahi hai
हकीकत से वास्ता है, इसी खत्म होती तहज़ीब को जिंदा रखने की जरूरत है क्योंकि जब तक यह है तब तक हिंदुस्तान है
हिन्दुस्तान का नाम सिर्फ् भारत् होना चहिय न कि ईदेीया आदि भेी ! एक हजर साल पहले कौन सेी सन्स्क्रिति थेी ? वहि आज भि सुधरत्मक क्यो न हो /
Mr.Harsh aapne kaha choti se baat kabhi apni behn ko kinhi soocha hai ager timhari behn ke saath a is a ho to kya yoga ? Tum yahan gaal bajana chodkar wahi karoge Jo in do bhaio ne kea ……Ganga jamuni tahjeeb kabhi thi hi nahi is desh mai ager hoti to na hajarion mandir tode jaate na Pakistan banta aap jaise loog surf gaal bajate hai kuki aap log apni kayarta ko isle peeche chupate hai
महोदय इस मामले मे लड़की के भाई निर्दोष थे उन्हे तो मारा गया देश मे हर जगह ऐसा रोज़ होता है लेकिन इसे टूल दिया गया | मई सीधे सीधे आरोप लगाने से बच रहा था लेकिन शायद आपको समझाने के लिए मुझे कुछ खुलना होगा | इस पूरी घटना मे दोष उत्तर प्रदेश सरकार और प्रशासन का था | समाजवादी पार्टी के वोट बैंक हैं मुस्लिम और अन्य पिछड़े वर्ग चुनावो के मद्देनजर सरकार तुष्टीकरण की नीति अपना रही थी | और आपको बता दूँ की दंगे का फाइदा उन दोषियो को ही हुआ जिनहोने उन निर्दोषों को मारा था | अगर दंगा ना होता तो उन्हे सज़ा होती | भाई बहन की इज्ज़त इज्ज़त होती है चाहे किसी की भी हो | दंगा किसी भी चीज़ का समाधान नहीं होता इसे भड़काया बीजेपी और सपा ने है ॥और बाकी समझदार के लिए इशारा काफी है
ख़बर मिल रही है की क़स्बा जो की रवीश कुमार जी की वेबसाईट है को किसी ने हैक करके सारे लेख मिटा दिए हैं. फिलहाल http://www.naisadak.org का लिंक खुल नहीं रहा है. इस बाबत उन्होंने जानकारी साझा की है फेसबुक के क़स्बा पेज पर .
एक बेहद घटिया हरकत है. वेबसाईट या लेख मिटा देने से विचार नहीं मिटाए जाते.
ये एक बेहद शर्मनाक हरकर है क्योकि किसी का मूह बंद करने से उसकी आवाज़ बेशक बंद कर दी जाये मगर उसके विचार पहले से भी तेज रफ्तार और जयादा लोगो तक पहुचेंगे…..रवीश कुमार जी का नेताओ की भीड़ के बीच बेहद कुल स्टाइल मे डिस्कसन करना हमे काफी पसंद है और वे उन गिने चुने मेडियाकर्मियो मे से है जो दूरदराज के गांवो , कस्बो तक भी उसी मेहनत से भरपूर कवरेज करते है जह कै पत्र्कार आज तक गये भेी नहेी होन्गे!!…..
पूर्ण विश्वास है कि उनके लेख दोबारा सामने आयेंगे !!
अफजल सर ये उन भगतो का किया है जिनहे आज सपने मे भी हिन्दू धर्म खतरे मे नज़र आता है | ये ब्लॉग हेक कर उसकी रक्षा करेंगे
यू ही उत्सुकतावास जानना चाहते है कि आखिर देश के कौन से हिस्से मे तहजीब बची हुई है….गंगा जमना का नाम जोड़ने से तहजीब खुद-ब-खुद पैदा नही हो जायेगीः)
अगर गंगा-जमुनी तहजीब का इशारा हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे से है तो यह प्रतिशत है तो 100% म़गर इसमे दोनो का योगदान काफी अलग-2 है और मुस्लिमो को इससे जारी रखने के लिये अपना योगदान काफी बढाने की जरूरत है और हिनदुओ को अपना वर्तमान योगदान बरकरार रखने कि जरुरत हे!!….
दोनो ही पक्षो को आपस मे एक दूसरे पर शक पैदा करने वाली बातो से बचना चाहिये क्योकि जब सारी जिंदगी एक साथ एक ही जमीन पर इसी देश मे रहना है तो पाकिस्तानी दगाबाजो और अरबी आतंकियो के लिये अपना सुख चैन खत्म करने के दरवाजे खोलने की गलती क्यो करना ??
आज भी यह तहज़ीब है हर जगह है बस उसे देखने की जरूरत है, हिन्दू मुस्लिम नेताओं की वजह से लडते ह। दोनों को आगे कदमबढाने की जरूरत ह , मैं इस बात से पूरी तरह से सहमत हूँ कि दोनों पक्षों को आपस में शक पैदा करने वाली बातें से बचने की जरूरत है और इस तहज़ीब को फैलाने की जरूरत है
हर्ष भाई पता नहीं क्यों आपकी जो दो लेखेँ मैंने इस वेबसाइट पर पढ़ी उन दोनों में से मुझे थोड़ी सी दुर्भावना की बू आई.
कश्मीर पर जो लेख आपने लिखी उस में आपने भारत, भारत सरकार और भारतीय सेना को सीधे सीधे और पूर्णतः जिम्मेदार ठहरा दिया. ये सिक्के का बस एक पहलु होना चाहिए था पर आपने इसे ही पूरा सिक्का बना दिया.
आपको पता नहीं किस बात का डर या कुछ और था की आपने हरी सिंह को कश्मीर के हालात के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया जबकि अगर असल जिम्मेदार कोई था तो वो अब्दुल्लाह था.
अब इस लेख में आप किसी एक या दो पार्टी को किसी एक या दो दंगों के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, आपने भी बाकि मीडिया की तरह आसाम दंगो की और से मुह क्यों फेर लिया.?
खैर छोड़िये, मैं सीधा सीधा ये करना चाहता हूँ की सब कुछ राजनीती या राजनीती की ही वजह से नहीं है. राजनीतिज्ञ उसी मुद्दे को उठाते या लपकते हैं जिस में उन्हें किसी वर्ग या समुदाय या जनसमूह के समर्थन की सम्भावना या उम्मीद हो. ये गंगा जमुनी तहजीब अब बस वहीँ पर रह गयी है जहाँ या तो काफी पढ़े लिखे लोग है (आधुनिक शिक्षा वाले शरत भाई, सिकंदर और अफजल भाई की तरह न की वासी, वहाब चिस्ती और हन्नान अंसारी की तरह) या फिर जो बिलकुल ही जंगली हैं और मुख्या धरा वाले समाज से काफी दूर हैं. बाकि जगहों पर या तो ये तहजीब है ही नहीं या है भी तो बस सतही तौर पर, नफरत और साम्प्रदायिकता के बारूद पर.
तेजस भाई आपको मै सबसे पहले धन्यवाद देना चाहूँगा की आप ने मेरे लेखो को पढ़ा | देखिये इन लेखो को लिखने मे मेरी कोई दुर्भावना नहीं है कश्मीर के मुद्दे पर अगर आप लेख ध्यान से पढ़ेंगे तो पाएंगे की मैंने कश्मीर के लिए भारत भारत सरकार और सेना को दोषी बिलकुल भी नहीं तहराया उसके लिए मैंने पाकिस्तान को दोषी बताया है | मेरा लेख कश्मीर मे सेना द्वारा किए गए मनवाधिकारों के हनन पर है | सेना और उगरवाददियों मे अंतर होता है उन्हे मवाधिकार नही सीखा सकते वो जानवर हैं उन्हे मारना होगा लेकिन इस बात का भी ध्यान रखना होगा की बेकसूर ना मारे जाए | और भाई असम का मुद्दा बिलकुल अलग है | वहा के मूल निवासी अपनी लड़ाई बांग्लादेश से आए मुसलमानो से लड़ रहे जिनमे कई मुस्लिम भी शामिल हैं जो भारतीय मूल के है | दिल्ली , बिहार,उत्तर प्रदेश की स्थिति इससे काफी अलग है यहा दंगो का इस्तेमाल वोटो के ध्रुवीकरण के लिए होता है |