मुसलमानो को हमेशा यही शिकायत रहती है की विशव की मीडिया , कुछ राजनीतिज्ञ और उलेमा हर आतंकवादी गतिविधियों के लिए मुस्लमान और इस्लाम को इल्जाम ठहराते है . वही दूसरी तरफ गैर मुस्लिमो को ये शिकायत है के मुस्लमान आतंकवाद के खिलाफ क्यों आवाज नहीं उठाते. गैर मुस्लिमो के दिल में ये बात बैठ गयी है के मुस्लमान आतंकवाद का खंडन नहीं करते बल्कि खामोश रह कर उस का समर्थन करते है .जब के सच्चाई ये है के दुनिया में सब से ज्यादा मुस्लमान और मुस्लिम देश ही आतंकवाद के शिकार हुए है और मुस्लमान के ही हाथो मुसलमानो की हत्या हो रही है .मुस्लमान मुसलमानो के ही हाथो रिलीफ कैम्प में जिंदगी गुजारने पे मजबूर है, इस के बावजूद मुस्लमान पूरी तरह आतंकवाद के खिलाफ क्यों आवाज़ नहीं उठाते ?अधिकतर गैर मुस्लिम ये सवाल करते रहते है .कुछ हिन्दू संगठन तो यहाँ तक इल्जाम लगते है के इस्लाम आतंकवाद को बढ़ावा देने वाला मजहब है इस लिए मुस्लमान दुनिया भर में हो रहे आतंकवाद पे चुप्पी साधे हुए है .
जब के सच्चाई ये है के आतंकवाद का खंडन और उन के विरुद्ध मुसलमानो के बहुत आवाज़ उठायी है . कई अंतर्राष्ट्रीय और स्थानीय मुस्लिम संघटनो ने आतंकवाद के खिलाफ फतवा जारी किया है और उन के गतिविधियों को गैर इस्लामी करार दिया है . इस्लामी दुनिया की सब से पुरानी यूनिवर्सिटी मिस्र की अल- काहिरा यूनिवर्सिटी ने एक बार नयी कई बार आतंकवाद और आतंकवाद के खिलाफ फतवा जारी किया है . हिंदुस्तान के उलेमा और सब से बड़ी इस्लामी यूनिवर्सिटी देओबन्द, बरेली और फलाह ने भी इन के खिलाफ फतवे जारी किये है और ऐसी गतिविधियों को इस्लाम के शिक्षा के विरुद्ध बताया है . उरोप, अमरीका,कनाडा और ब्रिटेन के बड़े बड़े इस्लामी संगठनो ने भी आतंकवाद के विरुद्ध आवाज़ उठाया है . मस्जिदो के मुम्बरो से भी आलिम आतंकवाद के खिलाफ बोलते रहते है . इंटरनेट पे हजारो नहीं लाखो मुस्लमान और मुस्लिम संगठन आतंकवाद के खिलाफ आवाज उठाते रहते है .
इस के बाद भी अगर कोई ये पूछे के मुस्लमान आतंकवाद के खिलाफ आवाज़ क्यों नहीं उठाते तो इस का मतलब दुनिया वाले सिर्फ वही सुन्ना और जाना चाहते है जो मुसलमानो के विरुद्ध कहा गया हो .ये वही देखना चाहते है जिस से मुसलमानो के चरित्र पे शक पैदा हो . मुसलमानो से आतंकवाद के खिलाफ निंदा करने वाले क्या ये चाहते है के हर मुसलमान अपने घर की छत्त पे खड़े हो कर हर सुबह और शाम ये घोषणा करता रहे के वे आतंकवादी नहीं है और आतंकवाद की निंदा करता है .क्या लोग ये चाहते है के मुस्लमान हर सुबह समाचार पत्रो में पुरे एक पृष्ठ का इश्तिहार दे कर अातंकवाद से अपनी दुरी का एलान करता रहे . इतिहास में सब से घिनौनी आतंकवाद जर्मनी के नाजियों ने की थी . क्या जर्मनी बार बार अपनी इस कार्रवाई के लिए माफ़ी मांगते फिर रहे है ? जर्मनी ने जो जाती नरसंहार किया उस के लिए कभी उस ने माफ़ी मांगी. ऐसे विशव में बहुत सी घटनाये हुई है जिस में लाखो – करोडो लोगो की हत्या की गयी है , क्या इस के लिए कोई माफ़ी मांग रहा है . तो फिर पूरी दुनिया मुसलमानो से ही क्यों सवाल कर रही है .
असल बात है के मीडिया ईराक ,शाम, ईरान , अफगानिस्तान आदि मुस्लिम मुल्क में हो रहे सत्ता की लड़ाई को भी आतंकवादी गतिविधियों करार देता है . जब के अरब और अधिक तर मुस्लिम देशो में सत्ता की लड़ाई है जिसे अमरीका औएर उरोप एक ग्रुप को अपना समर्थन दे कर वह के मुल्को में बदअमनी फैला रहा है और उस ग्रुप को समर्थन कर रहा है ताके उस के पसंद की हुकूमत आ जाये और उस को लाभ हो जाए . इस में कोई शक नहीं के आतंकवाद एक नासूर हो गया है और फैलता ही जा रहा है सच ये भी है के मुस्लमान और इस्लाम के उलेमा आतंकवाद के खिलाफ फतवा जारी कर रहे है और लगभग है धार्मिक स्कूल ने आतंकवाद में शामिल सभी को इस्लाम के दायरे से खारिज मानते है . वही दूसरी तरफ मीडिया इस्लाम और मुसलमानो के खिलाफ गलत प्रोपेगंडा करना अपना जिम्मेदारी समझता है और आतंकवाद के खिलाफ दिए गए फतवो का प्रचार करना जरुरी नहीं समझता , यही कारण है के गैर मुस्लिम पूछते है के आखिर मुस्लमान आतंकवाद की निंदा क्यों नहीं करता ?
अफ़ज़ल जी आपकी बात से सहमत हूँ, एक बार पहले भी मैने टिप्पणी की थी की आतंकवादी अपने ही समाज का सबसे अधिक अहित करते है. पंजाब मे सिख आतनकवादियों ने हिन्दुओ से अधिक सिखों की हत्या की. इसी प्रकार इस्लाम के नाम पर आतंकवादियों ने मुसलमानो को ही अधिक मारा है बरबाद किया है. मेरे विचार मे राजनीतिक बयानबाज़ी अन्य बातो को अपनी छाया मे ढक लेती है, यह राजनीतिक लोग ही है को आतनकवादियों का अघोषित समर्थन या चुप्पी साध लेते है, जिससे समाज मे देश मे एक गलत संदेश जाता है.
में आपके बातो से सहमत है लेकिन फिर भी कुछ बुनियादी सबल है जिसका जबाब नही है इस लेख मे पहला जहां भी मुसलमान की थोरी जनसख्या हा उहा पर गैर मुस्लिम का रहना मुस्किल क्यो हो जाता है दूसरा मुसलाम्न धर्म का बिकाश सिर्फ तालबार के और जोरदार्बरडती हुआ तीसरा किसी भी मुस्लिम देश का नम बताये जिसमे इतिहास गैर मुस्लिम कल से बचो को पद्य जाता हो सबल तो बहूत है पीर कभी पूछ लूँगा
अफ़ज़ल भाई,सच्चाई ना सवीकार करने से आज इस्लाम ओर आतंकवाद प्रायवाची शब्द बन कर रह गये है ओर इसका दोष मुस्लिम दूसरो को देते है अगर इस्लाम शान्ती का ही मझहब होता तब तेल की बदोलत अकूत सम्रुध हुए साउदि अरेबिया से वहाबी इस्लाम को फेलाने के लिये क्यो धन दिया जाता, क्यों यूरॉप अमरीका जेसे विकसित देशो से पढ़े लिखे मुस्लिम युवक युवक्तिया जेहाद मे शामिल होने के लिये शाम वा इराक़ भागे जाते है? क्यो अपने देश के अच्छी शिक्षा प्राप्त इंजीनियर,प्रोफेसर,डाक्टर आदि मुस्लिम युवक आतंकवादी गतिविधियो मे लिप्त पाये जाते है? इन्हे किसका डर है? ओर यह डर फेला कर क्या साबित करना चाहते है? इनका धर्म परिवर्तन क्यो मुख्य खबर् मे है जबकि अन्य धर्म परिवर्तन बिना खबर् बने करवा दिये जाते है?
आप सही कह रहे है मुस्लमान आतंकवाद का विरोध करते है और कर रहे है मगर दुनिया मानने को तैयार नहीं है तो अब मुस्लिम क्या करे . आप ने सही लिखा है के क्या मुस्लमान इश्तहार दे . दुनिया की ऐसी की तैसी , ज्यादा निंदा करने की जरुरत नहीं है .
अफज़ल साहब आप ने बहुत ही अच्छा लेख लिखा है -मुबारकबाद
अफज़ल भाई आपके लेख सही हे लेकिन एक मसला ये हे की उपमहादीप के मुसलमानो में कुछ तत्व ऐसे भी हे जो हिन्दुओ पर धाक ज़माने और उन पर फिर से गज़नबी ख़िलजी की तरह राज़ करने के सपने देखने के लिए मुस्लिम यूनिटी सुप्रियॉरिटी का राग अलापते हे अब मसला ये हे की आज के ज़माने जब भाई भाई पडोसी पडोसी दोस्त एक दूसरे को नहीं पूछते रिश्ते सामाजिकता की डोर लगातार कमजोर हो रही हे ऐसे में मुस्लिम उम्मत की यूनिटी एक सपना ही हे प्रेक्टिकल में ये कही नहीं हे मगर फिर भी जब मुस्लिम यूनिटी का राग अलापा जाता हे भारत पाकिस्तान में फिलिस्तीन बर्मा और पता नहीं कहा कहा के मुस्लिमो की समस्या के लिए यहाँ पदर्शन जुलुस होते हे ( आज़ादफ मैदान काण्ड ) पाकिस्तान में तो हाल ये हे की किसी मसले पर चाहे सम्बंधित मुस्लिम देश में कुछ नहीं हो रहा हो मगर पाक में प्रदर्शन होने लगते हे मतलब ये हे की आप खुद ही ज़बरदस्ती मुस्लिम दुनिया की सारे मुस्लिमो की ठेकेदारी लेते हे ( चाहे कोई भाई दोस्त पडोसी को भले ही न पूछे ) तो दुनिया में कही भी मुस्लिम कुछ भी करता हे तो सव्भाविक हे की कुछ सवाल जवाब आपकी तरफ उछलेंगे ही अच्छे इस ठेकेदारी का शोक उपमहादीप के मुस्लिम को ही अधिक हे ( खिलाफत आंदोलन इकबाल साहब की दीवानगी ) क्योकि हम हिन्दुओ पर धाक ज़माने के चक्कर में रहते हे पाक के सभी सुबो में चाहे झगडा रहता हो मगर इकबाल साहब की ” एक हो मुस्लिम हरम की पासबानी के लिए ” का शौक वहा कुछ लोग जैसे ज़ैद हामिद ओरिया मकबूल खूब रखते हे इसी पर एक पाकिस्तानी पत्रकार वजाहत साहब कहते हे की दुनिया में कही भी किसी मुस्लिम के साथ कुछ हो तो हम पाकिस्तानी प्रदर्शन करने लगते हे लेकिन दुनिया के किसी मुस्लिम देश में पाकिस्तान पर ड्रोन हमले के खिलाफ कोई पर्दशन जुलुस नहीं होता हे तो ये बात हे इसी पर असगर अली इंजिनियर की कुछ लाइने में भेज़ता हु
आप कि बात सच है तो फिर पकिस्तन से सब हिन्दु कहा गये ये बतये और मुस्लिम को दिनिया के देशो मे जो स्वतन्त्रता माग्ते है वो स्वतन्त्रता मुस्लिम ू बहुमत वले देशो मे दुस्रे धर्म मे धर्मिक मनयता क्यो नहि देते. य़ॅ तो ये हुवा कि इन्मे से किसि को कुच्ह नहि मिलेग लेकिन दुस्रो मे उन्को भाग मिल्ना चहिये ये सोच है.
जाकिर साहब जैसे लोग तो खुले आम ओसामा का समर्थन कर चुके हे अमेरिका इज़राइल के मुद्दे पर वो बात अलग हे की इन्ही ” जाकिरो ” को शायद अमेरिका के पिट्ठू मुस्लिम देशो शेखो सुल्तानों से चंदा लेने शायद गुरेज नहीं होगा मेरे पास इनकी पास बुक नहीं हे मगर अंदाज़ा यही हे . इसी विषय पर मरहूम साज़िद रशीद तो लिखते हे की कोई भी व्यक्ति या संघटन अपने नाम के साथ ” इस्लामी ” लगा ले तो फिर ना हम उसकी आलोचना करना चाहते न उसके क्रियाकलापों का निष्पक्ष अध्य्यन करना चाहते हे हम सोचते हे की इनकी निंदा का मतलब इस्लाम की निंदा करना ही हे ( जबकि ऐसा बिलकुल नहीं हे ) हमारी इस साइकि का निहित सवाथी तत्व खूब फायदा लेते हे अभी आप जाओ ” खानदानी इमाम — ” साहब की निंदा करने जिन्होंने अभी सुना हे की बेहद गलत तकरीर की हे की निंदा करने या उनके क्रिया कलापो का अध्ययन करने तो वो भी झट से आप पर क्या आरोप जड़ देंगे बताने की जरुरत नहीं हे अच्छा ये कहकर में कोई अफज़ल भाई की बात नहीं काट रहा हु अफज़ल भाई अपनी जगह बिलकुल सही हे उन्होंने जो लिखा बेहतर लिखा उन्होंने सिक्के का एक पहलु दिखाया मेने दूसरा दोनों पहलु दिखाना जरुरी हे सुधार ऐसे ही होता हे जैसे एक बार अजित साहा और साज़िद रशीद में जनसत्ता में सिमी के मुद्दे पर बहस हुई थी दोनों अलग अलग बात कर रहे थे मगर दोनों अपनी जगह बिलकुल सही थे अजित सिमी के नाम पर बेगुनाहो की गिरफ़्तारी और पुलिस के अत्याचार बता रहे थे वही साज़िद सिमी के लोगो की कुछ कटटरपन्ति गतिविधियों को बता रहे थे दोनों अलग अलग बात कर रहे थे मगर दोनों सही थे अजित कह रहे थे की सिमी के नाम पर किसी बेगुनाह पर अत्याचार से आँख नहीं मुंदी जा सकती हे वही साज़िद कह रहे थे की वो सिमी के कुछ सदस्यों की भड़काऊ गतिविधियों से आँख नहीं मुंध सकते हे दोनों अपनी जगह बिलकुल सही थे यही बेहतर तरीका हे