अफ़ज़ल ख़ान
हिन्दुस्तान मे हमेशा मंदिर विध्वंश और लुट के लिये और हिन्दुओ के दयनीय हालत के लिये मुस्लिम शासको को जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है. मुस्लिम शासको के जुल्म को इस तरह बताया जाता है के इस से बड़ा जुल्म दुनिया मे कही नही हुआ है. हम सभी जानते है के जनता के बिना सहयोग से कोई हुकूमत कर ही नही सकता. अगर मुस्लिम शासक इतने क्रूर और जालिम होते तो 1000 साल तक हुकूमत नही करते. जैसा के हम सभी जानते है के अंग्रेज़ो ने अपने हुकूमत काल मे बांटो और हुकूमत करो की पॉलिसी अपनाते हुए उन्हो ने हिन्दू और मुसलमान के बीच मतभेद पैदा करने के लिये बहुत से क़दम उठाये उस मे से इतिहास को बदलना एक कदम था, और मुस्लिम शासक को बदनाम कर हिन्दू मुसलमान को आपस मे लड़ाना था. हुकूमत किसी की भी हो हर बादशाह सिर्फ अपना लभ देखता है और गद्दी बचने के लिये कुछ भी करता है.
मुसलमानो पे मंदिर तोड़ने और लूटने का इल्जाम लगाया जाता है,पर ए कहना के मंदिर को सिर्फ धार्मिक करण से तोडा गया कहना गलत हो गा. मे इंकार नही करता के मंदिर तोड़ने मे धार्मिक करण नही है मगर उस से भी ज्यादा मंदिर मे अकूत धन- संपत्ती इस का मुख्य कारण है. उस समय भारत के मंदिरो मे अपार धन-संपत्ती होती थी बल्के यूं काहे के उस समय मंदिरो के पुरोहित या ब्राह्मण शक्तिशाली होते थे , हिन्दू राजा और महाराजा को भी इन के अधीन ही रहना पड़ता था. उन्हे मंदिरो को दान देना पड़ता था और साथ ही जनता को भी मंदिरो मे चडवा करना पड़ता था.आप अभी देखिये के केरला के श्री पद्मणेश्वर मंदिर से 120000 कारोड का धन और संपत्ती मिली है. हम सभी जानते है के भारत के मंदिरो मे कितने संपत्ती है. भारत पे जो इतने आक्रमण हुए उस का मुख्य करण ए मंदिर ही थे. जैसा कहा जाता है के महमूद ग़ज़नवी ने 17 आक्रमण किये तो आप तो बताता चालू के ग़ज़नवी भारत मे इस्लाम फैलाने या प्रचार करने नही आया था, वो यहा सिर्फ दौलत के लालच मे आता था और मंदिरो को लुट कर चला जाता था, आप को ए भी मालूम होना चाहिये के 2 बार भारत से बुरी तरह प्रराजय भी हो कर गया है.वो छोटे-छोटे मंदिरो को लूटता भी नही था सिर्फ बड़े मंदिरो को निशाना बनाता था. अगर उस का मक़सद मंदिर तोड़ना होता या इस्लाम फैलाना होता तो यहा रुकता.
मे इस लेख मे ए बताना चाहता हु के मंदिरो को सिर्फ मुसलमानो ने ही नही बल्के हिन्दू राजाओ ने भी बहुत से मंदिर लुटे व तोड़े. 642 मे पल्लव राजा नरसिंह वेर्मन ने चालुक्यो की राजधानी वातापि मे गणेश की मंदिर को लुटा और उस के बाद तोड दिया. आठवी सदी मे बंगाली सैनिको ने विष्णु मंदिर को तोडा. 9 वी सदी मे पॅंडियीयन राजा सरीमारा सरीवल्लभ ने लंका पर आकार्मण कर वहा सभी मंदिरो को नष्ट कर दिया. 11 वी सदी मे चोला राजा ने अपने पड़ोसी चालुक्या, कालिंग,और पाला राजाओ से मूर्तिया छीन कर ला के अपने राजधानी मे स्तपित किया. 11 वी सदी के मध्य मे राजाधिराजा ने चालुक्या को हराया और शाही मंदिरो को लुट कर विनाश कर दिया. 10 वी शताब्दीं मे राष्ट्रकूट राजा इंद्रा-3 ने जमुना नदी के पस कल्पा मे कलाप्रिया का मंदिर को नष्ट कर दिया.
कश्मीर के लोहारा राजवंश का आखिरी राजा हर्षा ( 1089-1101) काल मे उस ने कश्मीर के सभी मंदिरो को नष्ट करने और लुट लेने का हुक्म दिया था. बतया जाता है के उस समय सभी मंदिरो को लुट कर मंदिरो के मूर्ति जो गोल्ड के थे उसे पिघला कर पूरी दौलत उस ने अपने पस रख लि थी. मारेटो ने जब टीपू सुल्तान पे हमला किया तो श्रिगॅपॅटनम के मंदिर को भी तोड दिया. पुष्पमित्र जो शुंग शासक और वैदिक धर्म का शंस्थापक था. गद्दी पे बैठते ही उस ने सभी बौध मंदिरो को तोड़ने का आदेश दे दिया. उस ने ए भी एलान कर दिया के जो भी एक बौध बिक्षू का सिर् काट कर लाये गेया उसे एक सोने का सिक्का दिया जाये गा. लाखो बौध बिक्षूवो का को मार दिया गया.पुष्पमित्र ने उस पेड़ को भी काट दिया जिस के नीचे महात्मा बौध को ज्ञान प्राप्त हुआ था. बौध बिक्षू अपना जान बचा कर मुल्क से प्लयन करने लगे और वी जापान,थाइलॅंड,सिंगापुर की तरफ भागे. इतिहासकारो का कहना है के लगभग बौधो का खात्मा ही हो गया था.
जैसा कहा जाता है के मुस्लिम हुक्मराणो के दौर मे हिन्दुओ की हालत दयनीय थी तो वी क्यो भूल जाते है के पंजाब, मराठा, जाट के हुकूमत मे मुसलमानो की हालत भी बहुत खराब थी. इस समस्या पर मे जल्द ही अलग से एक लेख लिखु गा. कुछ दोस्तो का कहना है के हिन्दुओ ने मस्जिद को नही लुटा , आप को मालूम होना चाहिये के दुनिया के किसी भी मस्जिद मे 1 रुपया नही होता, सिर्फ नमाज़ पड़ने के लिये चटाई होती है. मंदिर की तरफ आकारमन्कारी सिर्फ दौलत के लिये आकर्षित होते थे. उपेर कुछ मिसाल से साबित होता है के हिन्दू राजाओ ने भी दौलत के लिये मंदिर को लुटा. आज अगर केरला के मंदिर का दौलत जो 12000-30000 करोड़ से अधिक है अगर सरकार अपने अधीन कर लेती है तो उसे आप क्या कहे गे.इसी क्र्म मे हम बाबरी मस्जिद विध्वंस को भी नही भूल सकते है.
106 himanshu himapriy001@gmail.com अफजल साहब इतिहास के बारे में लिखें तो पहले या तो दो चार किताबें पढ़ लें या कुछ जानकारों की राय ले लें बेहतर रहेगा..पहली बात तराईन के युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद भारत में इस्लामी शासन की शुरूआत मानी जाती है 1206 में गुलाम वंश से विधिवत शुरुआत और दिल्ली पर हुकूमत मुगलों के पतन के साथ ही खत्म हो गई यानि 1764 में बक्सर की लड़ाई में मुगल शासक शाह आलम की हार के साथ…1000 साल कहां से हुआ..??? चोल चालुक्य और पाड्यों के संदर्भ में आपके विवरण ऐतिहासिक दृष्टि से विवादित माने जाते हैं पुष्यमित्र शुंग की जहां तक बात है इस मगध शासक को बौद्ध धर्म के खिलाफ माना जरूर जाता है लेकिन उसके संदर्भ में आपका विवरण या तो कपोल कल्पित है या दुराग्रह से प्रेरित है क्योंकि पुष्यमित्र शुंग ने ही सांची के स्तूप की सुरक्षा के लिए परकोटे का निर्माण कराया था और ये ऐतिहासिक प्रमाण है..अंग्रेजों को कोसना सही है उन्होंने यकीनन फूट डाल की कोशिश की चाहे दोहरे मताधिकार का अधिकार देकर या इतिहास के साथ छेड़-छाड़ कर। लेकिन फिलहाल सबसे जरूरी बात किसने इतिहास में क्या किया इस बात को लेकर अपना आज मत बिगाड़िए.. इसी हमारे तुम्हारे नें 1947 में भारत तोड़ा और पाकिस्तान जैसा पड़ोसी दिया.उम्मीद है आप इशारा समझ गए होंगे
himanshu साहब सही जवाब दिया आपने ………………………….. Thanks………………
आपके वेबसाइट में पोस्ट के प्रकाशित होने का दिन नही लिखा होता है |पता नहीं चल पाता कि कौन सी पोस्ट कितनी नयी-पुरानी है |
जनाब अफ़ज़ल साहब समझ नहीं आता आपने यह ब्लॉग लिखने की ज़हमत ही क्यों उठाई अगर मंदिरों के सोने की वजह से मंदिर शहीद कर दिये जाये तो फिर क्या ऐसा करने में कोई बुराई नहीं ? अगर हिन्दू ने कोई गलत काम किया तो उसी जुर्म केलिये दूसरे धर्म के लोगों को लाइसेंस मिल गया समझो लगता है आप यही साबित करना चाहते है लेकिन आप की साफगोई की तारीफ करनी पड़ेगी, मैं आप को बिन मांगी सलाह देना चाहूंगा आप मज़हबी उनवानो के तहत ब्लॉगिंग न करें बल्कि सामान्य नुक़्तों पर गंभीरता से लिखें तो और अच्छा और बेहतर होगा.
सच को रूबरू कराता एक लेख और जैसा की expected था बहुतों ने आप की हौसलाशिकनी की कोशिश की लेकिन उनको मुनासिब जवाब भी दिये गये, ज़ाहिर सी बात है वो लोग तिलमिलाये बैठे हैं और आप के अगले लेख मे और ज़ोरदार हमला करें गे लेकिन आपको हिम्मत हारने की ज़रूरत नहीं ,आप ऐसे ही लिखते रहिये ,इधर कुछ बहुत अच्छे मुस्लिम ब्लॉगर सामने आये हैं जिनकी वजह से काफी इस्लाम और मुसलमानो के बारे मे काफी गलतफहमिया दूर हुई हैं इनकी हौसला आफज़ाई की ज़रूरत है ,कुछ फटीचर किस्म के लोग हमेशा एक ही राग अलापते रहते हैं उन पर ध्यान देने की ज़रूरत नहीं है उनको समझाया नहीं जा सकता ,वो नासमझ लोग हैं उनकी रग रग मे एक धर्म विशेस के खिलाफ ज़हर घोल दिया गया है जिसे उगलने के लिये मजबूर हैं उनको उनके हाल पर छोड़ दीजिये,,,बहरहाल लेख अच्छा है औरभी लिखते रहें
अफ़ज़ल भाई और पाठको हिन्दू कट्टरपन्ति किस कदर घिनोने होते है इसी भी एक मिसाल देखिये की चलिये मारकाट हिंसा वगरह छोड़ दीजिये यही देख लीजिये की इन लोगो ने नेट पर नवभारत ब्लॉग पर यहा वहा केजरीवाल के किस खिलाफ किस कदर ज़हर उगला इन्हे ज़रा भी सेन्स नही की केजरीवाल ने जो जो जो भी किया आखिरकार भला ही किया यहा तक की उन्होने कॉंग्रेस्स बी जे पी का भी भला ही किया अगर आप एक बड़ी पॉलिटिकल पॉवर बन गयी तो सारी दुनिया मे भारत के लोकतंत्र की धाक जम जायेगी दुनिया मे कही भी ‘ 3 पार्टिया ‘ नही है साथ मे वांम दलो भी केजरीइफ़्फेट मे आ गये इनमे भी नये हरकिशन सिंह सुरजीत और इंदरजीत आ गये तो सुभानल्लाह सुभानल्लाह 4 बड़ी पार्टिया ( असली पूरे देश मे ) हो जायेगी कमाल हो जायेगा रवीश कुमार ने सही लिखा है ‘ अरविंद ने बड़ी संख्या में युवाओं को राजनीति से उन पैमानों पर उम्मीद करने का सपना दिखाया जो शायद पुराने स्थापित दलों में संभव नहीं है। ये राजनीतिक तत्व कांग्रेस बीजेपी में भी जाकर अच्छा ही करेंगे। कांग्रेस और बीजेपी को भी आगे जाकर समृद्ध करेंगे। कौन नहीं चाहता कि ये दल भी बेहतर हों। ‘
thanks for information
आप के लिखने से येह भरोसा पक्का हो रहा है कि अब सभी मुद्दोन पर बराबरी से बात होगी.
Ye dharmwad chodo or unke dimag thik karo Jo duniya ko charm ke nam pe mar rahe h..
dharm ke nam par masum logo or bacho ki Jan li ja rahi h… Beeti bate tatol ke kuch nhi milega . aane wale wakt ko sudharo or usi pe likho to Jada acha h….
Aisa hi dharm ka kam chlta raha to duniya Jada din ki nhi
अफजल जी आप ने बिलकुल गलत लिखा है हमने इतिहास में यह सब नहीं पढ़ा। और मुसलमानों ने कोनसा जुल्म नहीं किया। और क्या नहीं लूटा।औरंगजेब ने क्या नहीं लूटा नहीं इस ने औरतों को बेजयत् किया हिन्दुऔंं से मुसलमान बबनाया।और फिर बाबर जैसे कुत्ते, जिन्होनें बहुत जुल्म किए।और आज औवेसी खाता हिन्दुस्तान का है गीत पाकिस्तान के गाता है20मिनट में हिन्दुओं को काटने की बात करता है। मुसलमान कहते की काफिरों को मारों सकून मिलेगा,हिन्दु लड़की से सबंध बनाओ जन्नत मिलेगी।और क्या में पुछ सकता हूँ ही की मदरसों में तिरंगा क्यों नहीं फहराया जाता,जबकि इनकों सरकारी मान्यता प्राप्त होती है।मुसलमान वन्देमातरम् क्यों नहीं बोलते।जवाब जरूर देना अफजल जी।
लगता है झूठ बोलना मुसलमान लेखकों की आदत बन गई है | भारत में इस्लामिक शासन में क्रूरता के किस्से हिब्दुओं ने नहीं मुस्लिम लेखकों ने ही लिखे हैं बदायुनी आदि ने और वो शर्म महसूस करने के बजाये फक्र से लिखते हैं की फलानी लड़ाई के बाद जो कत्ले आम किया गया उसमे क़त्ल किये गये हिन्दुओं के जनेऊ का वजन इतने मन था या क़त्ल किये गये हिन्दुओं की खोपड़ियों के पहाड़ बन गये आदि | हो सकता है आज सभ्यता के युग में आपको शर्म मेह्स्सोस होती हो पर झूठ बोलने से कुछ सिद्ध होने वाला नहीं की मुस्लिम शासकों के अत्याचार का इतिहास झूठा है | आज भी जेहाद के नाम पर यही हो रहा है | हिन्दुओं की इच्छा है कि वो अपना धन मंदिरों को दान करें इससे किसी लुटेरे को इसे लूटने का हक़ नहीं बनता | इस्लाम का पूरा इतिहास लूट और सेक्स से भरा है |
बबु अफजल जेी, ये कुतर्क मत दो कि हिन्दु मुस्लिम दोनो हि मन्दिर लुतने मे शामिल थे, जरा ये सोचो कि हिन्दु तो अपने देश धर्म के लिये धन सम्पदा आज भि दान कर के बालाजि मन्दिर और पद्भ्नाथ मन्दिर मे रखे है आज भि वो जरुरत पदने पर निकाला जा सकता है , पपर् मुस्लिमो ने आज तक क्या बचाया ????? आतन्क्वाद और जिहाद और कुच नहि ?? क्यो भाई ???????
I AM NOT CONTESTING ANY THING IN YOUR ARTICLE AFJAL SAHIB.MY ONLY REQUEST IS THAT NOW WE SHOULD NOT DESTROY ANY RELIGIOUS MONUMENTS.NEITHER THERE IS NEED TO BUILD ANY NEW STRUCTURES WHEN OUR COUNTRY IS FACING POVERY AND DANGER OF WAR FROM OTHER COUNTRIES.WE ARE LIVING IN PRESENT AND WE HAVE TO PLANFOR FUTURE.THERE IS NOTHING TO GAIN FROM THE HISTORY.
I WISH TO LIVE IN THE PRESENT AND OUR PRIORITY IS TO PROVIDE TO EVERY ONE IN INDIA FOOD,CLOTHING,MEDICIN,EDUCATION,A SHELTER ON THEIT HEAD,EDUCATION AND SECURITY AND FUTURE PROSPERITY.AMAN KA PAIGAM HI AJ KA NARA HONA CHAHIYE.
यह जानकर खुशी हुई कि आप यह मानते हैं कि मंदिरों में दौलत थी और मुस्लिम आक्रमणकारी यहां आ कर उनको लूटते थे, जब लूटते थे तो नरसंहार करने के लिए अपने साथ मुसल्मिमों को ले कर आते हों? या यहीं के हिन्दुओं को मार डालते थे….लोग यही तो कहना चाहते हैं कि मध्य-पूर्व में पनपा इस्लाम लुटेरे कौमों की देन थी, जिसमें लूटमार को जायज ठहराने के तरीके पैदा किए गए। लूटमार करके अपने खजाने भरने वालों को इस्लाम ने प्रश्रय दिया, यह आपका लेख ही सिद्ध कर रहा है। जो धर्म ऐसे लोगों को प्रश्रय दे रहा हो वो कैसा होगा…?
राजा का तो ठीकठीक नहीं मालूम लेकिन बौद्धों का कत्लेआम किया गया, इतिहास इसका प्रमाण है. बनारस के पंडे धन-दौलत के लिए किसी का भी क़त्ल कर देते थे … इसके भी प्रमाण हैं. १९६०-७० की फिल्म ‘संघर्ष’ में इसका सजीव चित्रण है (यू ट्यूब पर उबलब्ध है). अभी ताजे में लें ‘साईं बाबा’ को हिंदु मंदिरों से बाहर करने का कारण क्या है ? सीधी बात …. ‘गल्ला’ है.
हिन्दु को तोर कर बोध बने जैन बने ओर शिक् भि लिकिन इस लिये हि हिन्दु मे कुच लोगो ने बोध लोगो को मारा सानातन धर्म के हि अन्ग है पहले के लोग नहि समजते थे ओर आज भि … जोभि किसि भि गुरु.. मुरति कि पोूज करत हैन वह सनतनि है
फजल साहब इतिहास के बारे में लिखें तो पहले या तो दो चार किताबें पढ़ लें या कुछ जानकारों की राय ले लें बेहतर रहेगा..पहली बात तराईन के युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद भारत में इस्लामी शासन की शुरूआत मानी जाती है 1206 में गुलाम वंश से विधिवत शुरुआत और दिल्ली पर हुकूमत मुगलों के पतन के साथ ही खत्म हो गई यानि 1764 में बक्सर की लड़ाई में मुगल शासक शाह आलम की हार के साथ…1000 साल कहां से हुआ..??? चोल चालुक्य और पाड्यों के संदर्भ में आपके विवरण ऐतिहासिक दृष्टि से विवादित माने जाते हैं पुष्यमित्र शुंग की जहां तक बात है इस मगध शासक को बौद्ध धर्म के खिलाफ माना जरूर जाता है लेकिन उसके संदर्भ में आपका विवरण या तो कपोल कल्पित है या दुराग्रह से प्रेरित है क्योंकि पुष्यमित्र शुंग ने ही सांची के स्तूप की सुरक्षा के लिए परकोटे का निर्माण कराया था और ये ऐतिहासिक प्रमाण है..अंग्रेजों को कोसना सही है उन्होंने यकीनन फूट डाल की कोशिश की चाहे दोहरे मताधिकार का अधिकार देकर या इतिहास के साथ छेड़-छाड़ कर। लेकिन फिलहाल सबसे जरूरी बात किसने इतिहास में क्या किया इस बात को लेकर अपना आज मत बिगाड़िए.. इसी हमारे तुम्हारे नें 1947 में भारत तोड़ा और पाकिस्तान जैसा पड़ोसी दिया.उम्मीद है आप इशारा समझ गए होंगे
अफजल का यह लेख मुस्लिम शाशको की बहिषयाना हरकतों को छिपाने का एक कुत्सित प्रयत्न है मुस्लिम शाशकों ने मंदिर तो तोड़े ही हिन्दू महिलाओं के साथ बलात्कार किये जबरिया धर्म परिवर्तन किया जजिआ लगाया आज भी कुतुबमीनार में हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तिआं देखी जा सकती हैं बहुत दूर का इतिहास देखने की जरुरत नहीं है १९४६,४७ में कलकत्ता और नोआ खली में जो अत्याचार हिन्दुओं पर किये गए उनकी साक्छी महात्मा गांधी की नोआ खली यात्रा में है विभाजन के बाद पाकिस्तान में हिन्दू मंदिर लगभग समाप्त कर दिए गए और जो थोड़े बहुत बचे हैं उनके तोड़े जाने की खबरें भी समाचार पत्रों में प्रकाशित होती रहती है बिभाजन के समय हिन्दुओं की आबादी २४%थी जो आज घट कर १%से भी कम रह गयी है और वह भी पाकिस्तान में नहीं रहना चाहते हैं बांग्ला देश में आये दिन हिन्दुओं की संपत्ति में आग लगा दी जाती है न उनकी संपत्ति सुरक्षित है ना आबरू कश्मीर घाटी से भगाए गए पंडित अपने ही देश में शरणार्थी बने हुए हैं मुस्लिम जुल्मों का अहसास अब संसार कर रहा है इस्लामिक संगठन जैसे अनेक संगठन इस समय मानवता के लिए गंभीर संकट बने हुए हैं अगर इस्लाम इसी रूप को प्रस्तुत करता रहा तो सारा विश्व मुसलमानों के अत्याचारों के खिलाफ खड़ा हो जायेगा आज जिस रूप में इस्लाम दिखाई दे रहा है उसमे सुधार कर उसे सर्व धर्म समावेशिक बनाने की आवश्यकता है गलत इतिहास प्रस्तुत कर उसकी तारीफ़ करने की आवश्यकता नहीं है
बहुत अच्छा लिखा …लेकिन गलत समय पे लिखा ..अगर ये दस साल पहले लिखा होता तो आपकी बात मान भी ली जाती …आपके पास तो इतनी सटीक जानकारी है कई हजार साल पहले की ,की आप सम्मान जनक हो ।थोड़ी अपने धर्म ग्रंथों की जानकारी भी निकाल लो तो शिया सुन्नी और बाकी फ़िरको का विवाद ख़त्म हो जायेगा ….खुद की गांड धोयी नही जाती और चला है दूसरो को चड्डी पहनाने ।
Hemant Malviya
19 hrs ·
यू तो दिल्ली में कई ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल हैं। पर उनमे डालकिला उन ऐतिहासिक स्थलों में सबसे बढ़कर है। इसे वास्तुकला के प्रेमी एक मियां बादशाह आहजहां ने सन 1648 में बनवाया था। इस किले का निर्माण दाल के पत्थरों से करवाया गया है इसी कारण इसे कुछ लोग तुवरदाल ब्रांड डालकिला भी कहते हैं। यह यमुना नदी के दांये किनारे पर स्थित है। साढ़े तीन सौ वर्ष बीत जाने के बाद भी इसका महत्व आज भी पहले जैसा ही है। तब भी ये किला ही था आज भी वही है।,
आगरा के तेजोमहालय के भाँती ही दिल्ली का यह डालकिला भी सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्द है। यह किला भाजपा शासकों के बेचप्रेम का बेमिसाल नमूना है। यह कई एकड़ में फैला हुआ है। इसके दो मुख्य द्वार हैं। दोनों पर ही टिकट लगता है ,दालमंदिर वाले द्वार से प्रविष्ट होने पर इसकी आंतरिक भव्यता और बनावट आकर्षित करती है। इसके दोनों ओर बड़ी बड़ी दुकानें हैं। इसमें एक सड़क है जिससे होते हुए ऐसे स्थान पर पहुंचा जाता है जहां पर कभी गद्दारमुग़ल शासक अपना शाही दरबार लगाया करते थे। वे इस स्थान को दीवान-ए-आम कहते थे। दीवान-ए-आम का मतलब है आम की दीवानी जनता के लिए दरबार। यहां बादशाह के दीवान साहब आम जनता की शिकायतों और तकलीफों को सुना करते थे और उनके निवारण के लिए ट्विट किया करते थे। आजकल दिल्ली तो केजरी बादशाह के कब्जे में है , पर किला नही , यहीं पर जिस सिंहासन पर मुग़ल बादशाह बैठते थे उसे तख़्त-ए-खाउस या मयूर सिंहासन कहा जाता है। यह सिंहासन तमाम हीरे-जवाहरातों से जड़ा हुआ था। जिसे नीरव और मेहुल गितांजलि और नक्षत्र डायमंड के ब्रांड के नाम से बेच दिया करते थे , आजकल वे फरार है , इसके पश्चात् दीवान-ए-ख़ास आता है। यहां बादशाह अपने ख़ास मेहमानों, फाइनेंसरों, दलालों सेठो मंत्रीगणों मंत्राणियो,एवं दरबारी और दरबारनियों आदि से मिला करते थे। बीच मे ये 7 रेसकोर्स होता था आजकल ये 7 लोककल्याण मार्ग के नाम पर शिफ्ट हो गया है ,यहा ख़ास लोगों की सभा होती थी अतः इसमें आम लोगों का आना वर्जित था। ऐसे ही बड़े-बड़े कक्षों से होते हुए कई बारह्दरियों से होते हुए हम डालकिले की छत पर पहुँच जाते हैं।
डालकिले की बारह्दरियों की दीवारें सुन्दर चित्रकारी, विनाइल, फ्लेक्स, गुप्त रोग इलाज के लिए लिखे या मिले , जैसे विज्ञापन से सुसज्जित हैं। जिसमे कई कण्डोम कम्पनियो की ब्रंडिंग की गई है ,कजरिया टाइल्स, बिनानी सीमेंट से बना ये किला , एसियन पेंट से पुता हुआ है , जिसकी जेके वाल पुट्टी की दीवार बोल उठती है, ” हे कमीनो कम से कम इसे तो किराये पे चढ़ाने से तो बख्श देते ” इसमें कई ऐसे कक्ष हैं, जिनमे कहीं भविष्य के भाजपाई सम्राटो के वास का स्थान बना है तो कहीं उनकी बेगमों के लिए हरम बने हुए हैं। हर हरम कर्लोन के ओर स्लीपवेल के गद्दों से सुसज्जित है ,और कुछ कक्ष श्रृंगार कक्ष ,जहाँ पहले विको टर्मरिक हल्दी चन्दन अब पतंजलि हर्बल और हमाम कक्ष में हमाम और लक्स साबुन प्रयोग किये जाते थे। अब तो यह हमाम साबुन केवल स्मृति मात्र ही रह गए हैं।
वर्तमान में डालकिला भारत सरकार के खुरातत्व विभाग की देख-रेख में है। इसके मुख्य द्वार की प्राचीर पर कभी तो आओ गाँव रात में , उसी का खाना खाओ एक रात तो गुजारो दलित कन्या के साथ मे, के सन्देश लिखे हुए हैं भारत के परीधानमन्त्री प्रतिवर्ष 15 अगस्त को तिरंगा झंडा यही फहराते हैं के जनता को सम्बोधित करते हैं। कुछ इस कदर करते हैं कि कुछ समय पहले तक लालकिले के अंदर जो भारतीय सेना के कार्यालय बने हुए थे अब उन्हें हटा लिया गया है। इसलिए की कही सेना अपने प्रधान मंत्री के भासन सुन सुन कर कहि जंग लड़ना ही केंसल न कर दे , क्योकि वे मन की बात से ही दुनिया जीत लेते हैं , सेना तो आजकल फ्री ही रहती है, किले के अंदर एक अजायबघर भी है जिसमें परिधान मंत्री की पोशाकें, सूट जुटे, विदेशी शस्त्र एवं अन्य वस्तुएं रखी गयीं हैं।
डालकिले में प्रकाश और ध्वनि का सुन्दर कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। जिसमे हनी रफ्तार बादशाह के गाने सुनाए जयें है , बर्बाद हिन्द फ़ौज के अधिकारियों पर मुकदमा भी इसी लालकिले में ही चलाया गया था , उन पर आरोप था वे अच्छी भली अहिंसा से मिलने वाली आजादी की सेटिंग को बर्बाद करना चाहते थे ,डाल किला आम लोगों लिए सदैव खुला रहता है। पर आप ये सुन के घुसने का नहीं, पहिले टिकट लेने का , यह स्मारक भारत वर्ष की प्राचीन विकसित खापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। अब तो जब से 25 करोड़ में किराए पे डालमिया जी ने लिया है तो स्वतंत्र भारत में डालमियां जी का और डालकिले का गौरव और भी बढ़ गया है। प्रत्येक भारतवासी को डाल मियां जी पे और उनके डाल किले पर गर्व है। …….