(ये लेख कुछ साल पहले मरहूम लेखक साज़िद रशीद साहब ने जनसत्ता में लिखा था वही से साभार )
करीब पन्दरह साल पहले की बात हे , जब मुंबई में पत्रकारों के संघठन बॉम्बे यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट ( बीयूजे ) से तमाम भाषाओ के पत्रकार जुड़े हुए थे .कम्युनिस्टों के प्रभाव वाले इस संग़ठन की और से उसके सदस्यों को एक आमत्रण पत्र मिला की ( बीयूजे ) किसी इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन ( आई आर ऍफ़ ) के सहयोग से सर्वधर्म समभाव सम्मलेन करने जा रहा हे , जिसमे सारे धर्मो के प्रतिनिधि भाग लेंगे . मुझे जब यह आमंत्रण मिला तो मेने सोचा बीयूजे को सर्वधर्म संभव सम्मेलन की जरुरत क्यों आ पड़ी ? बहरहाल , उस कार्यकर्म में सचमुच सारे धर्म के धर्मगुरुओ ने शिरकत की थी . मुसलमानो की और से जिस युवक ने प्रतिनिधित्व किया था उसे देख कर मेरा चौकना स्वभाविक था . यह हमारे एक खास परिचित मनोवैज्ञानिक चिकत्सक का बेटा था जिसने हाल ही में एमबीबीएस किया था और उसकी प्रेक्टिस अच्छी नहीं चल रही थी . बीयूजे के छोटे से हॉल में ऑडियो और वीडियोग्राफी के सारे भारी भरकम साज़ो सामान मौजूद थे .
मुझे ये देख कर हैरत हुई की सदस्यों के चंदे पर चलने वाला हमारा संघठन के सदस्यों के पास इतना पैसा कहा से आ गया . सम्मलेन में हिन्दू सिख ईसाई बोध पारसी धर्मगुरुओ ने अपने धर्मग्रंथो के हवाले से बताया था की उनका धर्म मानवता का सन्देश देता हे और सारे धर्मो का बुनियादी सन्देश यही हे . उन सबके के आखिर में हमारे परिचित के नाकाम चिक्तिसक पुत्र ने भाषण दिया जिसमे उसने यह बताया की एकेश्वरवादी इस्लाम ही पृथ्वी का सच्चा धर्म हे , क्योकि बाकी सारे धर्मो में समय समय पर परिवर्तन होते रहे हे , लेकिन 1400 वर्षो में कुरान का एक भी शब्द नहीं बदला गया हे . में नहीं सारे लोग समझ नहीं पा रहे थे की यह कैसा सर्वधर्म समभाव सम्मलेन हे , जिसमे तमाम दूसरे धर्मो को झुठलाया जा रहा हे दूसरे रोज़ मेने बीयूजे अध्यक्ष को फोन करके पूछा की यूनियन ने धर्मप्रचार में कब से दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी , तो उन्होंने बताया की ये कार्यकर्म बीयूजे का नहीं था , और न हीं बीयूजे वीडियो आडियो की रिकॉर्डिंग का प्रबंध किया था . उनके अनुसार आईआरऍफ़ ने बीयूजे का हाल किराय पर लिया था और निमंत्रण के लिए यूनियन के सदस्यों की सोची मांगी गयी थी जो उन्हें दे दी गयी थी . कुछ दिन बाद कथित सर्वधर्मसम्भाव सम्मलेन मुंबई के निजी चैनेलो पर दिखाय जाने लगा था और अब भी कभी कभार यह कार्यकर्म दिखाया जाता हे इस प्रकार आज के अमीर डॉक्टर जाकिर नाइक के इस्लामिक विद्वान बंनने की प्रकिर्या शुरू हुई थी
जाकिर नायक ने अगर डॉक्टरी पेशे के बजाय इस्लाम के प्रचार प्रसार को अपने लिए सबसे मुफीद वयवसाय बना लिया हे तो इसमें हर्ज़ ही क्या हे ? अगर एक साइकिल का पंचर लगाने वाला आसाराम बापू बन कर चौड़े में खेल सकता हे तो जाकिर फिर भी डॉक्टर रह चुके हे वह भी कोई झोलाछाप नहीं एम बीबीएस . जाकिर ने बीयूजे जैसे संघटन का इस्तेमाल करके आम मुसलमानो में अपनी धोंस ज़माने की चालाकी , इससे क्या फर्क पड़ता हे . लेकिन जब जाकिर नायक जैसे लोग सम्प्रदायों और समाज में विघटन और देष का कारण बनने लगे तो उनके व्यक्तव्यों , भाषणो और प्रवचनों के पीछे छुपे मकसद को जानना क्या अनिवार्य नहीं हे ? जाकिर नायक ने अपने धार्मिक कैरियर की शुरुआत दूसरे धर्मो को इस्लाम के मुकाबिल तुच्छ साबित करने से की थी इसके लिए अन्य धर्मो के कुछ सभ्य किस्म के सीधे साधे धर्माचर्यो को अपने कार्यकर्मो में बुलाते थे और उनके धर्मो की त्रुटिया बताकर इस्लाम की महानता को सिद्ध करने की कोशिश करते थे . आम मुस्लमान दूसरे धर्माचार्यो को लाजवाब होता हुआ देख कर जाकिर नायक से बहुत प्रभावित होते थे
जब उनके प्रशंसकों की संख्या बढ़ने लगी तो वे अपने भव्य कार्यकर्मो में धर्मपरिवर्तन भी कराने लगे . यह सिलसिला कुछ आगे यो बढ़ा की उन्होंने अपने ही धर्म के दूसरे सम्प्रदायों को गलत ठहरना शुरू कर दिया और इंतिहा तब हो गयी जब उन्होंने हज़रत मोहम्मद के नवासे हुसैन के हत्यारे यज़ीद को उचित ठहराते हुए उसे खुदा का प्रिय बंदा कह डाला . इमाम हुसेन का इस्लाम और उर्दू साहित्य में वही मुकाम हे जो हिन्दू मत में राम का हे . और यज़ीद के प्रति वही घृणा हे जो रावण के लिए हे . पुरे विश्व के शिया और सुन्नी की यही आस्था हे जो केवल सऊदी अरब दुआरा प्रचारित इस्लाम को माने वाले ( जो की वहाबी कहलाते हे ) वही यज़ीद के प्रशंसक और इमाम हुसैन के आलोचक हे . शायद यहाँ यह बताना गैर जरुरी नहीं होगा की पुरे विश्व में इस्लाम के नाम पर आतंकवाद फैलाने वाले सारे लोग वहाबी सम्प्रदाय के हे
पिछले दिनों जाकिर ने यज़ीद को उचित ठहराते हुए उसकी प्रशंसा की तो स्वभाविक तौर पर भारत और पाकिस्तान में इसकी सख्त पर्तिकिर्या हुई सुन्नी और शिया उलेमा ने एकजुट होकर जाकिर की निंदा की थी और उन्हें चेतावनी दी थी तब उन्होंने अपने बयान पर माफ़ी तलब कर ली थी और यह मामला एक विस्फोटक रूप लेने के बाद दब गया था उन्होंने अपने भाषण में यह कहकर हंगामा खड़ा कर दिया की मुस्लमान सिर्फ अल्लाह से दुआ मांग सकता हे वह किसी भी दिवंगत व्यक्ति से दुआ नहीं मांग सकता , यहाँ तक की हज़रत मोहम्मद से भी नहीं . इस बयान ने आम मुस्लिम को ज़बरदस्त उत्तेजित किया और उन्होंने एकबार फिर एकजुट होकर इसकी निंदा की जिसके नतीजे में लखनऊ और इलाहबाद में जाकिर के बड़े पैमाने पर होने वाले कार्यकर्म राज्य सरकार ने रद्द करा दिए क्या जाकिर नायक विवाद पैदा करके चर्चा में रहना चाहते हे ? या फिर वे मुसलमानो के वहाबी सम्प्रदाय में अपनी लोकप्रियता से इतने मुग्द हे की उन्हें अब इस बात की परवाह नहीं रही की उनके व्यक्तव्यों से मुस्लिम सम्प्रदाय में कितना खतरनाक देष फेल रहा हे ?
दरअसल जाकिर नस्यक एक सोचे समझे मनसूबे के तहत इस तरह की बाते करते हे उन्होंने डॉक्टरी पेशे पर ध्यान देने के बजाय इस्लाम का प्रचार शरू किया , जिसके लिए सऊदी सरकार ने अपने ख़ज़ाने का दस प्रतिशत सुरक्षित कर रखा हे . क्या यह गौर करने की बात नहीं हे की हर सुशिक्षित भारतीय ये जनता हे की उसमे बिन लादेन जितना अमेरिका इज़राइल को दुश्मन मानता हे वह भारत को भी दुश्मन मानता हे जिसका इज़हार वह १९९० से अपने विभिन्न साक्षतकारो में और अपनी वेबसाइट पर कर चूका हे ग्यारह सितम्बर के बाद इसी ओसामा का समर्थन जाकिर नायक अपने कार्यकर्मो में निरंतर करते चले आ रहे हे . वे तो ऐलान तक करते चले आ रहे हे की बुश इस्लाम का दुश्मन हे और अगर ओसामा बुश का दुश्मन हे तो वे उसका समर्थन ही नहीं करते , बल्कि वे चाहेंगे की हर मुस्लिम ओसामा बन जाए .
जाकिर तमाम मुसलमानो को ओसामा बनने की शिक्षा दे रहे हे तो आखिर वे उन्हें ओसामा के किस रूप में देखना चाहते हे ? अमेरिका विरोधी या भारत विरोधी ? क्या जाकिर इतने मासूम हे की उन्हें यह नहीं पता की ओसामा रूढ़िवादी आतंकवादी और भारत विरोधी भी हे जाकिर नायक दूसरे धर्मो को तुच्छ साबित करके इस्लाम को एक महान धर्म के तौर पर पेश करने की कोशिश में ऐसी आग से खेल रहे हे जिसमे ना केवल उनका बल्कि मुस्लिम सम्प्रदाय का भी हाथ जल सकता हे मिसाल के तौर पर वे बाइबल से लेकर उपनिषदों में त्रुटिया निकालते हे अगर दूसरे धर्मो का कोई प्रचारक इस्लाम में त्रुटिया निकालने लगे तो क्या सूरत होगी ? क्या जाकिर नायक और उनके माने वाले इस तरह की किसी बहस को तैयार हे / यह प्रश्न इसलिए बहुत अहम हे की जाकिर नायक से बहस करने वाले एक पादरी ने कहा था की वे ( जाकिर ) तो बाइबल और जीसस में कीड़े निकाल रहे थे क्या में भी इस्लाम के लिए ऐसा ही करू ? मेरी राय में पादरी का यह सवाल सिर्फ जाकिर नायक से ही नहीं उन तमाम मुसलमानो से हे जो जाकिर की याददाश्त को कोई देवीय चत्मकार मानते हे की उन्हें उपनिषदों बाइबिल और कुरान की आयते कंठस्थ हे और जब वे अपनी बहस में उनका हवाला देते हे तो दूसरे धर्म को माने वाला कैसे ढेर हो जाता हे जाकिर नायक यह कोई नया धार्मिक कीर्तिमान नहीं कायम कर रहे हे वास्तव में उनका आदर्श दिदात नाम का वह दक्षिणी अफ़्रीकी धर्मप्रचारक था , जिसने अस्सी के दशक में ईसाइयो को कुरान के माध्यम से इस तरह चुनौती दी थी उसे भी कुरान और बाइबिल के सेकड़ो शलोक कंठस्थ थे . यह न तो कोई देवीय चमत्कार हे और ना ही असंभव कारनामा . अहमद दिदात और जाकिर नायक दोनों का धर्म का प्रचार उसी तरह वयवसाय हे जिस प्रकार की रामजेठमलानी का पेशा हे रामजेठमलानी को पूरा इंडियन क्रिमिनल ला कंठस्थ हे तो क्या वह उनका कोई कारनामा हे ? अगर उन्हें एक कामयाब वकील बने रहना हे तो उसके लिए यह जरुरी हे . जाकिर नायक भी इसी वास्तविकता से खूब वाकिफ हे और उन्होंने सवंय को सऊदी इस्लाम का एक कामयाब प्रचारक साबित कर दिया हे , तभी तो केवल पंद्रह बरसो के भीतर वह सौ करोड़ रूपये के इस्लामी चेनेल और पांच हज़ार रूपये महीने फीस वाले इस्लामी स्कूल का मालिक बन गए हे . यही नहीं हर साल वह इस्लामी कॉन्फ्रेंस करते हे जिस पर वे करोड़ो रूपये पानी की तरह खर्च करते हे . मेरी इसमें कोई दिलचस्पी नहीं हे के वे धर्म का कारोबार क्यों कर रहे हे . मेरी चिंता इस विषय को लेकर हे की उनका अपने कारोबार को कामयाब बनाने का नुस्खा बहुत खतरनाक मोड़ ले चूका हे जिसकी कीमत शायद उन्हें नहीं किसी और को चुकानी पड़ सकती हे
हयात जी
सलाम करू या नमस्कार
जाकिर नायक के खिलाफ आप ने लिख कर फिर अपने नियत का परिचय दे दिया है .
जाकिर नायक के नॉलेज के सामने पूरी दुनिया में उन की बराबरी का कोई है तो हमें नाम बातये . दुनिया का पहला आदमी जाकिर साहब है जिन्हहि क़ुरआन , गीता , बाइबिल , गुरु वाणी , वेद आदि उन्हें सब याद है वह बी पुरे पेज नंबर के साथ . आप को क़ुरआन की एक सूरह याद नहीं हो गई .
दुनिया के सभी धर्म गुरुओ के साथ उन्हों ने वाद -विवाद किया है मगर कोई उन के सामने नहीं टिक पाया है. आज सभी गुरु उन से हार कर अपना मुंह छुपाये फिर रहे है और आप चले है उन कोई आइना देखने .
जहा तक धर्म परिवर्तन की बात है लोगको जबरदस्ती परिवर्तन नहीं कराया जा रहा है.
देखिय हयात साहब आसमान पे थूके गए तो थूक आप पर ही गिरे ग
”दुनिया के सभी धर्म गुरुओ के साथ उन्हों ने वाद -विवाद किया है मगर कोई उन के सामने नहीं टिक पाया है. आज सभी गुरु उन से हार कर अपना मुंह छुपाये फिर रहे है और आप चले है उन कोई आइना देखने .” सही कहा वहाब भाई बिलकुल सही कहा में मानता हु सही हे हरा दिया ना सबको ठीक , अब आगे क्या ? आगे क्या प्लानिंग हे ? अब क्या करना हे ? और ” हराने ” के लिए क्या अरबो करोड़ो का बजट , चंदा था ? अगर था तो वो पैसा कहा से आया ? जिन्होंने दिया क्या उनका पैसा उनकी मेहनत खून पसीने का था ? चलिए जहा से भी आया लेकिन क्या सारा पैसा ” हराने ” में खर्च हो गया ? अगर नहीं तो बचे पैसे का क्या उपयोग किया जाएगा क्या कही आम मुस्लिम के लिए स्कूल अस्पताल आदि खोले गए हे कहा ?
सबसे पहली लाइन पढ़ के लिख रहा हूँ.
जाकिर नाइक ने दुनिआ के सभी धर्म गुरुओं के साथ वाद -विवाद नहीं क्या है। उनोने सिर्फ ऊनि लोगो के साथ वाद -विवाद किया है जो खुद आपने धर्म के बारे में नहीं जानते और उन्हें कंफ्यूज करके मुर्ख बनाया है .
आर्य समझ के साथ उनका कोई वाद -विवाद नहीं हुआ है जबकि आर्य समझ उन्हें बहोत पहले से वाद -विवाद के लिए आमंत्रित करता रहा है . वो उन्हें बेतुके बहाने बता के इंकार कर देते है . पंडित महेंद्र पाल आर्य जोके पहले एक मौलाना थे उनोने भी ज़ाकिर नायक को २००४ से चुनौती देके राखी है लेकिन वो वाद -विवाद के लिए नहीं आया है. वाद -विवाद के नाम पे सिर्फ श्री श्री कुछ का वीडियो डाल के रखा है। जो के आर्ट ऑफ़ लिविंग चलाते है उनका इससे दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है।
या कोई आर्य समाज का कहे के एक वीडियो डाला मिल जाता है जो इस्लाम की तारीफ करता है।
वास्तव में ज़ाकिर नायक का किसी विद्वान से कोई वाद -विवाद नहीं हुआ है। हमेशा भीड़ में से लोगो के सवालो के जवाब उन्हें कंफ्यूज करके या वाहियात उदहारण देके देता रहता है।
Aap ke ek ek wahyat sawal ka jawab he hamare pas , dr zakir naik tak mat pahuncho wo to bahut bat he ,,.. Sikandar hayat ko quran or islam ka koi ilm nahi he ek hi coment ko bar bar post karke khush ho raha he .. Dr zakir ki tableegh videsho me zyada he indian jahil he wo kam samajhte he
और सिकंदर हयात तक पहुचने की तुम्हारे जाकिर नाईक में औकात नहीं है! तुम्हारा जाकिर नाईक नफरत फैला रहा है और मुझे नहीं लगता की ऐसा कुछ सिखाया जाता होगा इस्लाम और कुरान में! जबकि सिकंदर हयात उस नफरत को काम करने की कोशिश में लगा हुआ है लेकिन तूम जाहिलों को वो समझ में नहीं आएगा! तुम्हे बस यही समझ में आता है की इस्लाम खतरे में है और जाकिर नाईक उसे बचा रहा है! और यही दुर्भाग्य है मुसलमानो का, इस देश का और इस दुनिया का! अगर तुम सिकंदर हयात को समझने लग जाओ तो तुम्हारा खुद का और तुम्हारी अपनी बिरादरी का ही भला हो जाये!
नागरी में लिखोगे तो में हर बात का जवाब लिखता आया हु रोमन में ठीक से बात पल्ले नहीं पड़ती हे बाकी तेजस भाई मुझे बहुत ख़ुशी हे की आपके विचारो में कुछ न कुछ परिवर्तन तो जरूर हुआ पहले आप शायद थोड़े दक्षिणपंथ की तरफ झुकाव रखते थे मगर अब अगर आप शुद्ध सेकुलर विचारधारा में आ जायेंगे तो ये बहुत ही ख़ुशी की बात होगी बाकी में जल्द ही इस विषय एक लेख लिखूंगा जिसका सम्बन्ध जाकिर नायको की बढ़ती भीड़ आई एस के शक में पकडे युवा http://lucknow.amarujala.com/feature/city-news-lkw/interview-of-suspected-terrorist-aaleem-hindi-news/page-4/ और आम मुस्लिम से होगा की उसे कैसे इन लोगो की काट करनी हे
कैंसर का इलाज़ फर्स्ट स्टेज पर ही हो सकता हे काटरपन्तियो ने सारी दुनिया के मुस्लिमो को संकट में डाल दिया हे में खुद बेहद तनाव में हु घर में बेहद काबिल लोग हे मगर एक तरफ पेट्रोल के दाम गिरने से गल्फ की अर्थवयवस्था डूब रही हे ( मेरे दो मैरिड भाई वही हे ) वही दूसरी तरंग मगरिबी देश कटटरपन्तियो से बेहद आशंकित हे ( मेरे दो और भाइयो का जाने का इरादा और जरुरत भी ) ऐसे में भविष्य डरावना लगता हे अमर उजाला की रिपोर्ट को अगर सच मान ले तो होना यही चाहिए की अपने आस पास हम जहा भी कोई कटरपंथी देखे फ़ौरन उससे बहस करे क्या बहस करनी हे कैसे करनी हे यही मेरे लेख का विषय होगा में खुद भी कही भी कोई भी कटटरपंथी देखता हु तो उसे इग्नोर नहीं करता हु उससे कोई न कोई बहस जरूर करता हे बहस भी इस तरह से की हम पर कोई भी ब्लासफेमी का फ़र्ज़ी चार्ज भी ना लगे और कटटरपन्तियो की जड़ो में मट्ठा डल जाए
Pandit aarya khud ek ahaan jhoote hev or zakir naaik ke vishay me jhoot bolkrkhud hi popularity hasil krna chaahte he agar dekhna haahte ho to dekho sufi deendaar nam ke chand mamooli logon ne unki phook nikal di zakir naaik dunya ka bda nam he or mahendrpaal jese ke ye unke shagid ka shagird ह kaafi he ….rahi baat hayat sahib ke lekh ki me unse ht mutaassiर huwa hu lekin kisi ke purane lekh ke aadhaar pr kisi ko katghare me khada ma kare aj dunya usi ki sunti he jo unchi jgajह pr khada hokar dunya ko sahanti(islam) इ tarf bulae….or zakir naik Ahmed deedat se prabhavit the unhone bhi bht bade २ christian scholors ka maat di he aj tark or vitark ke is dor me debate hi ek aayr sadhan he jisko sbhi man sakte he
hayat sahab/ zakir sahab apne takrir me har baat ke sach hone ki tark dete hai,wo bhi dharmik kitabo me kahi gayi baato ke anusar
. unki jin baato ko apne kaha ki musalmano ne virodh kiya to ek baat jaan lijiye unki baato baato ka virodh sirf kam jankar musalman hi kar sakta hai. agar apke man me sawal hai to directly unse ja ke puchhiye.
social media ka sahara kyo le rahe hai.
agar aap kisi aam hindu se ye kahenge ki uske hindu dharm ka zikr kisi bhi granth ya ved me nahi hai to use yakin nahi hoga. vo apke is baat ka virodh karega . par hakikat yahi hai aaj jo hindu ke name se famouse hai wo sanatan dharm hai. hindu name to bharat par akraman karne wale guto ne bharat ki sabhyata sindhu nadi par base hone ke karan diya. pahale ye name sindhu tha baad me language ke badlav ke karan present me hindu hai. itni gahrayi ki baat koyi aam hindu nahi samjhega. jo jankar hoga wahi samjhega . bas yahi baat aam musalmano me bhi hai unhone islam ki sahi talim nahi li. aur jankari kam hone ki wajah se wo virodh kar dete hai. par zakir sahab to har task ke baad proof dete hai aur ye proof apne man se nahi balki grantho ke page no. ke sath dete hai . fir bhi apne bina granth me dekhe galat kah diya to aap se bada bevkuf maine nahi dekha . wakt kam hai janab nahi to jo jo baate apne kati hai unka jawab mai dharm ke aayine me deta .par afsos………..
jay hind sir
अंसारी जी आपका इस साइट पर संपादक अफज़ल भाई की तरफ से बहुत बहुत स्वागत हे आपका कॉमेंट आज ही देखा हे कुछ पल्ले नहीं पड़ा अगर हो सके तो नागरी में लिखे जरूर आपकी बात का जवाब दूंगा हमारा तो मानना हे की भारतीय उपमहादीप में लगातार बढ़ती जाकिर नायको की फ़ौज़ उपमहादीप के मुस्लिंमो के लिए बहुत बड़ा खतरा हे
alamin ansar जी एक छोटी सी बात ये है कि मेरी ना हि अल्लाह मे आस्था है ना ही इस्लाम मे अब यदी मे कुरान पढने बैठ जाऊ तो मुझे negativity के अलावा और क्या मिलेगा दुसरा कुरान मे लिखी बातो को मे हिन्दु ग्रन्थो के आधार पर गलत सिध करने की ही कोशिश करुन्गा यही काम आपका तोता ग्रन्थो का रेफरेन्श देकर कर रहा है इसलिये उसके ज्ञान पर ना इतराये
@उमकन्त जेी एक बार कुरआन पध्कर तो दखिये फिर गल्तियन निकल्न.
ये कैसी मासूमियत है कि लोग सोचते हैं कि क़ुरान को पढ़ने के बाद, सबकी क़ुरान या इस्लाम के प्रति एक ही राय ही होगी.
इस दुनिया मे कितने ही आस्तिक लोग है, जिन्होने क़ुरान पढ़ी, और इसमे आस्था रखते हैं. दुनिया मे सैकड़ो-हज़ारो किताबे इस्लाम की आलोचना मे क़ुरान और हदीसों को पढ़ने के बाद लोगो ने लिखी. कितने ही लोग, सहिष्णुता, अमन, शांति की बात क़ुरान के हवाले से करते हैं, कितने ही लोग, जो इस्लाम मे आस्था रखते हैं, क़ुरान को कई कई बार पढ़ चुके हैं, रट चुके हैं, उसी के हवाले से हिंसा को भी पवित्र कार्य मान बैठे हैं, उनसे हम सब भी जूझ रहे हैं.
इसलिए, क़ुरान को या किसी अन्य किताब को पढ़ने से दुनिया की समस्याओ का हल निकल जाएगा, ऐसा सोचना ही बेवकूफी होगी.
मुझे लगता है, सामान्यीकरण या सतही नतीजे की बजाय, हमे खुले दिल से हर दृष्टिकोण के विचारो को सुनने की आदत डालनी पड़ेगी. सारी दुनिया क़ुरान पढ़ भी लेगी तो भी इसको लेके लोगो के दृष्टिकोनो मे वोही भिन्नता मिलेगी, जो किसी अन्य विचार या किताब को लेके हो सकती है. इसे हमे स्वीकारना पड़ेगा.
बात सिर्फ़ मुसलमान या इस्लाम के आलोचक की ही नही. इस्लाम मे आस्था रखने वालो के बीच भी क़ुरान के प्रति विचारो मे टकराव होगा. कहीं कम कहीं बहुत ज़्यादा. ये वैचारिक लड़ाई, सिर्फ़ मुस्लिम और गैर मुस्लिम समुदाय के भीतर ही नही है, बल्कि मुस्लिम समुदाय के भीतर भी है. ये हक़ीकत है.
https://www.youtube.com/watch?v=nzXNOYWruqA
इस को सुनो और कफिर नयक क बचवो बद मै
अरे वहाब साहब लेख मेरा नहीं हे मरहूम साज़िद रशीद साहब का हे उन्होंने कोई गलत बात कही हो तो उनकी बातो को तर्क से काटने का आपको पूरा अधिकार हे आगे बढ़िए और तर्क से उंनकी बातो की धज़ज़िया उड़ा दीजिये में भी तो अपनी बात कहने को तर्क देने को दस दस बीस बीस कॉमेंट लिखता हु आप भी तार्किक कॉमेंट से साज़िद साहब को गलत साबित कर दीजिये
हयात भाई किस पत्थर पर सर पतक रहे हो ?? याद केीजिये ये वहेी चिश्तेी सहब हे जो इस्लाम के हिसाब से नाच-गाने-फिल्मो कि पाबन्देी के साथ भेी दिखते हे और इस्लाम के खिलाफ जाकर फिल्मे करने वाले मुसलमान ? कलकारो के साथ भि ः)
ये बाते सही नहीं हे की नाचना गाने वाले मनोरंजन वाले मुसलमान नहीं रहे ? नहीं ऐसा नहीं हे क्यों नहीं हे देखिये हम बताते हे क्यों नहीं हे बात ये हे की इस्लाम में नाच गाने शायरी मनोरंजन की मनाही हे या नहीं हे इस पर तो बहस हे लेकिन इस्लाम में शराब की सख्त मनाही हे इस पर तो कोई विवाद नहीं हे सब जानते हे मानते हे फिर भी थोड़े ही ना शराब पिने वालो को इस्लाम से बाहर किया जाता हे नहीं न बहुत से शासक और ग़ालिब से लेकर फेज़ अहमद फ़राज़ तक पक्के पियक्कड़ रहे ( वेस्ट यु पि के हमारे एक परिचित मुस्लिम नेता भी ) तो किसने उन्हें इस्लाम से बाहर कर दिया ? नहीं क्योकि राइट्स ही नहीं हे किसीके पास ? इन बातो का फैसला अल्लाह के हवाले और किसी के पास अधिकार ही नहीं हे
हयात भाई आप और अफ़ज़ल साहब जिन मुश्किल हालातो और बेहद दवाब मे लिखते है उसकी हम खुले दिल से तारीफ करते है क्योकि एक मुसलमान अगर दूसरे मुसलमान के खिलाफ तो दूर अगर उससे थोड़ा सा भी असहमत होता दिखता है तो बाकी अनगिनत कट्टर मुसलमान उस उदारवादी मुसलमान पर टूट पड़ते है….हमने अनगिनत बार ना जाने कितने कट्टर मुसलमानो को आप दोनो को भला-बुरा कहते हुए देखा है …यहा भी और नवभारत टाइम्स पर भी ….और ताज्जुब की बात ये है कि सारे आम धमकाने वाले उन कट्टरपंथि मुसलमानो को कोई दूसरा मुसलमान ना रोकता है और ना ही टोकता है ?? जबकि बाकी किसी भी मजहब मे किसी की गलत बात पर उसे रोकने वाले और टोकने वाले हमेशा ही मिलेंगे !!
सच वही है जो दिखता भी है और साथ-2 साबित भी होता है और इस सच्चाई से कोई इंकार नही कर सकता कि इंसानियत और गैर मुस्लिमो के लिये मुसलमानो का एक ही मिशन है …इनको खत्म करो या मुसलमान बना लो….अब मालूम नही कि ऐसा इस्लाम की नसीहतो के अनुसार किया जेया रहा है या कोई और वजह है ?? वजह जो भी हो मगर ऐसे कट्टरपंथि मुसलमानो को रोकने वाले 0.001% लोग भी मुस्लिम समाज मे नज़र नही आते ??
और यही वजह है कि पूरी दुनिया मे एक आवाज़ मे मुसलमानो के बारे मे एक आम राय बड़ी तेजी से बंटी जा रही है कि वे ना तो किसी गैर मुस्लिम के साथ खुशी से रह सकते है और ना ही उसे खुश देख सकते है…हो सकता है ये वहां हो मगर गैर मुस्लिमो का ये वहां सिर्फ मुस्लिम हिदुर कर सकते है …चाशणिदार बातो से नही बल्कि असलियत मे….कष्ट के लिये क्षमा
हयात जी
मुझे मालूम है के आप का लेख नहीं है , साजिद रशीद एक कम्युनिस्ट लेखक था अल्लाह ही जानता है के मरने के बाद उस का क्या हुआ हो ग . आप का भी कही ——
मगर आप चुन चुन कर सिर्फ मुसलमानो के खिलाफ ही क्यों लिखते है .कुछ तो पर्दा है ?
आप को मालूम है न के एक दिन पुरे विशव पे मुसलमानो का राज हो ग उस के बाद ही क़यामत आये गई .
देखिये जन्नत में जाने के लिए ईमान का मजबूत होना जरुरी है , मुझे तो लगता है जल्द ही आप इस्लाम से खारिज हो जाये गए . हिम्मत है तो कभी हिन्दू के खिलाफ भी लिखिए .
आंसारी साहब बीच मे टपकने के लिये माफी मगर ये किस तरह का ईमान है कि मुसलमान अपने ही मुसलमान भाइयो का इस्लाम के नाम पर खून बहा रहा है यानि मरने वाले भी मुसलमान और मारने वाले भी मुसलमान और बाकी मुस्लिमो की जुबां पर ताले ?? …कुछ ताजा खबरे पेश-ए-खिदमत है….
अफ़ग़ानिस्तान :-वॉलिबॉल मैच में फिदायीन ब्लास्ट, 45 मरे
पाकिसतान ः-वाघा बॉर्डर पर ब्लास्ट, 55 की मौत
नाइजीरिया ः- मछली बेचने वाले 48 लोगों की हत्या
इराकः- हजारो मुसल्मान अप्ने हेी मुसल्मान भाइयो ?? कि जान ले रहे हे
और न जाने कितने हेी मुसलिम बहुल देशो मे ऐसा रोज हेी हो रहा है ?? आखिर क्यो खामोश है मुस्लिम समाज मुसलमानो की हत्याओ पर ??
एक सवाल इस साइट पर मौजूद सभी मुस्लिम बुढ़िजीवीयो से…… अल्लाह किस मुसलमान को जन्नत देगा
1-मरने वाले बे-गुनाह मुसलमान को (जो किसी बम धमाके मे किसी दूसरे मुसलमान के हाथो मारा गया) ??
2-बम धमाके करके बेगुनाह मुसलमानो की जान लेने वाले मुसलमान को ??
3या फिर बाकी उन बेगुनाहो की हत्याओ पर जुबां सिल कर चुप रहने वाले मुसलमानो को जो मुस्लिम भाईचारे की लम्बी-2 डींगे हांकते हुए नही थकते ??
शरद भाई
ये क्या बात हुइ…..सिकन्दर हयात् एक सुलज्हे हुए व्यक्ति है, जिनका हम आदर करते है ,यहा पर उनके साथ कैसा वरताव किया जा रहा है…….आप हमे इस उजदे चमन मे लाकर अच्चा किया……..||
Sharad bhai aap k liye …Allah har musalmaan ko jannat denge.
Agar ek musalmaan ne achchhe kaam kiyei hongey to usko sidhed jannat milegi aur agar kisi dusre musalmaan ne koi galat kaam kiye hoge koi gunah wagehra to usko apne gunaho ki saza milegi jahannam me uske baad usko bhi jannat milegi… insha Allah.
Lekin jannat sirf aur sirf musalmaano ko milegi kisi non muslim ko nahi aur na hi kisi munafiq (dogale) ko.
एक बात हे पाठको की नेक इरादे के साथ की गयी मेहनत या प्रयास कभी बेकार नहीं जाता हे और देर सवेर उसके कुछ न कुछ अच्छा ही फल निकलता हे पिछले दस सालो से मुझे आदत थी की कोई अच्छा लेख या रिपोर्ट या किताब कही देखता था तो फोटोस्टेट या कटिंग अपने पास रख लेता था और कोई भाई मित्र आदि घर आता तो उन्हें पढ़ने को प्रेरित करता इनको सहजेना आसान नहीं था मेरे पास कोई अपना कमरा अलमीरा आदि भी नहीं हे ऊपर से किराय के घरो की शिफ्टिंग की मुसीबत खेर कैसे कैसे करके मेने सहेज कर रखा और इत्त्फ़ाक हुआ की पीछे साल अफज़ल भाई नेट पर मिल गए उनका भला हो की उन्होंने साइट चालू कर दी और मेने लेख टाइप करके उन्हें मेल कर दिए तो बहुत अच्छा ही हे की और अधिक पाठक वर्ग इन्हे पढ़ पा रहा होगा बहुत भला ही हुआ
जैसा की इस रिपोर्ट में बताया गया हे की कटटरपन्ति लोगो में ” खास ” होने की भावना भरते हे आधुनिकता पूंजीवाद शहरीकरण टेक्नोलॉजी की अधिकता ने आम आदमी से बहुत कुछ छिना भी हे खासकर बड़े सफल और कामयाब लोगो की मिडिया ऐसे बमबारी करता हे की आम आदमी खुद को बिलकुल महत्वहीन फ़ालतू पाता हे इसी का फायदा तरह तरह के बाबा और कटटरपन्ति उठा रहे हे ये अपने मानने वालो में एक खास होने की भावना जमाते हे जिससे आम आदमी को जीवन का कोई मकसद नज़र आने लगता हे http://www.bbc.co.uk/hindi/international/2014/11/141120_french_nationals_join_is_sr
लोग इन बातो को मज़हब आस्था से जोड़ते हे जबकि इन बातो का मज़हब या आस्था से नहीं बल्कि हालात से लेना देना होता हे मेरी मदर पिछले पचास साल से पांचो वक्त की नमाज़ कुरान पढ़ रही हे दस दस बच्चो को पाला काबिल बनाया गाव से क़स्बा फिर शहर फिर महानगर हिज़रत की अनगिनत परेशानिया लेकिन न मेरी मदर कभी भी किसी मज़ार पर मत्था टेकती हे न किसी जाकिर वाक़िर का चेनेल देखती हे न किसी को बढ़ चढ़ कर उपदेश देती हे कभी आराम नहीं करती कभी जिम्मेदारी से नहीं भागे कभी नहीं घबराई जबकि ददिहाल हमारी बईमान और ननिहाल मानसिक शारीरिक आर्थिक तीनो रूपों से कमजोर किसी का सहारा नहीं था लेकिन हमारी अम्मी को कोई फर्क नहीं ये ईश्वर पर सच्ची और अटूट आस्था का परिणाम हे जबकि लोग जीवन के दुखो तकलीफो नाकामयाबियों और सबसे बड़ी बात ” जिम्मेदारियों के तनावों ” से घबराकर पता नहीं किस किस के आगोश में शान्ति ढूंढते हे
SIKANDAR JEE JO CRAP KEHTE HAIN UNSE KAHIYE KE GEETA VED PURAN PADHKAR BHI DEKHEN UNKEE APNI DHARTEE KEE PAIDAISH HAIN SABH. BAKI AGAR WOH SACHCHE HAIN TO SAMAJH AA JAEGA KE KAHIN BHI NAFRAT KA PATH NAHIN HAI. ZAKIR NAFRATH KA DOOT HAI AUR KUCHH NAHIN BRAVO TO SPEAK AS IT MAY BE YOUR OPINION . OTHERS MAY DIFFER OTHERWISE IT MUST HAVE BEEN NOT GARDEN BUT CROP OF ALLAH (IF EVERYONE HAD SIMILAR MINDS)
Total crap article with intention of maligning a great scholar of comparative religion .
ये धर्म का कारोबार हे इसमे कोई शक नही ।लेकिन वो अपने कारोबार के हे पक्के मास्टर
chutiyapa h …wo ISLAM ko faila rahe hai tumhare andar dam h to bna do ek bhi muslim.saale musalmano me yahi kami hai ke achcha kaam karo fir bhi log khilaf rahte hai
Nahi.wo islam kiya hai wo baat samhjate hai.
Jo log ko baat samaj mr ati wo khud hokar ISLAM kubool karta hai.
एक समय था जब में खुद जाकिर नायक का बहुत बड़ा प्रशंसक था , आज भी कोई उन के नॉलेज का इंकार नहीं कर सकता और मेरे समझ से नेयुवको में जाकिर नायक अभी भी एक हीरो की तरह है . मुस्लिम ही नहीं सभी धर्म के बहित लोग इन के प्रशंसक है .
लेकिन वे जज्बात में इतना बोल जाते है की इस्लाम में उस की इजाजत ही नहीं है यही कारन है के आज इस्लाम में जितने भी स्कूल ऑफ़ ठौठ है सभी आलिम उन के खिलाफ हो गए है. भारत में उन का विरोध हो रहा है इस लिए आज कल गल्फ में जयादा समय बिता रहे है . दुबई में भी उन्हों ने अपना स्कूल खोला है और साउदी में भी खोलने वाले है.
अफज़ल भाई आपको जानकार हैरानी सी होगी की में तो बचपन में कुछ समय के लिए छुटभय्या तालिबान सा भी हो चूका हु अब वो अलग बात हे की उस हाल में भी में धार्मिक तो बहुत ज़्यादा था मगर तब भी मुझे हिन्दुओ से कोई नफरत या चिढ़ नहीं थी लेकिन था तब में एक हल्का फुल्का तालिबान टाइप
अफज़ल भाई सवाल ये हे की आखिर रिज़ल्ट क्या हे ? इतना पैसा इतनी सभाय चंदा टी वि चेनेल स्कूल भाषण उपदेश ये वो इतना कुछ आखिर नतीजा क्या हे ? बाकी दुनिया की तरह ही मुसलमानो में भी कौन सी अच्छे ईमानदारी नेकी सादगी भाई चारा बराबरी बढ़ रही हे ? सब कुछ वैसा ही तो हे जैसा जाकिर साहब से पहले था ? आखिर अरबो रुपया खर्च करवा कर रिज़ल्ट क्या हे ?
आफ़ज्ळ bhai maine quran suna hai osho suna hai. geeta padhi hai mahabharat dekhi hai guru granth sahib to ghar main paath hota tha . mujhe kisi main ek doosre se nafrat nazar nahin aaee. Quran mein Ashok ke raaz ke bare mein likha hai agar poochoge to sura ka number bata doonge likha hai” Arab se le kar center Asia tak ek raaj hai jisme kabhi chori nahin hoti gunaah nahin hote koee uspar hamla karne kee soch nahin sakta” udhar isi soora mein darj hai “Quraish zalim ligon ka hujoom tha” doosri baat quraan paak main arbon dollar ikatthe karne wale ko kya bola hai tum batao zakir kya hai akhir?? mohammad sahib ke ek chacha wo bhi the jo likhte the “he shiva mujhe ek din hindoostan kee dhartee ka de de uske badle sari zindagi lele ” aap btaen ke ham to rehte hi yahin hain …..
mai ye dekh raha hun ki lagatar hindu dharm guruon ki pol khul rahi hai to ab ap log ab musalmano pe kichad u6al rahe ho ye apki kamzori hai agar aapke pas thos subut hai to court me awaaz uthaiye yahan mai ye zarur kahaunga k khisiyani billi khamba noche
अंसारी साहब ये लेख मरहूम साज़िद रशीद जी ने 2009 या 2010 जनसत्ता में लिखा था जो मेरे पास रखा था सो मेने पाठको खासकर मुस्लिम पाठको को पहुचना उचित समझा में एक सुन्नी सैय्यद देवबंदी हु मगर किसी हिन्दू मुस्लिम शिया सुन्नी देवबंदी बरेलवी कम्पीटीशन तेरी मेरी मुझे कोई दिलचस्पी नहीं हे सबको अपना अपना आत्मनिरीक्षण करना चाहिए” पहले आप पहले आप ” में गाडी निकल जाती हे मेरा कहना हे ”सवाल ये हे की आखिर रिज़ल्ट क्या हे ? इतना पैसा इतनी सभाय चंदा टी वि चेनेल स्कूल भाषण उपदेश ये वो इतना कुछ आखिर नतीजा क्या हे ? बाकी दुनिया की तरह ही मुसलमानो में भी कौन सी अच्छाई ईमानदारी नेकी सादगी भाई चारा बराबरी बढ़ रही हे ? सब कुछ वैसा ही तो हे जैसा जाकिर साहब से पहले था ? आखिर अरबो रुपया खर्च करवा कर रिज़ल्ट क्या हे ? ” क्या सिर्फ पांच – सौ – पांच सो लोगो का धर्मान्तरण करवा कर हम खुश हे ? इससे उपमहादीप के 90 करोड़ हिन्दू और 60 करोड़ मुस्लिम के आंकड़े पर कोई फर्क नहीं पड़ता हे और सभी भाइयो प्लीज़ इल्तज़ा हे की रोमन में नहीं नागरी में ही लिखे
जाकिर साहब अपनी सभाओ में हिन्दुओ का धर्मान्तरण करवाते हे उन्हें इस्लाम कबूल करवाते हे उसके वीडियो यु यु ट्यूब पर डाले जाते हे ज़ाहिर हे हमारे कुछ लोग इस पर उन्हें बेहद पसंद करते होंगे और किसी और सवाल जवाब जवाबदेही की आवशयकता ही नहीं समझते होंगे मगर हम तो सवाल करेंगे की भाई की धर्मान्तरण क्यों ? ज़ाहिर हे इसलिए की शिर्क गुनाह हे और हम चाहते हे की लोग शिर्क ना करे इस्लाम में आये ठीक सही हे . मगर मसला ये हे की हिन्दू जब इस्लाम में आएगा तो वो वो शायद बरेलवी ही बनेगा अब उधर हमारे मित्र महाकटटरपन्ति वासी भाई बरेलवियो को भी शिर्क का दोषी मानते हे और अगर में गलत नहीं हु तो जाकिर साहब का भी बरेलवियो से विवाद हुआ था तो हमारा तो कहना यही हे की अरबो रुपया आया खर्च हुआ कोई समाजसेवा नहीं ? कोई मुसलमानो का भला नहीं ? कोई किसी के अमाल में बदलाव नहीं ? शिया सुन्नी देवबंदी बरेलवी विवाद में वर्द्धि ? लिबरल हिन्दुओ से भी बुरे बने ? हिन्दू कटट्रपंथ को उल्टा फायदा जिसका ही नतीजा की मोदी को बहुमत और फिर अल्लाह माफ़ करे वासी भाई की बात मानु तो फिर शिर्क का भी खात्मा नहीं तो हमें हासिल वसूल क्या हे ?
अंसारी भाई ऊपर नहीं नीचे यहाँ मेने कुछ सवाल किये हे इनका जवाब दीजिये की हासिल वसूल क्या हे ? और मेने कब मुसलमानो के खिलाफ लिखा हे ? लाइए दिखाइए कॉपी पेस्ट करके ? आपसे पहले भी कई महापुरुष आये ये इल्जाम लगाया और खिसक लिए कोई मेरी एक लाइन भी इस्लाम तो क्या किसी भी मज़हब के खिलाफ आज तक नहीं दिखा सके हे और ना दिखा पाएंगे क्योकि में इस तरह लिखता ही नहीं हु . और हिन्दुओ के खिलाफ तो नहीं मगर हिन्दू सम्पर्दयिको के खिलाफ मेने हज़ारो बार लिखा हे यही देख लीजिये . और होंगे साज़िद रशीद कम्युनिस्ट मगर उन्होंने भी किसी भी मज़हब के खिलाफ मेरी जानकारी में तो नहीं लिखा बाकी आपकी जानकारी बढ़ा दू भारत में कम्युनिस्ट पार्टी के कई बड़े वो भी संस्थापक लीडर मुस्लिम थे ही शौकत उसमानी मुज्जफर अहमद सज़्ज़ाद ज़ाहिर इसके आलावा फेज़ साहिर मज़रूह आदि अनगिनत नाम वाम थे ही और हमारा ईमान मज़बूत हे मुझे किसी के सर्टिफिकेट की जरुरत नहीं हे और ना ही किसी जाकिर नायक की बात काटने से कोई सवाल उठाने से कोई इस्लाम से ख़ारिज हो जाता हे ये सोच आपको ही मुबारक हो और बता दू की हम तो बहुत सभ्य तरीके से अपनी बात रखते हे उधर देखिये की हरियाणा साहित्य अकादमी के सदस्य सीनियर लेखक तनवीर जाफरी तो लिखते हे की ” जाकिर को मारो जूते चार ” http://visfot.com/index.php/current-affairs/6223-%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B0-%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%88%E0%A4%95-%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8B-%E0%A4%9C%E0%A5%82%E0%A4%A4%E0%A5%87-%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B0.html जाइए इन्हे इस्लाम से ख़ारिज करवाइये ? हम तो हमेशा बिना किसी की दिलाजारी के ही सवाल उठाते हे
जाकिर साहब की लोकप्रियता की बड़ी वजह उनकी फर्राटेदार अंग्रेजी भी हे उदारीकरण के बाद भारत में जमकर पैसा आया और जमकर तनाव आये खासकर उदारीकरण का दूसरा दौर 2001 से शुरू होने पर तब ही देश में बाबाओ की बाढ़ सी आने लगी लेकिन भारत में एक वर्ग ऐसा भी हे जो अंग्रेजी के माध्यम से जो पालने से लेकर- कब्र शमशान तक हमेशा खुद को अलग और ऊँचा दिखाना पसंद करता हे इसी वर्ग को ध्यान में रखते हुए बाद में अंग्रेजी बाबाओ की एक एक नयी जमात उभरने लगी इसके दो बड़े नाम श्री श्री रवि शंकर और ये जाकिर साहब हे
अफज़ल भाई अब ये देखिये जाकिर साहब के सपोटरो के पास कितना तर्कों का अकाल हे ? मेने इनसे पूछा की रिज़ल्ट क्या——————–? आगे क्या——————- ? हे कोई जवाब ? हम दस दस बीस बीस कॉमेंट करते हे मगर कोई दो चार भी कॉमेंट करना इनके बस का रोग नहीं हे इनका हाल वही हे जो पाकिस्तानी तालिबान समर्थक पत्रकार अंसार अब्बासी का हे जिनसे दूसरे पत्रकार जावेद चौधरी ने दो चार सवाल किये तो कोई जवाब नहीं https://www.youtube.com/watch?v=enZ-AWpRw9Y
इसमें कोई शक नहीं हे की जाकिर साहब अतिलोकप्रिय हे तभी तो साज़िद साहब के इस लेख को राजेंदर माथुर जी के लेख से छह गुणा अधिक व्यू मिले खेर जाकिर साहब के जो सपोटर हे उन्हें हमारी बातो पर गौर करना चाहिए ये कोई ब्लासफेमी नहीं हे हमने यह बात फुलत मदरसे से जुड़े रहे इस्लामी विद्वान पि के एस खान शेरानी ( जोधपुर ) साहब से भी कही और हमारी बात सुनकर हम डपटा नहीं लताड़ा नहीं क्योकि लताड़ते तो सिर्फ वही हे जो इन बातो की आड़ में अपने हित साध रहे होते हे pks
October 26,2014 at 06:13 PM GMT+05:30
तबलीघी जॅमाट को यूं नकारना पानी के साथ बच्चा भी बाहर फेंकने जैसा है…
खालिस ईमान की दावत में तबलीघ जॅमाट सा कोई सानी नहीं..
मैने कई शराबी, जुआरी और अंटी सोशियल लोगो को ईमान पर मज़बूत होते और काम के होते देखा है…
पक्का ईमान (दिखावे और झूठ का नहीं) इंसान को दुनिया में भी काम का ही बनाता है… ps को जवाब )- sikander hayat
October 27,2014 at 12:38 PM GMT+05:30
पी के एस जी भारतीये उपमहदीप मे 60 क्रोड मुस्लिम है जिनके बीच इस कदर धर्मपर्चारक जुटे हुए हे इस कदर पैसा अरब देशो से आ रहा हे कितनी ही धार्मिक हस्तिया करोड़ो अरबो में खेल रही हे फिर भी कोई एक गाव भी ऐसा नहीं बस सका हे जहा इस्लामी आदर्शो के अनुसार चार मुस्लिम बिना किसी उंच नीच भेदभाव तेरी मेरी के रह रहो हे सिर्फ एक गाव एक मोहल्ला एक बिल्डिंग भी ऐसी नहीं हे इसमें किसकी नाकामयाबी हे ? कही तो गलती हो रही है मुसलमानो की ना आपस मे कोई एकता है ना गेर मुस्लिमो से बन पा रही है ? ना दुनिया मे कोई कमाल दिखा पा रहे है ना ही दीन पर चल कर दुनियादारी को छोड़ ही पा रहे है क्या इस पर चर्चा करना कोई ब्लासफेमी हे ? बताइये कहा लिखा हे इस्लाम में कुरान में हदीसो में की जमीनी सच्चाइयो से मुह फेर लो उन पर ध्यान मत दो – ? कही मनाही नही है जमीनी हालात से हमे आंख मिलनी ही होगी
एक से एक भरष्ट मुस्लिम रहनुमा भी पड़े हुए हे क्या मजाल जो किसी को छुआ भी गया हो ? उधर एक शूरवीर ने एक लड़की गौहर को थप्पड़ मार दिया कोई ताज़्ज़ुब नहीं ये असल में समाज में लगातार बढ़ते जा रहे कटटरपन्तियो का ही कारनामा हे कोई अच्छाई सच्चाई ईमानदारी फैलाना इनके बस का रोग नहीं हे ये केवल कटट्रपंथ फैला सकते हे जो यु ही इधर उधर टककरे मारता फिरेगा
ये आदमी वेटर बताया गया हे जैसा की हमने कई बार बताया की चाहे वो मोदी दीवाने हो चाहे ये मुस्लिम कटटरपन्ति भीड़ ( नेता नहीं नेता पैसे वाले और अशराफिया ) निम्न मध्यमवर्गीय और मध्यमवर्गीय लोगो की होती हे इन्हे उदारीकरण के बाद आगे बढ़ने और नीचे गिरने दोनों का डबल डबल ज़बरदस्त तनाव झेलना पड़ा जिसके” पेन किलर ” के रूप में बाबाओ और कटटरपन्ति नेताओ की फ़ौज़ सामने आ गयी और ”पेन किलर ” के तो नुक्सान ही नुक्सान और साइड इफेकट होते ही हे होते ही हे
वहव चिश्ती साहब , गौहर ख़ान और आकील मे से कौन आपकी राय मे इस्लाम के हिसाब से ईमान पर है ?? आप इस बार किसके साथ हो 🙂
zakir naik ko islam quransharif ka ilm hi nahi……sirf yaad kiya he kya matlab hota he pta hi nahi;;;;;agar zakir naik muslim he qransharif ka ilm he to usko kya ye nahi malum ki islam me kisi bhi mazhab ko nicha dikhane ki izazat nahi…..sabhi dharm ki izzat karne ki baat kahi gayi he…………agar zakir naik me himmat he to muj se charcha kare wo muj se jeet nahi payega….wo jaha bulaye me waha apne khrch pe jaauga..
शब्बीर अली जी ये शायद आपका पहला कॉमेंट हे इस साइट पर आपका बहुत बहुत इस्तकबाल हे आते रहिये रिक्वेस्ट हे की हो सके तो नागरी में ही लिखे शुक्रिया
हयात साहब आप अपने ब्लॉग के साथ न्याय नहीं कर पाये शायद आप इतने क़ाबिल नहीं है की ब्लॉग लिख सकें अगर ब्लॉग लिखने का शौक़ है तो दोनों आँखे खुली रखिए, क्युकी एक आँख पर पट्टी बांध कर जब आप कोई चीज़ देखते हैं तो आप काने होते हैं न की वो सामने वाला जिसे आप देख रहे हैं – ये भी हो सकता है के आप शायद किसी एक सम्प्रदाय विशेष से ताल्लुक रखते हो जिसकी वजह से आपको ज़्यादा तकलीफ हो रही है इस्लाम के फैलने से – अल्लाह आपको और हम सभी को सही दीन की समझ अता फरमाये और इस्लाम को उसी चश्मे से देखने की तौफ़ीक़ अता करे जो हमें हमारे आक़ा जनाब मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम अता करके गए हैं.
में मुस्लिम हु और सुन्नी हु और शुद्ध सय्यद हु दादा नाना दोनों की तरफ से और मेरा कोई ब्लॉग नहीं हे और लेख भी मेरा नहीं हे मरहूम साज़िद रशीद का हे में उनसे सहमत हु और यहाँ अफज़ल भाई की साइट पर आपका बहुत बहुत इस्तकबाल हे हमारी बाते अगर गलत हे तो आप चाहे तो लेख लिख कर भी हमारी बातो की धज़ज़िया उड़ा सकते हे शुक्रिया
जिसने सुरज चॉद बनाया जिसने तारो को चमकाया जिसने सारा जगत बनाया हम सिर्फ उसी इश्वर के गुण गाये उसी के आगे शीस झुकाये। म।।।ये खरबो जबाबो का एक जबाब है।
Mai es article pe itna kahunga ki jahil Hayat Sikander dawara dusro ko article ke jariye Ek nek emandar jaise sakhsiyt par galat iljam lagaya hai eska faisla Allah Qayamat me karega
बात तो सही है मगर भक्त नहीं माने गे और गाली गलौज देना शुरू कर दे गे . फिर भी एक अच्छी विवेचना आप ने की है
अंसारी जी आपने दोनों लेखो पर एक ही बात की हे अगर ये गलती से नहीं हुआ हे तो बहुत ही अच्छी बात हे आपका ये कॉमेंट ही दोनों लेखो पर सही ही हे आप हम जितना ”जाकिर नायको की फ़ौज़ ” को कमजोर करेंगे उतना ही मोदी और संघ परिवार कमजोर होंगे हम जितना इन तरह तरह के जाकिरो नायको को सर चढ़ाएंगे उतना ही मोदी और संघ परिवार भी मज़बूत होंगे
wahab chisti main tumhe bata du ki Dr. jakir yahoodiyo ka dalal hai.aur aap waqi chisti hai to is jakir ko spot aap ek dhongi ho jaisa jakir hai
यहूदिओं का दलाल आरएसएस हे भाई अपने को करेक्ट करो
जब मैं कठमुल्लाओं के लिए कम-अकल या जाहिल शब्द का प्रयोग करता हूँ, तो इसके दायरे मे जाकिर नायक जैसे लोग नही आते. ये बहुत ही विद्वान व्यक्ति हैं, तीक्ष्ण दिमाग़ के हैं.
इन्हे मे काबिल वकील की श्रेणी मे रखना चाहता हूँ. एक वकील जब केस लड़ता है तो वो अपने मुवक्किल के पक्ष को ही रखता है, दूसरे पक्ष की हर दलील को खारिज करना, और अपने मुवक्किल को निर्दोष बताना ही इनका कार्य है, जो वो पूरी लगन और ईमानदारी से कर रहे हैं.
एक वकील का अपने पेशे के प्रति ईमानदार होते समय, अपनी दलील और व्यक्तिगत विचारों के प्रति समन्वय ज़रूरी नही.
जाकिर नायक, इस्लाम (वहाबी छाप) का केस लड़ रहे हैं, और उनकी फीस, सौदी अरब के धनाड्य हुक्मरान अदा कर रहे हैं.
वकील अपना काम कर रहा है, न्यायाधीश हम सब है, सब अपना अपना फ़ैसला सुनाते हैं.
जाकिर साहब, इस्लाम को मुवक्किल बना कर, दुनिया को द्वि-ध्रुवी बनाना चाह रहे हैं. यानी मुसलमान या गैर मुसलमान.
दुनिया को सिर्फ़ दो रंगो मे बाँटना ही, दुनिया को रंगहीन बनाने जैसा है. जो उनके चपेट मे आ गया, उसने अल्लाह की बनाई, खुदाई के तमाम रंगो से भी अपने को मरहूम कर लिया.
बेवकूफ तो छोड़ो असल में जाकिर भाई ये सभी उपमहाद्वीप की धर्म की दुनिया के बड़े खिलाडी ठीक किसी बड़े बिज़नेसमैन टायकून की तरह ही बेहद होशियार चतुर चालाक और काबिल तो होते ही हे अपनी क़ाबलियत का ये अपने फायदे के लिए गलत इस्तेमाल करते हे इसलिए नागरी में इनके लिए ”समझदार ” नहीं ” चतुर ” शब्द प्रयोग होता हे व्यापारियों की तरह ही दक्षिण एशिया में धर्म की दुनिया के भी लाखो खिलाडी हे इनमे जो अधिक चतुर होते हे वो जाकिर नाईक राम देव कादरी रविशंकर आसाराम की तरह से बड़े बड़े बनते हे बिज़नेस के टाटा बिड़ला अम्बानियों की तरह ही , कहते हे की चतुर व्यापारी , एस्किमो लोगो को भी बर्फ बेच सकता हे ठीक ऐसे ही इन जाकिर नायकों ने बाकी दुनिया से मुकाबिल पहले से खासे रिलिजियस मुसलमानो को और रिलिजियस बनने क ठेका फंडिंग हासिल की और बहुत बड़े नाम बन गए खेर हमारा तो फ़र्ज़ हे की हम लोगो को इन सभी धर्म आस्था के व्यापारियों की दुनिया से बाहर निकाले इन व्यापारियों के पूंजीवाद के सामने अपने सेकुलर समाजवाद को खड़ा करे तो वो काम हम किसी हालत में भी नहीं छोड़ेंगे
मैने तो यही महसूस किया है कि धर्म के कारोबारियों के पास वोही जाता है, जिसके मन मे पाप हो, छल हो या फिर वो जो निराश हो, और उसका साहस टूट गया हो.
जो पापी होता है, उसके दिल पे थोड़ा बहुत तो बोझ होता ही है, लेकिन अपनी वासनाओ पे काबू नही होता. ऐसे लोग, जब इन धर्म के ठेकेदारो के पास पहुँचते हैं तो ये इनको पापो से मुक्ति का भक्ति मार्ग बतलाते हैं, जो आडंबारो पे आधारित होते हैं. आडंबर बहुत आसान है, चारित्रिक दृढ़ता बहुत मुश्किल. कमजोर इंसान, अपनी बुराइयाँ दूर करने की बजाय, आडंबर के रास्ते पवित्र होने की कोशिश करता है.
और जो निराश है, दुखी है, उसको गुमराह करना सबसे आसान होता है, क्यूंकी विवेक ने साथ छोड़ दिया होता है.
बिलकुल ऐसा ही हे इसलिए जैसे ही उदारीकरण के बाद लोगो ने बिना मेहनत के बिना पसीने के अनापशनाप पैसा कमाया वैसे ही इन जाकिर नायकों रविशंकरो आसराम झांसाराम रामदेव की बाढ़ सी आ गयी अब हम हे हमारे जीवन में हमेशा समस्याओं के अम्बार रहे हे और हे मगर ना तो जीवन में मेने ना मेरे परिवार ने एक पैसा भी बिना मेहनत का पाया या चाहा , ना एक भी बुरा काम किया . कभी भी नहीं अब में हु मेरी तो खेर कोई स्प्रिचुअल नीड नहीं हे चलो मेरी बात अलग हे बाकि दस लोगो की तो हे मेरी मदर तो बेहद रिलिजियस हे पिछले पचास सालो से शायद ही कभी एक भी वक्त की नमाज़ छोड़ी हो तो सवाल ही नहीं मगर हमारे यहाँ तो कोई भी किसी बाबा पीर फ़क़ीर या किसी जाकिर नायक को कभी भी मुंह नहीं लगाता हे मेरी मदर नमाज़ रोजे के बाद सास बहु छाप सीरियल तो देखती हे जाकिर के चैनल को उन्होंने कभी नहीं पूछा . जीवन में इंसान हो स्वस्थ आध्यात्मिकता हो तो ईमानदारी की कमाई हो रिश्तों नातो की प्रॉपर्टी हो मज़बूत दोस्ती बॉन्डिंग आदि हो यानि जीवन में कोई ”इमोशनल वेक्यूम ” ना हो तो इन धर्म के व्यापारियों की कोई जरुरत ही नहीं हे
मैं तो खुद भी फेसबुक या ट्विटर से नही जुड़ा. लेकिन मुझे इस तरह के फोरम पे भी धार्मिक कट्टरपंथियों से बहस करने मे अच्छा नही लगता.
लेकिन फिर यही तो बात, अन्य लोगो पे भी लागू होती है. भले ही किसी की भी जिंदगी मे कितना भी सुकून हो, कोई क्यूँ, इन जाहिल लोगो से अपना सिर पकाए?
मैं कई दिनों बाद यहाँ सक्रिय हुआ, लेकिन जब निष्क्रिय था, तब अपने मे निखार कर रहा था. इस तरह के मंच भी समय तो माँगते ही है.
कट्टरपंथ से लड़ने मे गालियाँ खानी पड़ेगी, समय भी जाता है, जितना बड़ा मंच, उतनी सर्दर्दी. मैने तो अनेको बार सोचा, लेकिन अनुभव यही रहा कि अच्छी संगत मे उठो बैठो, इन जाहिल लोगो को इनकी जहालत पे छोड़ दो.
बात सही हे आप जितने समय सरलता से दे सके उतना ही दे बाकी मेरा कहना यही हे की असल समय तो फेसबुक और टिवीटर पर ख़राब होता हे जहां एक भी अच्छी बहस नहीं होती केवल प्रोपेगेंडा या अंध समर्थन या अंध विरोध ही होता दीखता हे इसका कारण वही हे जो मेने ऊपर बताया की ऐसा लगता हे की लोग इन माध्यमों में इतना समय ख़राब कर लेते हे की उनकी अक्ल मारी गयी हे न कुछ अच्छा पढ़ते हे न कोई जीवन के अनुभव ही बताते हे अच्छा लिखने को सबसे पहले अच्छा पढ़ना भी पढता हे इसलिए सोशल मिडिया के कमेंट सारे रद्दी दीखते हे और लेखक भी 90 % कुंठित या प्रोपेगंडे बाज़ हे इसलिए मेने कहा की मुझे सोशल मिडिया पर आप जैसे गहराई वाले कमेंट बिलकुल नहीं दिखे बाकी जाहिलो से ही सही अगर सही बहस हो तो मुझे लगता हे की उसका फायदा देर सवेर होगा होगा ही हमें विश्वास रखना चाहिए अगर हमने सही बात शालीनता से गहराई से बताई हे तो लोगो पर उसका असर होगा ही . भले ही कमेंट या क्लिक न मिले कोई नई उससे बहुत जरुरी हे लोगो का बदलना लोग फिर आगे और बहस करेंगे नेट पर ही नहीं असल जीवन के मंचो पर , हमें उम्मीद करनी चाहिए की ऐसा होगा और हो भी रहा हे हाल में मेरा एक कज़िन जो आप ही की तरह बेहद काबिल हे और ( खासा रिलिजियस भी ) नोबेल पुरस्कार विजेताओं के साथ सलाम दुआ रखता हे हाल ही एक अनुभव के बाद उसने खुद फोन करके बताया की की” भाई सिकन्दर ” एजुकेटिड कठमुल्लाशाहि ” के प्रभाव पर पर तू जो बताता था वो सब का सब सच पाया हे” अब जब ऐसा काबिल आदमी इन विषयों पर बोलेगा तो जाने कितने लोग सुनेंगे समझेंगे और बदलाव आएगा आमीन
फेसबुक सोशल मिडिया की गंद के कारण ही एक इतना बड़ा बढ़िया महा विध्वान और सेकुलर संजय तिवारी संपादक विस्फोट तक बदल गया हे उनके अनुसार वो इन माध्यमों की ” इंशाल्लाह माशाल्लाह बिर्गेड ” से खफा हे नतीजा इतना अच्छा और निष्पक्ष लेखक और संपादक अब दक्षिणपंथी खेमे में हे अब उन्हें मोदी सरकार में कोई खराबी नहीं नज़र आती हे इसमें नुकसान सभी शोषितों का ही हे काश तिवारी जी फेसबुक पर इतना समय ना देते ? में इस विषय पर लेख की कोशिश करूँगा की संजय तिवारी कन्वर्ट क्यों हुए
फेसबुक टिवीटर आदि के लाइक शेयर कमेंट आदि लोगो को एक ” किक ” देते हे इससे लोगो में सेलिब्रेटी होने का” सिंड्रोम ” या कहे केमिकल लोचा पैदा होता हे अब सेलिब्रेटी कौन होता हे वही न जिसके बारे में लोग बाते करते सोचते हे बहस करते हे तो ये माध्यम और इसके लाइक शेयर कमेंट आम लोगो को वही ”सेलिब्रेटी किक ” देते हे इसलिए लोग बढ़ चढ़ कर इन पर अपना समय ख़राब कर रहे हे जैसा की होता ही हे की बड़े और चतुर खिलाडी अपने प्रचार को इनका इस्तेमाल करता हे उसके लिए तो ठीक हे मगर आम आदमी को इस किक यानि नशे से थोड़ा बचना ही चाहिए
हम तो खेर किसी सोशल प्लेटफार्म वाटस ऐप वगैरह पर नहीं हे तो इतना पता नहीं हे मगर जरूर ऐसा होता होगा एक लेखिका मधु जी बड़ा सही लिखती हे” इनबॉक्स के विभूति जी ”· लोकप्रिय सीरियल “भाभी जी घर पे है” ने हलकी फुलकी , मनोरंजक शैली में घर घर में तगड़ी पैठ बना ली है | बड़ी बड़ी , सदा हतप्रभ सी आँखों वाली , भोली भाली ग्रामीण छटा से रंगी अंगूरी भाभी | नादान इतनी के हमारे छैला बाबू , शहरी लम्पट “विभूति जी “ के इशारे समझे ही न | दूसरी तरफ आधुनिक ,स्मार्ट फैशेनेएबल अनिता भाभी | ….इनके इस आधुनिक रूप पर लट्टू सीधेसाधे ,नौकरी पेशा गृहस्थ तिवारी जी ..| कही न कही खुद को हासिल खुशियों से खुश न रहने की पुरुष साइकलोजी को कामेडी की चाशनी में लपेट , हास्यजनक परिस्थितयो से गद्दम गड्ड कर गुद्गुदाता सीरियल ..| सीरियल की सबसे जहीन बात है के हास्य के नाम पर फूहड़ता से अब तक दूरी को खूबसूरती से मेन्टेन रखा गया है | तिवारी जी और विभूति जी वर्ग के पुरुषो से सभी महिलाओं को व्यवहारिक जीवन में भी दो चार होना पड़ता है | फेसबुक के विभूति जी को आजकल दरवाज़े की कॉल बेल बजा पूछने की जरुरत नही है “ भाभी जी घर पे है ???” | जब पत्नी रसोई में व्यस्त रहती है ये छिछोरे जनाब अपने मोबाइल से महिलाओं के इनबॉक्स में शराफत में लिपटे , एकतरफा गुड मोर्निंग और गुड नाईट हाजरी भेजा करते है | किसी मनोचित उत्तर की प्रतीक्षा में रूठी पत्नी को मनाने में इनका मेंस ईगो आड़े आता है लेकिन 50 गुड मोर्निंग के बाद कोई जवाब न मिले तो भी ये पीड़ा का पुजारी निराश नही होता | रसोई में सुबह से रात एक करती उस अर्धांगिनी को घर के बगीचे से एक फूल तोड़ न देने वाले शरीफ शरीफ से तिवारी जी इनबॉक्स में मुफ्त के गुलदस्तो के स्टीकर भेजते HI ,HI ,टाइप किये बस कोमा में जाने वाले होते है |सभी ऐसे नही होते मुझे भी पता है | आपको लग रहा होगा इन मानसिक विकलांगो की संख्या गिनी चुनी है तो आप गलत है जनाब | आपके आस पास कितने विभूति जी है देखने एक महिला आई डी बना के देखिये और महिलाओं की झुंझलाहट और क्रोध का शायद हल्का हल्का सा अंदाज़ लगा पाए …| वास्तविक जीवन में भी इनकी अंगूरी भाभी के चेहरे बदलते रहते है लेकिन रज्जुहीन , बावरे ,शराफत का चोगा पहने खीसे निपोरते विभूति जी का आशिकाना मिजाज़ सारी लानत झेलकर भी नही बदलता बिलकुल सीरियल की ही तरह
ये हमारे यहाँ की वो साइकि हे जाकिर भाई जो हर जगह हर पल ” सस्ते में बिना ज़हमत के ” सवाब पीटने के चक्कर में रहती हे बस हर समय इस्लाम की बड़ी बड़ी बाते करके खास कर गेर मुस्लिमो के सामने इस्लाम के ” झंडे गाड़ गाड़ ” कर बड़ी खुश होती हे इन्हे बड़ा सेटिस्फेक्शन मिलता हे सोचते हे हमारा सवाब खाता लबालब भर गया ये खुश बेहद खुश बस फिर ये दुनियावी कामो में लग जाते हे और इनमे वैसे ही रहते हे जैसे की कोई भी गेर मुस्लिम बिलकुल ” नार्मल ” वही स्वार्थ वही ईर्ष्या वही हवस लूट वही तकब्बुर वही ऊंच नीच शोषण अमीरी गरीबी जाती वर्ग . और एक बात की इन ”जाकिर नायकों ” का भला हो इन्हे के कारण ये हो रहा हे की लोग आजकल बड़ी धूमधाम से छोटे छोटे बच्चों की रोज खुशआई ( पहले रोजे की ख़ुशी ) कर रहे हे खुश होने में हर्ज़ नहीं लेकिन भव्य आयोजन क्यों ? समझ नहीं आता की आपके पास अगर इतना पैसा हे तो छोटा आयोजन करके बाकी पेसो से गरीबो की मदद क्यों नहीं करते ? वो नहीं करते बल्कि अपने पेसो का प्रदर्शन करते हे यानि वही सब नार्मल जो बाकी दुनिया में होता हे
इसका एक कारण हीन भावना से ग्रसित होना भी है. एक तो किसी ओर समुदाय मे धर्म के नाम पे इतने सशस्त्र क्रांतिकारी नही हुए हैं, जिन्होने पूरी दुनिया को चौंका दिया हो, जितने हमारे समुदाय मे है.
दूसरा, आज के दौर मे तरक्की के जो पैमाने है, दुनियावी तालीम है, जिसने पूरी दुनिया मे तारीफे बटोरी है, उसमे हम सबसे पीछे है. हिंदू, ईसाई, सिख, यहूदी, बौद्ध, नास्तिक सब से आख़िरी. जबकि हमारी आबादी दुनिया की 25% है. इन सब हालातों ने एक आम मुसलमान को इतना हीन भावना मे ग्रसित कर दिया है कि हमे कोई भी ऐसी घटना कि फलाँ सेलिब्रिटी ने इस्लाम अपना लिया, कलमा पढ़ लिया, हमे सुकून देता है. हम इन अपवादो को फिर बड़ी ज़ोर शोर से प्रचारित करते हैं, किसी कंपनी के selsmen की तरह. ये जाकिर नायक टाइप लोग, मज़हब को एक प्रोडक्ट की तरह बेचने मे लगे रहते हैं.
हम अपनी हीन भावना से ऐसे लोगो से उम्मीदे बाँधे रहते हैं. क्यूंकी इस हीन भावना का सही इलाज, जोकि विभिन्न क्षेत्रो मे अपनी उपस्थिति को बढ़ाने का प्रयास है, करने की हिम्मत हम मे नही.
हमे पता है, ऐसा करने मे बरसो लगते हैं. जिन देशो या समुदायो ने इन क्षेत्रो मे तरक्की के पायदान चढ़े हैं, एक दिन या एक बरस मे नही चढ़े.
ऐसे मे निकम्मे लोगो की तरह, हम संतुलित विश्लेषण की बजाय, उस एक छोटे से हिस्से का ही ढोल बजाए, जो हमे हीन भावना से बचाये. पूरी तस्वीर को हम देखना ही नही चाहते, क्यूंकी हिम्मत ही नही है.
अल्लाह भला करे इन जाकिर नायकों की फौज का ( एक लेडी जाकिर मेरी सिस्टरकज़िन भी ) इनके लगातार एक्टिव रहने का हि नतीजा यह भी हुआ की मुसलमानो में कोई भी हो जैसे ही उसके पास रातो रात पैसा आता हे ( वो चाहे मेहनत का हो बईमानी लूट रिश्वत शोषण का हो इत्तफ़ाक़ का हो जमीं जायदाद के दामों में आये उछाल का हो ) उसकी जिंदगी में एक आराम एक ठहराव आ जाता हे तो वो फ़ौरन ही जरुरत से ज़्यादा रिलिजियस हो जाता हे कोढ़ में खाज की ये तो होता नहीं हे की वो दुनियावी हवस कम कर ले नहीं वो तो उतनी ही रहती हे बल्कि बढ़ ही रही हे लेकिन अधिक रिलिजियस वो जरूर हुआ जा रहा हे जरुरत से अधिक रिलिजियस होना अब इसमें बुराई ये होती हे की फिर उसे समाजसुधार समाजसेवा सामाजिक क्रांति आदि आदि बातो में कोई दिलचस्पी नहीं रहती हे क्योकि उसकी मन और जीवन में इन बातो का स्पेस उसकी जाकिर नायकों की कृपा से बढ़ी अधिक रिलिजियस मानसिकता घेर लेती हे जबकि जरूरत आज इस तरह के लोगो की सबसे अधिक हे http://khabarkikhabar.com/archives/1145
Sanjay Tiwari
14 hrs ·
बीस लोगों का गला काटनेवाले आतंकियों में दो निबरस इस्लाम और रोहन इम्तियाज को आतंकवादी बनाने में ब्रिटेन के अंजेम चौधरी और भारत के जाकिर नाईक की “शिक्षाओं” का अहम योगदान है।
जांच एजंसियों और बांग्ला मीडिया की जांच पड़ताल में यह बात उभरकर सामने आयी है कि ये दोनों नौजवान इस्लाम के इन दोनों प्रचारकों से बहुत प्रभावित थे और ट्विटर पर उस #शामीविटनेस एकाउंट को फालो करते थे जो भारत का ही एक मुस्लिम नौजवान चलाता था, मेहदी मसरूर विश्वास। पिछले साल चैनल-फोर के खुलासे के बाद मेहदीं मसरूर को बंगलौर से गिरफ्तार किया गया था। #ढाका
बहुत से पढ़े लिखे मुस्लिम जो मुस्लिम कटटरपंथ के खिलाफ एक शब्द भी बोलना ब्लासफेमी समझ कर चुप रहते हे वो आतंकवादियों के हिन्दू नाम प्रचारित कर रहे हे इनमे प्रमुख हे शायद ज़ाहिद साहब इस पर अफ़ज़ल भाई ने बताया हे Mohammed Afzal Khan
18 hrs ·
बंगलादेश के सात हत्यारों में से 5 की पहचान हो गयी है जिनके नाम हैं “आकाश, बिकाश, डॉन, बंधोन और रिपोन” ! कुछ मुस्लिम भाई फेसबुक पे इसे हिन्दू आतंकवादी या संघ का आतंकवादी बन कर पेश कर रहे है ! असल में उन्हें जानकारी कम है क्योकि बांग्लादेश में इसी तरह के नाम मुसलमानो के होते है ! मेरे कुछ बांग्लादेश दोस्त है जो मुस्लमान है उनका नाम सुमन , सोजोल, कुणाल है ! अगर आप रूस , टर्की,चीन,इंडोनेशिया , मलेसिया कही भी चले जाए वह मुसलमानो के नाम उस देश के सभ्यता के अनुसार ही मिलेगा आप को वहाँ नाम से धर्म का पता करना मुश्किल हो जाएगा !भारत और पाकिस्तान के मुस्लमान ही है जो अरब के इतने गुलाम होगये के उन्हों ने वहाँ के नाम रखने शुरू कर दिए जब के यहाँ के मुस्लमान बेवक़ूफ़ है उन्हें कौन समझाए के भाई वहाँ जो नबी या सहबी थे इस्लाम से पहले भी उनका नाम वही था और इस्लाम के बाद भी नाम ! नाम का संबंध सभ्यता से है न के धर्म से !
ढाका हो या ऑर्लेंडो गोलाबारी जो भी हो रहा हे उसके लिए मुसलमानो का पढ़ा लिखा तबका जिम्मेदार हे इसका बिलकुल सटीक प्रतिनिधि मेरा कज़िन हे ( और भी कई लोग देखे ) बहुत ही काबिल बहुत शरीफ नेक बहुत ही पढ़ा लिखा ये अलीगढ़ का टॉपर हे अब वही ऊँचे पद पर हे ये तबका क्या करता हे की गेर मुस्लिमो के बीच बैठ कर अपनी बड़ी सेकुलर लिबरल प्रोग्रेसिव छवि पेश करता हे जीवन में तरक्की करता हे तरक्की बिना शांति और भाई चारे के हो नहीं सकती हे सो गेर मुस्लिम हो या शिया बरेलवी अहमदी कोई भी हो ये मिलजुल कर रहता हे काम करता हे मगर अब जब किसी शुद्ध मुस्लिम महफ़िल में कोई लोकल जाकिर नाईक दीखता हे तोउसका कोई विरोध नहीं करता चुप्पी साध लेता हे कायरता के कारण सोचता हे की की अगर इन कठमुल्लाओं का कोई विरोध किया तो पता नहीं कौन सी बिजली आसमान से आकर सीधे इसके घर पर गिरेगी ? या कभी कभी तो सस्ते में सवाब के लालच में इन कठमुल्लाओं का सपोर्ट कर जाता हे ये सपोर्ट सिर्फ जुबानी या फ़र्ज़ी होता हे मगर ऐसे काबिल आदमी का समर्थन ? इससे जहां लोकल से लेकर अंतर्राष्ट्रीय जाकिर नायकों का हौसला बढ़ता हे वही एक आम मुस्लिम या कम पढ़ा लिखा या कोई जिंदगी से परेशान बेजार दुविधा ग्रस्त मुस्लिम जब मेरे कज़िन जेसो को ये सब करते देखता हे तो फिर उसके मन में भी इनके लिए बेहद सम्मान और उत्सुकता जागती हे वो जीवन में किसी मकसद या अहमियत की खातिर इनसे जुड़ जाता हे ये समस्या के बीज होते हे आगे जरुरी नहीं की कुछ बुरा ही हो मगर होने को फिर कुछ भी हो भी सकता हे
मुझे क्या लगता है कि अगर कोई पढ़ा-लिखा मुस्लिम, दिलो दिमाग़ से सेकुलर है तो वो आम तौर पे कट्टरपंथियो के खिलाफ बोलने से इसलिए डरता है, क्यूंकी इन कट्टरपंथियो के समर्थक बहुत जज्बाती और बदजुबान होते हैं. अगर जान का ख़तरा ना भी हो तो, गालियाँ खाने की हिम्मत भी सब मे नही होती. हालाँकि, मुझे भी लगता है कि इनके खिलाफ चुप्पी तोड़नी चाहिए.
बाकी जो लोग, बांग्लादेशी आतंकियों के बंगाली नामो से उन्हे हिंदू समझ कर, तुरंत फेसबुक और वाटसेप पे मेसेज फारवर्ड करते हैं, वो तो जहनी तौर पे कट्टरपंथी ही है. क्यूंकी आज के दौर मे, सेकुलर और संतुलित व्यक्ति, इस तरह की सूचनाओ की सत्यता जाँचता है.
बाकी पढ़े-लिखे उदासीन उदारवादियों से तो निराशा होती ही है, लेकिन पढ़-लिख कर भी इन कट्टरपंथियो के चंगुल मे फँसे मुसलमानो की बड़ी आबादी देखकर बहुत पीड़ा होती है.
जाकिर नायक टाइप लोग ( व्यक्ति विशेष की बात नहीं कर रहा हे एक साइकि हे ) या कोई भी मज़हब के व्यापारी उन्ही बड़े बड़े बिजनेस टॉयकूनो की तरह ही तो हे जो अपना एम्पायर खड़ा करने को लोगो का शोषण करते हे प्रकर्ति का शोषण करते टैक्स बचाते हे गेर जरुरी चीज़ो की लत लगाते हे वीभत्स उपभोक्तावाद को बढ़ावा देते हे सस्ते क़र्ज़ ( चंदा फंडिंग ) लेते हे विज्ञापनों में जो अपना प्रोडक्ट न इस्तेमाल करे उसे गवार ज़ाहिल पिछड़ा बताते हे सामाजिक और प्राकर्तिक पर्यवारण का विनाश करते हे जंगे भी करवाते हे प्रथम द्वितीय विष्वयुद्ध इराक युद्ध आदि देश को लूट ते फायदा उठाते हे और खुद को महान देशभक्त भी बताते हे कहते हे की हम देश ( मज़हब ) के लिए अठारह घंटे काम करते हे हर बड़े बिज़नेस टायकून के आस पास कई बेहद पढ़े लिखे लोग होते हे इनके आस पास भी कई डॉकटर इंजिनियर मिलेंगे फिर कसम खाने को कुछेक अच्छे काम भी करते हे सब कुछ वही सब तो
अब देखिये वहि ददर्नाक रवैय्या बांग्लादेश में इतना बड़ा हादसा हो गया हे करने वाले जाकिर साहब से इम्प्रेस बताय जा रहे हे और इधर रविश कुमार के प्रोग्राम में कोई मिल्लीगज़ट के संपादक और उधर फेसबुक पर ज़ाहिद साहब ( व्यक्ति विशेष नहीं साइकि की बात ) दोनों पढ़े लिखे जाकिर नाईक का बेहूदा बचाव कर रहे हे फंडा वही घिसा पीटा की ” जाओ पहले इसके साइन लेकर पहले उसके साइन लेकर आओ ” ये सब असल में बहाना हे असल बात वही हे जो साजिद रशीद ने बताई थी की कोई भी व्यक्ति या संगटन अपने नाम के साथ इस्लामी जोड़ तो बस ये उसकी निंदा ब्लासफेमी के बराबर समझते हे डरते हे की अगर इनकी निंदा की तो पता नहीं क्या होगा आसमन से बिजली सारे घर छोड़ कर पूछते पूछते इन्ही के सर पर गिरेगी ———-? ड्राइव करेंगे तो पीछे कोई शराबी ड्राइवर ——— ? डेंगू का सीजन होगा तो ? रिपोर्ट आएगी तो उसमे कैंसर———- ? आदि इन्हे ये डर रहता हे इनका डर समाज को इस्लाम को इंसानियत को इण्डिया बहुत भरी पड़ता हे खेर हम नहीं डरते हम अपना काम आखिरी सांस तक जारी रखेंगे
जाकिर नायक साहब कह चुके हैं कि इस्लाम एक शांति का मज़हब है. यक़ीनन है, लेकिन हम जैसे लोग कई सालों से कह रहे हैं कि जाकिर नायक की इस्लाम की व्याख्या, दुनिया भर के बुद्धिजीवियों जिसमे मुसलमान भी शामिल है की नज़र मे कतई शांति को बढ़ावा देने वाली नही है, बल्कि नफरत बढने वाली है.
सिकंदर भाई का ये लेख डेढ़ वर्ष पहले इस साइट पे आया, और उससे कई वर्ष पहले से वो जाकिर नायकों के ख़तरे से मुस्लिम समुदाय को आगाह करते आ रहे हैं. लेकिन लेख पे प्रतिक्रिया पढ़िए, लगभग हर मुसलमान ने सिकंदर भाई पे गुस्सा निकाला.
लेकिन आज की तारीख मे तथ्यो पे गौर करिए. ढाका मे आतंक मे शामिल रोहन के पिता ने इस बात पे रोशनी डाली है कि वो जाकिर नायक से प्रभावित था. इसी तरह, हैदराबाद से पकड़े गये संदिग्ध आतंकवादियो मे से भी कुछ इनसे प्रभावित हैं, पता लगा है.
लेकिन हम लोगो के लिए जाकिर साहब, वो हीरो हैं, जिन्हे ना सिर्फ़ क़ुरान, हदीसे बल्कि वेद, पुराण, बाइबल, गुरु ग्रंथ साहब ज़ुबानी याद है, शानदार इंग्लिश मे फ़ौरन लाखो की पब्लिक के सामने इनका तुरंत पेजवार हवाला देते हैं. लाखो की भीड़ के सामने 15-20 गैर मुस्लिमो को लाजवाब कर कलमा पढ़वा देते हैं. और ऐसे व्यक्ति की आलोचना तो वोही कर सकता है, जो मुसलमान ना हो.
लेकिन एक बार आतंकी रोहन के पिता की जगह, अपने आप को रख के देखिए. क्या जाकिर नायक की ये तमाम खूबियाँ भी आपको उस दर्द और पीड़ा को मिटाने मे मदद कर सकती है, जो उन्हे मिल गयी. वो भी आम मुसलमानो की तरह, रोहन को आधुनिक तालीम तो दिलाना चाह रहा था, लेकिन जाकिर नायको की तरफ आकर्षण को अध्यात्म या व्यक्ति विकास की भूल समझ बैठा.
लोग ये भी कह सकते हैं कि वो भी जाकिर नायक से प्रभावित हैं, उनके अनेको वीडियो देख चुके हैं, लेकिन वो तो आतंकी नही बने. तो जनाब सिगरेट के पेकेट पे केंसर की चेतावनी का अर्थ ये नही कि हर सिगरेट पीने वाला केंसर का शिकार हो ही जाएगा.
अगर अपने बच्चो को रोहन जैसा बनने पे आपको गर्व नही होगा, तो एक बार रोहन के पिता की पीड़ा को समझिए, उनके उद्गारो को सुनिए, पढ़िए.
जाकिर नायको की सोच, कैसे रोहन जैसे लोग बना सकती है, हम उसके भी कारण आपको बता सकते हैं. ज़रूरत बिना भावुक और पूर्वाग्रही हुए, संवाद की है.
जाकिर भाई आज से ठीक दस बारह साल पहले में और मेरे अलीगढ़ के हाई प्रोफ़ाइल कज़िन इन मुद्दों पर खूब बहस कर रहे थे वो कई और में सेकुलर अकेला और थकेला ? मेरी जम कर झंड की जाती यहाँ तक की मेरा एक और कज़िन जो मेरे खेमे में था वो भी सामने भीड़ से घबरा कर एन टाइम पर पाला बदल देता हे और सब मिलकर मुझे किताबी , दुनिया ना जानने वाला , नास्तिक , मुस्लिम विरोधी , हिन्दुओ को खुश करने वाला बताते और मुझ पर आभासी अंडे टमाटरों जूते चप्पलो की बरसात हुई तब जाकिर नायकों की कोई खास मौजूदगी भी ना थी न वेस्ट यु पि ( हमारा इलाका ) की मुस्लिम आबादी का इतना तब्लीगिकरण हुआ था लेकिन ना जाने कैसे सिर्फ बेहद जमीनी अनुभवों से मुझे इल्हाम हो गया था जबकि मेरे कज़िन मुझ से ज़्यादा पढ़ने वाले थे मेरा कहना यही था जो आज हो रहा हे की आने वाले समय में पूंजीवादी आधुनिकता के दबावों तनावों अकेलेपन से घबरा घबरा मुस्लिम युवा अधिक धार्मिक होने की तरफ अग्र्सर होंगे और जब जरुरत से ज़्यादा अगसर होंगे तो मुल्ला नेता पूंजीपति आदि मिल कर इनका इस्तेमाल करेंगे और बहुत क्लेश होगा सेम वही सब हो रहा हे
जनाब तमाम इस्लाम में नहीं बल्कि मुसलमानो के अंदर का फिरका ही इसलाम विरोधी है ! फिरके का जो जहर बोया गया था अब घनादार दरख्त बन चुका है अब ये उलमाओ की जिम्मेदारी नही बलकि आम मुसलमानो की जिममेदारी कि वो इस्लाम की सही तस्वीर जाने और समझें और इसमे तफरका पैदा करने वालो का खुलकर विरोध और बायकाट करे। ज़ाकिर नायक अगर इस्लाम की सही तस्वीर पेश कर रहे हैं तो आप उनकी बातों को सुनने के बाद कुरान की रोशनी में जाँचे परखे अमल करना ना करना आपका मसला है अगर वो इस्लाम से हट कर बात कर रहे हैं जैसा की आप आरोप लगा रहे हैं तो भाई आखिर मे रात दिन उनके फलोवर बढ़ते क्यूँ जा रहे हैं ….. ? मसलकी इख़्तेलाफ का मुक़ाबला दलीलों से किया जाना चाहिए संघियों की गोद में बैठकर नहीं … कुछ लोग संघियों की गोद में बैठकर अपना मसलकी एजेंडा चला रहे हैं और ज़ाकिर नाइक का विरोध करने में हद दर्जे तक गिर गए हैं।। इस तरह की गिरावट का पता यहाँ चल रहा है की कुछ हिन्दू भाई बहुत ही खूबसूरती से लेखक साहब का समर्थन कर रहे हैं अरे जनाब बुतपरस्त बुतपरसती का समर्थन नहीं करेगा तो क्या बूट शिकन का ?? कम अक्ली का जामा पहन कर ”साला मैं तो शाह बन गया ” गीत ग्वा लेने से ”शाह नहीं बन सकते जनाब ???
सिकंदर साहब , आपने कुरान जरूर पढ़ा होगा मगर सिर्फ इसलिए कि आप सवाब कमा सकें । न की इस लिए की आप पढ़ने के बाद कोई इल्म हासिल कर सकें । अब तक के आपके कमेंट को पढ़ने के बाद जो पता चला । यह एक बात हुई । दूसरी बात यह की आपका मगझ उस रीफ़त को छू ही नहीं सकता जो आज पूरी दुनिया मे हो रहा है । संपादक बनना आसान है मगर असल बुनियाद को समझ पाना आपके बस की बात नहीं … यहूदी हिकमत -ए अमली का यह कारनामा आपके बस की बात नहीं आप नहीं पहुँच सकते वहाँ तक ? आप पैदाइशी मुसलमान हैं विरासत मे मुसलमान हुवे हैं । ज़रा नज़र उठाये और यूरोप को देखिये जिसने भी इस्लाम को पढ़ा और खुद पर आजमाया वो सारे के सारे इस्लाम का दमन थामे हुवे हैं उनकी तादाद लगातार बढ़ रही है । यहाँ ज़ाकिर साहब पर आप बहस का मुद्दा बनाए हुवे हैं और जीतने भी क़ब्र पुजवा हैं उनको गाली दे रहे हैं …. आपको मैं चुनौती देता हूँ की कुरान की एक पारा या एक लाइन भी दिखा दीजिये जिसमे मज़ार को पक्का कर यूर्स लगाया जाने या बूतो की पूजा की इजाज़त हो । अगर आप मुसलमान हैं तो कुरान और इस्लाम पर यकीदा तो होगा ही । समाज में समरसता , ना हो बराबरी ना हो तो खाना जंगी के हालात तो रहेंगे ही ”इस्लाम ” यही तो कहता है । और जब इस तरह के फितने रहेंगे तो खाना जंगी होगी ही । लिखने से पहले कुरान का मुताला कीजिये तब लिखिए सुरखुरू बनने के फिराक मे कहीं आप ”तसलीमा नसरीन ना बन जाएँ ”……..
में संपादक नहीं हु सिर्फ लेखक हु और कुछ नहीं संपादक अफ़ज़ल भाई ही हे और पाठको जो संघी हमारे खून के प्यासे हे और जिन संघियो से हमने इतनी इतनी बहस की हे उसका एक % भी हन्नान साहब ने नहीं की होगी ( और हर बार संघी ही बहस से भागे हम नहीं ) आज हमें उन्ही संघियो की गोद में बताया जा रहा हे इस पर हमें कोई ताजुब नहीं हे हम तो सौ बार बता चुके हे की एक शुद्ध सेकुलर भारतीय मुस्लिम का काम दुनिया में सबसे सबसे कठिन हे इससे मुश्किल कोई काम नहीं हे उधर हमें तस्लीमा बताया जा रहा हे ये लेख तो शायद हवा में कही उड़ता हुआ अफ़ज़ल भाई को मिला होगा —— ? – ”तब लिखिए सुरखुरू बनने के फिराक मे कहीं आप ”तसलीमा नसरीन ना बन जाएँ ”…….. ” ———–? http://khabarkikhabar.com/archives/1269
जनाब सिकंदर साहब आप इतना हताश क्यूँ हैं ?? आप लेखक हैं यह जानकर खुशी दौड़ गयी रगों मे हाँ हाँ इस लिए की आप जरूर संघियों को गुमराह कर देते होंगे ? तभी तो ये आपके मुरीद हो जाते हैं । आपको यह लेख पढ़ लेना चाहिए था की इसमें सच्चाई कितनी है गुमरहियात की बात संघियों को सिखाइएगा जनाब सच्चे इस्लाम पसंद इन्सानो को नहीं उन्हें मालूम है ”इस्लाम ” क्या है जो सटा उसी का हो गया ॥
हन्नान साहब बुरा मत मानिये में आपकी उम्र की नहीं मानसिकता की बात कर रहा हु मेरे कज़िन की उम्र तो आप से आधी होगी मगर आराम की सुरक्षित जिंदगी के कारण पिले पिले हो चुके हे अल्लाह का करना ऐसा हुआ की मुझे कभी आराम की जिंदगी मिली नहीं हमेशा इनसिक्योरिटी और अब अब तो तम्मना ही नहीं रही हे आराम की जिंदगी की खेर आप जैसे हज़ारो लोगो से में मिलता रहता हु देखता ऑब्जर्व करता रहता हु आप असल में थके हुए लोग हे क्रांति समाजसुधार परिवर्तन ये सब बहुत ही दमखम का काम हे क्रांति और परिवर्तन बहुत ही लम्बी और थकाने वाली पकाने वाली प्रकिर्या हे और अल्लाह का शुक्र हे हमारे शरीर बाज़ुओ और इरादों में बहुत जान हे बहुत ज़बरदस्त हम अभी अगले तिस चालीस सालो तक पुरे जोश से काम करने का इरादा रखते हे जबकि आप जैसे लोग थक चुके हे आपमें जोश नहीं हे किसी परिवर्तन का और उसके लिए खपने का पकने का ? तो होता ये हे की दीन धर्म की बड़ी बड़ी बाते ( सिर्फ बाते प्रेक्टिकल जीरो ) और दीन धर्म के जाकिर जैसे व्यापारियों की तारीफ कर करके आपको बड़ा सेटिस्फेक्शन मिलता हे बड़ी संतुष्टि आप सोचते हे आपने इस दुनिया से गेरइस्लामी धर्म ही नहीं बहुत सी बुराइया भी ख़त्म कर दी हे तो आप बड़े खुश की चलो हो गया काम अब जब हम जैसे टुच्चे जब इस रंग में भंग डालते हे और आइना दिखाते हे तो आप का हम पर क्रोधित होना लाज़मी हे ———— जारी
आपकी बात मुझे क्यूँ बुरा लगेगी जनाब ॥ मुझे पता है आप सो कॉल्ड सेकुलर हैं …. दुनिया का हर कित्ता छान मारिए आपके अलावा कोई सेकुलर है ही नहीं यह आपकी सोच बता रही है ? मेरी सोच के लोगों से आपकी कभी मुलाक़ात होती ही नहीं होगी जनाब वरना आप इस्लाम मे कमी निकालने का काम करते ही नहीं । इसकी भी एक वजह है आपने इस्लाम को पढ़ा ही नहीं और न जानने की कोशिश की । बुनियाद मजबूत हो तो इमारत भी मजबूत होती है । आप परेशान हाल इंसान रहे हैं जैसा की आप कह रहे हैं इसकी भी एक वजह है आपके अंदर ईमान की कमी जो है । थोथा सेकुलर सेकुलर का राग अलापते अलापते कमजोर हो चुके हैं आप । जिस इंसान को दुनिया और इसी दुनिया के अंदर दीन की सलाहियत न हो वो इंसान फर्जी सेकुलर का ढोंग करता फिर्ता है । आप जिसके बारे मे उल्टा फूलता कह रहे हैं अरे भाई आप जानते ही कितना हैं ………… ?? डाक्टर ज़ाकिर नाईक न सिर्फ भारत बल्कि सम्पूर्ण विश्व के अधिकतर मुसलमानों के दिलों की धड़कन हैं इसका सुबूत दुनियाभर में होने वाले उनके कार्यक्रमों में लाखों लोगों का जमा होना है। दुनिया भर में किसी भी धर्म का कोई भी धर्म गुरु ऐसा नहीं जिसको सुनने के लिए आस्ट्रेलया, जापान, भारत, अरबदेश, अफ्रीका, यूरोप, अमरीका यानी सम्पूर्ण विश्व में इतनी बड़ी संख्या में लोग जमा होते हों।
फिर कुछ आप जैसे लोग उनका विरोध क्यों करते हैं? मामला दो और दो चार की तरह बिल्कुल साफ है, डाक्टर ज़ाकिर नाईक सभी धर्म के लोगों से अपना धार्मिक गरंथ पढ़ने को कहते हैं और पाखंडी मुल्ला/पंडित के जाल से बाहर निकलने को कहते हैं इसलिए धर्म के वह ठेकेदार जिनकी दुकानें धर्म के नाम पर ही चलती हैं डाक्टर ज़ाकिर नाईक के दुश्मन बन बैठे हैं। डाक्टर ज़ाकिर नाईक ने मुस्लिम समाज में सदियों से चले आ रहे आडम्बर, पाखण्ड और नस्लीय पुरोहित वाद को चुनौती दी है इसलिए डाक्टर ज़ाकिर नाईक के विरोध में सभी धर्म के ब्राह्मणवादी लामबद्ध हो गए हैं और दोनों धर्म के ब्राह्मणवादी अपने मीडियाई चमचों के साथ मिलकर डाक्टर ज़ाकिर नाईक को निशाने पर लिए हुए हैं | आप अपना आपा न खोये जनाब उम्र आपकी लंबी है काम आयेगा आगे ॥
एक बात पहले ही साफ़ कर दू की इस मुद्दे पर बहस हन्नान साहब के बस का रोग नहीं हे बहस करना आसान नहीं होता हे बहुत पढ़ना होता हे बहुत चिंतन करना होता हे जीवन की पाठशाला भी चाहिए होती तब जाकर विविध पक्षों की जानकारी होती हे तब आप कोई सार्थक बहस कर पाते हे इसलिए आप देखे की इतने बड़े सोशल मिडिया पर इतने बुड़बक हे मगर कही आपको कोई बहस नहीं दिखेगी सिर्फ कुरता फाड़ कीचड़ उछाल होलि और गंद और पेड़ प्रोपेगेंडा मिलेगा बहस नहीं मिलेगी आपको कही कोई जाकिर हुसैन भाई जैसी गहरी टिपणिया नहीं मिलेगी कही भी नहीं . इसलिए में लोगो को सलाह देता हु की वो सोशल मिडिया का कम ही इस्तेमाल किया करे अब लगता यही हे की हन्नान साहब सोशल मिडिया पर काफी समय बिता कर आये हे इसलिए उन्हें हम पर गुस्सा चढ़ा वर्ना ये लेख और बहस को तो डेढ़ साल से भी अधिक हो गए सोशल मिडिया पर हिन्दू कठमुल्लाओं ने गंद मचाई हुई हे और वो जाकिर नाईक और उसके बहाने इस्लाम पर जम कर हमले कर रहे हे उसी से हन्नान साहब को क्रोध आया होगा और वो जाकिर के समर्थन में उतर आये वो ये नहीं समझ पाते की ये हिन्दू कठमुल्लाओं की सोची समझी पॉलिसी हे वो इस्लाम पर हमले करेंगे आप बदले में जाकिर और उनकी कम्युनल कतरपन्ति मुहिमों का समर्थन करोगे जिससे शुद्ध सेकुलर हिन्दू भी निराश होगा टूटेगा यानि साम्प्रदायिकता बढ़ेगी गंद मचेगी जितनी गंद मचेगी उतनी ही हिन्दू कठमुल्ला मानसिकता खुश होगी और इनके अवतार मोदी का अगले बिस साल तक देश की छाती पर मूंग दलने का सपना सफल होगा इसलिए हम कहते हे की गलत बात का जवाब गलत बात से नहीं शांत और सही बात से दो साम्प्रदायिकता को साम्प्रदायिकता से नहीं उदारता सहिष्णुता से हराओ
अभी आप अपनी सोच की रीफ़त के करीब हैं ही नहीं जनाब ? हन्नान अंसारी क्या हैं क्या सोच है जानने के लिए आपको अपनी पूरी उम्र सर्फ करनी पड़ेगी । जी भाई साहब हम आपकी तरह परेशान हाल इंसान नहीं हैं न मन में न दिल में कार की इन्सेकुरिती हा एहसास ही भरा है जैसा की आपके अंदर । आप हिन्दू मुस्लिम में अंटके रहिए दुनिया में 2 इज़्म के झगड़े विचारों के झगड़े जो हो रहे हैं ना इंका दिफा इस्लाम से ही होगा और होने के कगार पर है तभी यह जो कुछ हो रहा है न उसी की निशानी है अब पागल हाथी जब मरेगा तो कुछ एकड़ ज़मीन तो रौंदी ही जाएगी आप जैसे नकारात्मक सोच के लोग क्या समझेंगे ? आप कुछ सो कॉल्ड सेकुलर लोगों को खुश करते रहिए यही एक दिन आपके मुखालिफ में खड़े नज़र आएंगे …………… ॥ डाक्टर ज़ाकिर नाईक ने कभी किसी आतंकवादी घटना का समर्थन नहीं किया बल्कि उल्टा वह आतंकवाद को इस्लाम विरोधी बताते आए हैं। इसके सुबूत में वह क़ुरआन की आयत पेश करते हैं सूरह माईदह सूरह न. 5 आयत 32 : “अगर किसी व्यक्ति ने किसी की हत्या कर दी सिवाए इसके कि वह किसी का क़ातिल हो या धरती पर फ़साद फैलाने वाला हो तो ऐसा है जैसे उसने सारे इंसानों की हत्या कर दी और अगर किसी ने किसी व्यक्ति की जान बचा ली तो ऐसा है जैसे उसने सारे इंसानों की जान बचा ली।”
सर जी वही बात जो अपने कज़िन को कहता हु आपको भी कहता हु की ईमान की कमी हे आप लोगो में इसलिए डरपोक हो आप लोग बहुत डरपोक डरते हो बहुत डरते हो डर ये नहीं की दुनिया में कुछ हो जाएगा डर ये हे की आसमान से बिजलियाँ गिरेगी हादसे होंगे ये आपकी ईमान की कमजोरी दर्शाता हे हमें कोई डर नहीं हे क्योकि हमारा ईमान मज़बूत हे हमने जिंदगी में भी एक सेकण्ड के लिए भी ना किसी के साथ बुरा किया ना कभी बुराई का एक इंच भी साथ दिया इसलिए हम बेखौफ हे आप लोग ? इसलिए कुछ भी तो कटटरपंथ आतंकवाद के खिलाफ नहीं बोलते एक शब्द भी नहीं बल्कि मुस्लिम कटरपंथ आतंकवाद का वज़ूद ही मानने से इन्कार करते हो पिछले एक महीने से या सालो से क्या क्या नहीं हुआ कितने जुल्म हुए मगर आप लोग कुछ नहीं बोल सकते हर जुल्म आपकी नज़रो में इस्लाम के खिलाफ गेर मुस्लिमो की एक साज़िश हे ये असल में आपका कम्फर्ट ज़ोन हे जिससे एक अंगूठा भी बाहर निकालने से आप डरते हो मेरा कज़िन भी केंद्रीय कर्मचारी होने के नाते सातवें वेतन आयोग की ख़ुशी और उसे जस्टिफाय कर रहा हे मगर कटटरपंथ के खिलाफ एक लफ्ज़ भी लिखने की उसकिु मजाल नहीं होती चाहे मासूमो पर जितने जुल्म हो जाकिर नायक औ दूसरे कई लोगो ने ऐसा होवा खड़ा कर दिया हे की कटटरपंथ के खिलाफ बोलना मतलब इस्लाम के खिलाफ बोलना तो आप सोचते हो की अगर हमने कटटरपंथ के खिलाफ कोई स्टेण्ड लिया तो पता नहीं हम पर क्या आसमानी बिजलियाँ गिरेगी हमारी आराम की जिंदगी में खलल; आएगा ये आपकी ईमान की कमजोरी दर्शाता हे डरपोक हो आप लोग ———- जारी
सिकंदर साहब आप के इरादे नेक है पर एक हारी हुई लड़ाई लड़ रहे है मुसीबत ये है की आप साथ में हिन्दू कत्तरपंथ को भी लपेट लेते हैं जिसकी कोई जरूरत नही है उसके खिलाफ तो पत्रकार नेता बुद्धजीवी स्वघोसित सेक्युलर सब खड़े है वो तो ३२ दातो के बीच जीभ की तरह ह हिन्दू कत्तरपंथ तो केवल प्रतिक्रियावादी ह इस्लामिक कत्तरपंथ स्वघोसित स्वपोषित ह उससे लड़िय सारे कत्तरपंथ की जननी ह मगर आप केवल गोल गोल चक्कर लगते रहेंगे अपनी सीमाओ से पार जाकर लड़ने का आप में साहस नही है जहा से इस्लामिक कत्तरपंथ खाद पानी पता है याद रखिये कोई गीता के श्लोक और बाइबिल वर्सेज नही बता पाने पर गला नही रेट रहा है और जयदा साहस है तो बढिए इस लड़ाई में वर्ना केवल शुत्रमुर्गी तरीके से तो केवल समय नष्ट होता है
बर्जेश भाई आपकी ये बात जायज़ हे ” उसके खिलाफ तो पत्रकार नेता बुद्धजीवी स्वघोसित सेक्युलर सब खड़े ” इसलिए में हिन्दू कटरपंथ के के खिलाफ कोई खास लिखता भी नहीं हु प्रिंट में तो मेरे जितने लेख छपे सब मुस्लिम कटटरपंथ के खिलाफ ही रहे नेट पर भी मेने ( 2011 से ) 90 % मुस्लिम कटरपंथ के खिलाफ लिखे हां ये भी सच हे की में कई बार ज़बरदस्ती हिन्दू कटटरपंथ के खिलाफ भी लिखता हु मज़बूरी ये हे की नेट पर हिन्दू कटट्रपन्तियो की बहुत भारी मौजूदगी हे वो रत दिन दिन रात इस्लाम और मुसलमानो के खिलाफ बिलकुल पागलो की तरह लिखते हे कई तो बिलकुल मनोरोगी से हो चुके हे ( देवांशु , तुफेल , आनद , पंकज झा आदि ) जैसे हाल ही में इनफ़ोसिस कर्मचारी की हत्या पर ——– ? अब होता ये हे की नेट पर कम उम्र लोग ही अधिक हे उनके प्रचार में बह जाने का बड़ा खतरा रहता हे जब हम मुस्लिम कटटरपंथ के खिलाफ लिखते हे तो शंका रहती हे की वो हमें कही इन घिनोने हिन्दूकठमुल्लाओं के साथ सेम पेज पर ना समझ ले इसलिए सब लिखना पड़ता हे लेकिन ये भी सच हे की भारत में आप हिन्दू कटटरपंथ को मुस्लिम कटरपंथ से कम समझने की भूल ना करे मुस्लिम कटटरपंथ अगर खून पीता हे तो हिन्दू कटटरपंथ खून चूसने का शौकीन हे शायद आंबेडकर के शब्दों में की ” मुस्लमान ( कटट्रपन्ति ) क्रूर हे तो हिन्दू ( कटट्रपन्ति ) कमीने ” आपने लिखा ”अपनी सीमाओ से पार जाकर लड़ने का आप में साहस नही है ” में समझ रहा हु की आप क्या चाह रहे हे की हम तस्लीमा रश्दी शमशाद इलाही शम्स आदि की तरह इस्लामी आस्था की जड़ो पर हमला करे तो इस विषय पर हमारी जाकिर भाई की और सचिन परदेसी जी की लम्बी बहस हुई थी यहाँ देख ले http://khabarkikhabar.com/archives/2625 और http://khabarkikhabar.com/archives/2659
बर्जेश भाई आपकी ये बात जायज़ हे ” उसके खिलाफ तो पत्रकार नेता बुद्धजीवी स्वघोसित सेक्युलर सब खड़े ” इसलिए में हिन्दू कटरपंथ के के खिलाफ कोई खास लिखता भी नहीं हु प्रिंट में तो मेरे जितने लेख छपे सब मुस्लिम कटटरपंथ के खिलाफ ही रहे नेट पर भी मेने ( 2011 से ) 90 % मुस्लिम कटरपंथ के खिलाफ लिखे हां ये भी सच हे की में कई बार ज़बरदस्ती हिन्दू कटटरपंथ के खिलाफ भी लिखता हु मज़बूरी ये हे की नेट पर हिन्दू कटट्रपन्तियो की बहुत भारी मौजूदगी हे वो रत दिन दिन रात इस्लाम और मुसलमानो के खिलाफ बिलकुल पागलो की तरह लिखते हे कई तो बिलकुल मनोरोगी से हो चुके हे ( देवांशु , तुफेल , आनद , पंकज झा आदि ) जैसे हाल ही में इनफ़ोसिस कर्मचारी की हत्या पर ——– ? अब होता ये हे की नेट पर कम उम्र लोग ही अधिक हे उनके प्रचार में बह जाने का बड़ा खतरा रहता हे जब हम मुस्लिम कटटरपंथ के खिलाफ लिखते हे तो शंका रहती हे की वो हमें कही इन घिनोने हिन्दूकठमुल्लाओं के साथ सेम पेज पर ना समझ ले इसलिए सब लिखना पड़ता हे लेकिन ये भी सच हे की भारत में आप हिन्दू कटटरपंथ को मुस्लिम कटरपंथ से कम समझने की भूल ना करे मुस्लिम कटटरपंथ अगर खून पीता हे तो हिन्दू कटटरपंथ खून चूसने का शौकीन हे शायद आंबेडकर के शब्दों में की ” मुस्लमान ( कटट्रपन्ति ) क्रूर हे तो हिन्दू ( कटट्रपन्ति ) कमीने ” आपने लिखा ”अपनी सीमाओ से पार जाकर लड़ने का आप में साहस नही है ” में समझ रहा हु की आप क्या चाह रहे हे की हम तस्लीमा रश्दी शमशाद इलाही शम्स आदि की तरह इस्लामी आस्था की जड़ो पर हमला करे वो में कभी नहीं करूँगा क्यों ? इस विषय पर हमारी जाकिर भाई की और सचिन परदेसी जी के बीच लम्बा विमर्श हुआ था यहाँ देख ले http://khabarkikhabar.com/archives/2625 और http://khabarkikhabar.com/archives/2659
बर्जेश भाई ऊपर आपका जवाब लिख दिया हे शायद लम्बा होने से मेन पेज पर कमेंट में नहीं शो हो रहा हे
बर्जेश भाई आपकी बात का लम्बा जवाब लिखा था शायद किसी तकनीकी गड़बड़ी से नहीं आ पाया पहले शो नहीं हो रहा था फिर डिलीट ही हो गया में सेव करना भी भूल गया खेर जो आपने कहा उसी विषय पर कुछ दिन पहले जाकिर हुसैन , सचिन जी और मेरा लम्बा विचार विमर्श हुआ था जो यहाँ ”विचार ” में लेख” फतवा को बदला जा सकता है और इस्लाम की भारतीय समझ पर वहाबी असर! ” पर हुई बहस में देख ले
आगे अभी हन्नान साहब ने जो जाकिर नाईक की शान में कसीदे पढ़े उन्हें भी तर्कों से काटा जाएगा लेकिन हां में भी नहीं चाहता की जाकिर नायक के खिलाफ कोई कार्यवाही हो वो भि भी इस ज़हरीली संघी सरकार के दुअरा—– ? इससे कोई फायदा नहीं हे अब तो हज़ारो जाकिर नायक दीखते हे ( एक तो मेरी ही कज़िन भी ) प्रतिबंध या कार्यवाही से ये और हीरो बन जाएंगे असल बात ये हे की सारी दुनिया में शुद्ध सेकुलर मुस्लिम वर्ग को हर तरह से सपोर्ट करे इससे ही दुनिया को मुस्लिम कटटरपंथ से छुटकारा मिलेगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो रहा हे क्योकि मुस्लिम कतरपंथ से काफी लोगो के निहित स्वार्थो के हित जुड़े हुए हे ———–जारी
बात केवल जाकिर नाईक की ही नहीं हे दुनिया भर में कही भी कोई भी कभी भी कैसे भी किसी भी अगर मुस्लिम यूनिटी सुप्रियोरिटी और एक्विल्टी की बात कर रहा हे तो समझ जाओ की वहां कोई हे परदे के आगे या पीछे या डीप में कोई हे जो इन बातो की आड़ में आज अपने व्यक्तिगत हित साध रहा हे हमेशा याद रखो इसका कोई अपवाद भी ना मिलेगा बात धर्मग्रंथो की नहीं हे बात हे हालात और इंसान की फ़ितरतों की उसकी हवस की हे उसी का अध्य्यन करते हुए मेने ये पाया . जैसे एक छोटा उद्धरण की इस समय भी कुछ छुटभय्ये ओवैसियों टाइप फेसबुकियो पर आरोप लग रहे हे की उन्होंने मुजफरनगर दंगो के राहत फंड में काफी पैसा खा लिया मुझे नहीं पता की क्या मामला हे मुजफरनगर दंगो के या कही के भी पीड़ितों के लिए काम करना बहुत अच्छी बात हे मगर अगर की रिलीफ करते हुए आप मुस्लिम यूनिटी का राग अलाप रहे हे तो मुझे तो कोई शक ही नहीं हे की आप इन बातो की आड़ में अपना हित साध रहे होंगे जैसे देखे भारत पाकिस्तान में कई मुस्लिम यूनिटी सुप्रियोटी का राग अलाप रहे धर्माधिकारी करोड़ो क्या अरबो की प्रॉपर्टी के मालिक बताय जाते हे इनका कोई पॉजिटिव रोल नहीं हे दूसरी तरफ अब्दुल सत्तार ईदी की इंसानियत देखिये वो ऐसे थे क्योकि वो कभी मुस्लिम यूनिटी सुप्रियोरिटी का एकवेल्टी ” बेसुरा ढोल ” नहीं बजाते थे अपने आस पास भी खूब चेक कर लीजिए इंसानियत उदारता रवादारी वफादारी उन्ही में होंगी जो कटरपंथ से दूर होंगे मेरी ना मानिये खुद ही ऑब्जर्व कीजिये अपने आस पास ————— ? —— जारी
जनाब सिकंदर साहब आप हलवा में गलती से पानी डाल कर गीला कर दिये हैं और जब खाना बेमकसद हो गया तो लप्सी का नाम दे दिये हैं ” । आप तभी से मुस्लिम कट्टरपंथ या यूं कहें की आप इस्लामी कट्टरपंथ का राग आलाप रहे हैं ? अरे आप इस्लामी कट्टरपंथ की परिभाषा क्या है जानते भी हैं ?? और अगर जानते हैं तो इसकी परिभाषा लिखिए तो सही । दूसरी बात यह की ” आप सिर्फ यह बता दीजिये की कबर पुजवा होना और मरने के बाद फतेहा करवाना ” क्या इस्लाम मे जायज़ है ? आपके इसी जवाब से आपकी ज़ेहनीयत का पता चल जाएगा ॥ जारी ……………………………
ताजुब हे सर इतनी मामूली सी बात की मुस्लिम कटरपंथ की परिभाषा क्या हे —-? इतनी मामूली सी बात भी आपको नहीं मालूम ——? साहब जो मज़हब के नाम पर कैसे भी क्लेश को बढ़ावा दे वो हुआ कटरपंथी क्लेश नहीं चाहिए हमको क्लेश किस बात का —–? इस्लाम में लड़ने को सिर्फ वहां कहा गए हे जहां कोई आपको इस्लाम प्रेक्टिस करने से रोक रहा हो —– ? वर्ना नहीं वर्ना तो तुम्हारा दीन तुम्हारे लिए मेरा मेरे लिए बात खत्म जब आपको कही कोई इस्लाम प्रेक्टिस करने से नहीं रोक रहा न यूरोप न भारत न अमेरिका न इज़राइल तो इनसे मज़हब के नाम पर कैसा क्लेश —- ? हां चीन से जरूर ख़बरें आती हे की वहां थोड़ा बहुत रोका जाता हे और उसके ही खिलाफ मुस्लिम कटरपंथी सबसे कम चु करते हे — ? आगे बात करते हे कबरपरस्ती वगैरह की तो साहब में एक सुन्नी सय्यद देवबंदी हु जिंदगी में भी मेने किसी मजार पर कदम नहीं रखा न रखूँगा एक हज़ार की भी जरुरत हे मगर अगर एक अरब रुपये भी दिए जा रहे हो तो भी नहीं नहि 100अरब दिए जाये तो भी न में शिर्क कर सकता न में एक घूंट शराब पी सकता न एक कौर सूअर का मांस खा सकता नहीं चाहे जो हो नहीं नहि . ये मेरी बात लेकिन किसी दूसरे से में इन बातो के लिए में क्लेश भी नहीं करूँगा अगर जाकिर कहते हे की सारे मजारो को गिरा देना चाहिए तो में कहता हु की देर किस बात की —- ? तीन औलादे हे तुम्हारी उनके चारो तरफ बम बांध कर या हाथ मे कुदाल देकर भेज दो गिराने ओर अगर नहीं भेजोगे तो चुपचाप अल्लाह अल्लाह करो दाल रोटी खाओ कोई तुम्हे मना नहीं कर रहा हे , न मुस्लिम न गेर मुस्लिम बात खत्म लेकिन अगर क्लेश को बढ़ावा दोंगे दूसरे के बच्चे मरवाओगे बेगुनाहों को मरवओेगे तो हम तो तुम्हे रोकेंगे ही इस्लाम का भी आदेश जिसने एक बेगुनाह को मारा उसने पूरी इंसानियत का कत्ल किया और इंसानियत के कत्ल होने से हम तो रोकेंगे ही आप भले ही डर जाए हम नहीं डरते किसी बेकस के अपने सामने कत्ल होने से पहले हम अपनी जान देना पसंद करेंगे ———— जारी
”एक सुन्नी सय्यद देवबंदी हु ” यानि की आप ”इस्लाम ” को नहीं बल्कि मानते हैं ? तभी तो आपने ”’एक सुन्नी सय्यद देवबंदी हु ” अपने बारे मे यह लिखा जो कुरान मे इसका ज़िक्र ही नहीं है । भाई यह किस धर्म की ”बला” है ? हद है आपकी सोच ? दोस्त लेख लिखने से पहले या कोई इस तरह का कमेंट लिखने से पहले सूरह अल – बकरा को पढ़ लिया करें ॥ आँखें खुल जाएंगी । नाम के मुसलमान हैं वो भी ”सय्यद देवबंदी ” ? ये ना जाने कौन सा इस्लाम गढ़ लिया है आपने ॥ आप ही जैसे मुसलमानो ने फ़ितना फसाद का बीज बो रक्खा है । सो कॉल्ड सेकुलर साहब देवबंदी जी आप क्या जानेंगे इस्लाम क्या है ? और तवारीख क्या है ? एक चोटी सी बानगी …………………………………..
”जब सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी{रह.} मैदान-ए-अमल मे आये थे तो उनका सबसे अधिक विरोध उन मुसलमानो ने किया था जिनका ईमान रोम मे गिरवी रखा हुआ था । ठीक एयइसे ही जैसे भारत के सेक्युलर व उनके अब्बा पंडित नेहरू का मुसलमानो के बारे मे क्या विचार था ये उस समय भी मुसलमानो को शंका भरी नज़रो से देखते थे तो ठीक इसी तरह उस समय सलाउद्दीन अय्यूबी ने सबसे पहले इन्ही आस्तीन के साँपो से मुकाबला किया था जैसे आज ज़ाकिर साहब को करना पड़ रहा है कुछ मुट्ठी भर कबर पुजवा उनका विरोध कर रहे हैं ।गेंडा तावीज मुजावरी करने वाले गैर इस्लामी काम करने वाले उनका विरोध कर रहे हैं जिस मे आप भी शामिल हैं । लेकिन घबराइए नहीं हर अच्छे काम मे कुछ बढ़ा आती है । जैसे सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी{रह.) को झेलनी पड़ी थी लेकिन फिर भी सहूनियो को शिकस्त दी क्यूंकि सहूनियो को शिकस्त देने से पहले आस्तीन के साँपो को कुचलना ज़यादा ज़रूरी था । नहीं तो इन आस्तीन के साँपो को जब भी मौका मिलता तो ये तुरंत सहूनियो से मिल जाते जिससे सहूनियो को ताक़त मिल जाती ।
मैं अच्छी तरह जानता हूँ की आपकी सोच अल्लाह ताला की मसलहत तक पहुँच ही नहीं सकती हाँ अगर आप कुरान को तर्जुमे के साथ पढ़कर मंथन करें तो आप जरूर मुसलमान हो जाएंगे ” देवबंदी ” या ”बरेल्वी ” का ज़िक्र तो इस्लाम मेँ कहीं है ही नहीं ॥ ये दोनों फिरके इस्लाम के दुश्मन हैं जी हाँ इनमे आप भी शामिल हैं ॥
चलिए गलती हो गयी ना में सुन्नी हु न में सय्यद हु न में देवबंदी हु सिर्फ मुस्लिम हु मगर इस्लाम के नाम पर मुझे किसी से भी कोई भी कैसा भी क्लेश नहीं चाहिए कोई लड़ाई झगड़ा मारकाट मुझे नहीं चाहिए क्योकि जरुरत नहीं हे अगर आप या आपका जाकिर मानते हे की जरुरत हे तो देर किस बात की में कल ही आप दोनों को ” मैदान ” में देखना चाहता हु लेकिन में जानता हु की क्लेश करना नहीं क्लेश करवाना कुछ लोगो को बेहद पसंद होता हे और ये सच्चे अच्छे कच्चे पक्के मुस्लिम होने के ये फतवे ये सर्टिफिकेट अपने पास रखिये मुझे किसी के सर्टिफिकेट की जरुरत नहीं हे ———– जारी
असल में कुछ लोगो की ज़हरीली फितरत होती हे ( खुद भी मरने वाले आतंकवादियों से भी खतरनाक होती हे ये फितरत ) की उन्हें दुनिया में भी मौज मारनी होती हे और मरने के बाद इन्हे जन्नत की फुल गारंटी चाहिए होती हे दुनिया में मौज मारने के लिए ये हर वो काम करते हे जो कोई भी करता हे हर दुनियावी हवस ऐसा आराम जरूरतों के पीछे ये भी भागते हे उसके लिए अच्छा बुरा चालाकी मक्कारी की जरुरत हो तो परहेज़ नहीं करते उसके बाद सोचते हे की मरने के बाद क्या होगा फिर इन्हे मरने के बाद जन्नत चाहिए होती हे उसे लिए एक रास्ता ये भी हे की आदमी रिलिजियस भी हो साथ ही साथ अच्छे काम भी करे लेकिन मसला ये हे की अच्छा बंनने आदर्शो पर चलना कोई आसान नहीं होता हे बहुत ही ज़्यादा मुश्किल होता हे अच्छा नेक ईमानदार बनना मतलब अपनी जिंदगी झंड कर लेना तो जब ये नहीं होता हे तो यही से पाखण्डो की कटटरपंथ की नीव पड़ती हे इसी नीव से जाकिर नायकों की मार्किट शुरू होती हे ये बताते हे की शुद्ध इस्लाम क्या हे ये ये ये ये ही सही हे ये करो वर्ना सच्चे मुसलमान नहीं रहोगे आदि आदि अब क्योकि अच्छा बनना आसान नहीं हे तो ये दूसरा रास्ता जो जाकिर नायक ( या कोई भी बाबा ) दिखाते हे लोग वो पकड़ लेते हे साथ ही में पेट्रो डॉलर से मिले सपोर्ट ने और आग में घी का काम किया इसलिए आप देखे की कटटरपंथ क्लेश फैलाने में तो इन बड़ी कामयाबी मिली मगर इतनी बड़ी मुस्लिम दुनिया में एक गाँव एक गली भी ये ऐसी न बसा सके जहां चार आदमी भी इस्लामी आदर्शो के अनुसार आपसे बिना किसी भेद भाव ऊंच नीच के रह रहो हो कही भी नहीं बल्कि जिन अरब शेखो के चंदे के दम पर ये लोग इतना आगे बढे उन्ही का क्या रवैय्या और क्या जीवन हे सारी दुनिया जानती ही हे इसी से इनके पांखड का पता चलता हे मक्कार इतने हे की अगर इनकी पोल खोलो तो ये नहीं कहते की इन पर हमले हो रहे हे बल्कि अपने ऊपर हुए हर तर्क के हमले को कहते हे की इस्लाम पर हमले हो रहे हे ताकि जनता भड़क कर अगले की बात ही ना सुने और इनकी ” दुकाने ” चलती रहे
इस ज़हरीली फितरत के कारण जब अरबो के पास 73 के बाद जम कर पैसा आया तो उस बिना मेहनत के पैसे से ( यही पैसा जाकिरो की जेब में गया बिना मेहनत का बिना पसीने का पैसा कभी भी कोई अच्छा रिज़ल्ट दे ही नहीं सकता ) इन्होने खूब अय्याशियों के नए नए रिकॉर्ड बनाय फिर अपराधबोध मिटाने को और जन्नत में अपनी सीट कन्फर्म करवाने की खातिर ( भलाई से भी जन्नत ही मिलेगी पर भलाई करना आसान नहीं ) वो पैसा धर्मप्रचार को सारी दुनिया में खासकर दक्षिण एशिया में भेजा क्योकि यही सबसे अधिक आबादी सबसे अधिक जिंदगी से परेशान लोग और सबसे अधिक ठलवे वेले लोग भी हे ये जिया उल हक़ से लेकर जाकिर नायक सब इसी पेट्रो डॉलर और इसी मानसिकता की उपज हे जिया उल हक़ जैसे बेहूदा आदमी ने इसी पैसे से पाकिस्तान को आर्थिक सम्रद्धि भी दी बम भी बनाया मगर ज़ाहिर हे जिसकी खाओगे उसकी गानी भी पड़ेगी सो मुल्लागर्दी को भी खूब बढ़वा दिया जिससे जो पाकिस्तान एशिया में विकास में जापान के बाद दूसरे नंबर पर था वो बर्बाद हो गया लाखो लोग मरे मगर इंसानी जानो की सार्क इलाके में कोई वेल्यू ही नहीं हे खेर उसी पेट्रो डॉलर में मुल्लागर्दी में करियर को जाकिर नाईक ने सही समय पर भांप लिया और एक नाकाम डॉकटर आज अरबो की संपत्ति का मालिक बताया जता हे ( आरोप ) लेकिन नाईक की ये जबरस्त कामयाबी धर्म के दूसरे व्यापारियों के लिए जलन का ही विषय रही इसलिए उपमहाद्वीप के बाकी हज़ारो धर्माधिकरियो में से कोई जाकिर साहब को न चाहता हे न बचाव कर रहा हे
सिकंदर हयात
November 25, 2014
जाकिर साहब की लोकप्रियता की बड़ी वजह उनकी फर्राटेदार अंग्रेजी भी हे उदारीकरण के बाद भारत में जमकर पैसा आया और जमकर तनाव आये खासकर उदारीकरण का दूसरा दौर 2001 से शुरू होने पर तब ही देश में बाबाओ की बाढ़ सी आने लगी लेकिन भारत में एक वर्ग ऐसा भी हे जो अंग्रेजी के माध्यम से जो पालने से लेकर- कब्र शमशान तक हमेशा खुद को अलग और ऊँचा दिखाना पसंद करता हे इसी वर्ग को ध्यान में रखते हुए बाद में अंग्रेजी बाबाओ की एक एक नयी जमात उभरने लगी इसके दो बड़े नाम श्री श्री रवि शंकर और ये जाकिर साहब हे एक पुरन कमेन्त अच्छा अपने आपको बाकी दुनिया से बेहद अलग बेहद महान दिखाने दर्शाने वाले ये धर्म के व्यापारी कैरियरिस्ट लोग कितने साधारण मिजाज के होते हे अंदाज़ा लगाइए की भारत के ही नहीं बल्कि पुरे उपमहाद्वीप के फिर सिर्फ बरेलवी या शिया अहमदी ही नहीं बल्कि वैसे भी बाकी ” व्यापारियों ” ने भी कभी कोई खास जाकिर का सपोर्ट नहीं किया अब भी नहीं बल्कि विरोध ही किया कारण वही अपनी मार्किट का एक बड़ा एम्पायर अगर गिरेगा तो बाकियो को ही उसका फायदा होगा जाकिर से चिढ का राज़ ये भी हे की उनकी कामयाबी में उनकी फर्राटेदार अंग्रेजी का भी बड़ा हाथ रहा हे अब ज़्यादातर को अंग्रेजी नहीं आती तो एक आम आदमी तरह उन्हें भी इस अंग्रेजी बाबू से औेर इसे अंग्रेजी से हुए फायदों से उन्हें जलन और कुंठा रही होगी अच्छा जाकिर साहब ने भी एक आम अंग्रेजी वाले की तरह शायद हमेशा खुद को बाकी धर्माधिकारियों से ऊपर ही समझा होगा उहोने भी कभी किसी को मुंह लगाया हो हमारी जानकारी में तो नहीं हे इससे पता चलता हे की कितने आम होते हे ये लोग इन्हे खास समझने वालो को ये समझना चाहिए
इस ज़हरीली फितरत के कारण जब अरबो के पास 73 के बाद जम कर पैसा आया तो उस बिना मेहनत के पैसे से ( यही पैसा जाकिरो की जेब में गया बिना मेहनत का बिना पसीने का पैसा कभी भी कोई अच्छा रिज़ल्ट दे ही नहीं सकता ) इन्होने खूब अय्याशियों के नए नए रिकॉर्ड बनाय फिर अपराधबोध मिटाने को और जन्नत में अपनी सीट कन्फर्म करवाने की खातिर ( भलाई से भी जन्नत ही मिलेगी पर भलाई करना आसान नहीं ) वो पैसा धर्मप्रचार को सारी दुनिया में खासकर दक्षिण एशिया में भेजा क्योकि यही सबसे अधिक आबादी सबसे अधिक जिंदगी से परेशान लोग और सबसे अधिक ठलवे वेले लोग भी हे ये जिया उल हक़ से लेकर जाकिर नायक तक सब के सब इसी पेट्रो डॉलर और इसी मानसिकता की उपज हे जिया उल हक़ जैसे बेहूदा आदमी ने इसी पैसे से पाकिस्तान को आर्थिक सम्रद्धि भी दी बम भी बनाया और अपने नाज़ायज़ राज़ को स्टेबल किया मगर ज़ाहिर हे जिसकी खाओगे उसकी गानी भी पड़ेगी सो मुल्लागर्दी को भी खूब बढ़वा दिया जिससे जो पाकिस्तान जो कभी एशिया में विकास में जापान के बाद दूसरे नंबर पर था वो बर्बाद हो गया लाखो लोग मरे मगर इंसानी जानो की सार्क इलाके में कोई वेल्यू ही नहीं हे खेर उसी पेट्रो डॉलर में मुल्लागर्दी में करियर को जाकिर नाईक ने सही समय पर भांप लिया और एक नाकाम डॉकटर आज अरबो की संपत्ति का मालिक बताया जता हे ( आरोप ) लेकिन नाईक की ये जबरस्त कामयाबी धर्म के दूसरे व्यापारियों के लिए जलन का ही विषय रही इसलिए उपमहाद्वीप के बाकी हज़ारो धर्माधिकरियो में से कोई जाकिर साहब को न चाहता हे न बचाव कर रहा हे
अच्छा ऊपर जो जाकिर नायक का विश्लेषण किया गया हे उसी में से आधी से अधिक बाते भारत में बढ़ते हिन्दू कठमुल्लावाद , शोषण बाबाओ की बढ़ती फौज पर भी सेम हे सब कुछ वही बस फर्क ये हे की मुस्लिम कटटरपंथ जहां सारी दुनिया पर फतह के सपने देखता हे वही इनका लक्ष्य केवल भारत की शस्य श्यामला धरती हे फिर दूसरी बात मुस्लिम कटरपंथ जहां खून पीता हे ( हिंसा करता हे जान लेता हे ) वही हिन्दू कटरपंथ खून पिने का नहीं खून चूसने का शौकीन हे ये मारता कम हे घसीटता ज़्यादा हे इतना फर्क हे उपमहाद्वीप की निरीह जनता दोनों की मार सहती आ रही हे
ऊपर बर्जेश यादव साहब आप हमें कहते हे की हम हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हे———- ? ज़रा देखिये की ईश्वर की केसी रहमत आई हे की जो वहाब साहब डेढ़ साल पहले साजिद रशीद के इस लेख को पेश करने पर हमें भला बुरा कह रहे थे वो ही आज अफ़ज़ल भाई की वाल पर देखिये की वो ही वहाब साहब आज अफ़ज़ल भाई की इसी लेख की पोस्ट को शेयर कर रहे हे क्या ये हारी हुई लड़ाई हे —— ? खेर शुक्रिया बहुत बहुत वहाब साहब का बहुत बहुत शुक्रिया दूसरा की असल क्रेडिट जाता हे अफ़ज़ल भाई को जिन्होंने अपने खून पसीने की कमाई से ये साइट बनवाई भी चलवाई भी . मेहनत का पैसा ही अच्छा रिजल्ट देता हे इसलिए महात्मा गांधी साधन और साध्य दोनों की ही पवित्रता की बात करते थे . ( साधन और साध्य माने लक्ष्य और उसके औजार ) उधर जाकिर नायकों की फौज जो अरब शेखो के बिना मेहनत के पेसो पर फूलती रही इसलिए ही उनका ये रिज़ल्ट आया की कोई इस्लामी आदर्श तो ये एक सिंगल गली में भी नहीं प्रेक्टिकल करवा सके , ऊपर से कटटरता आतंकवाद क्लेश पंगे और और गले पड़ गए ——– ?
हन्नान साहब इस विषय पे दूसरे दोगले लोगो की तरह ही अपने विचार लिख रहे हैं. जिन जाकिर नायक की मुख़ालफ़त पे नाराज़ होकर, सिकंदर हयात को ये सुन्नी, सैय्यद, देवबंदी कहने पे ये इसे फिरकावाद कह रहे हैं.
उन्ही जाकिर नायक को जिस सौदी अरब ने अपने यहाँ का सर्वोच्य पुरूस्कर दिया, वोही सौदी अरब, पूरी दुनिया मे देवबंदी, अहले सुन्नत, तब्लीगी, सलाफी जैसे नामो की संस्थाओ को इस्लाम के प्रचार के लिए, धन मुहैया कराता है.
हमे भी पता है कि क़ुरान मे कहीं भी शिया या सुन्नी नही. अपने को सुन्नी कहने का अर्थ यह नही कि हम मुसलमान को फिरको मे बाँट रहे हैं, बल्कि सुन्नत पे चलने वालो को सुन्नी कह रहे हैं. तो क्या सुन्नत पे चलने वाले, मुसलमान नही?
और अपने आप को मुसलमान के साथ सुन्नी, तब्लीगी, आशिके रसूल या अन्य किसी भी संबोधन से आपको दिक्कत है तो सिकंदर हयात पे गुस्सा निकालना छोड़िए, देवबंद को लताड़िए. सुन्नी वक्फ़ बोर्ड, अहले सुन्नत, अहले हदीस, ख़ात्मा ए नबुव्वत् जैसे नामो से खुले संस्थानो की आलोचना करिए.
आप नही करेंगे, क्यूंकी आपका मकसद वो था ही नही. आप यहाँ सिर्फ़ नफ़रत को बढ़ावा देने वाले जाकिर नायक साहब का बचाव करने आए थे.
बृजेश यादव जैसे लोगो से बस यही कहूँगा कि अगर आप यह मानते है कि हिंदू कट्टरपंथ, सिर्फ़ इस्लामी कट्टरपंथ की प्रतिक्रिया मात्र है, तो मैं आपसे कहूँगा कि आप भले ही अपने विचारो पे कायम रहे, आप जी खोल के इस्लाम पे लिखे, बोले, हमारे ईमान पे कोई फ़र्क नही पड़ेगा. बस इतना याद रखिए कि प्रतिक्रिया स्वाभाविक तो हो सकती है, समाधान हो ज़रूरी नही. बल्कि ये प्रतिक्रिया, समस्या को बढ़ावा देने वाली है. इस बात को समझ लेंगे तो शायद ये भी समझ लेंगे कि हिंदू कट्टरपंथ के उभार का आपने सिर्फ़ एक पहलू छुआ है, इसके अन्य पहलुओं के लिए, आपको अपने घर के भीतर लड़ना होगा, क्यूंकी वो कारक भीतर है, बाहर नही.
जैसा हम कर रहे हैं. बाहरी कारको को हम नकार नही रहे, लेकिन वोही एक मात्र नही.
MUJHE LAGTA HAI KE ZAKIR NAYAK KO MOHRA BANAYA JAA RAHA HAI , EK PREACHER KO AATANKWAAD SE KYA MATLAB, MUJHE PASAND HAI MAGAR EK SHIKAYAT JARUR HAI KE AAP APNE MAZHAB KO ACHCHA BATANE KE LIYE DUSRE MAZHAB KI BURAI N KARE !
SIKANDAR HAYAAT KO DHANYWAAD KE AAP KE VICHAAR BAHUT ACHCHE HAI AUR AAP KE COMMENT AUR LEKH ACHCHE HOTE HAI JO DIL KO CHU LATE HAI ! DUSRI BAAT YE KE AAJKAL AFZAL KHAN SAHAB NAHI LIKH RAHE HAI , UNHE LIKHNA CHAAHIYE
शुक्रिया रमेश जी आगे और बेहतर लेखन पाठको तक पहुंचाने की कोशिश रहेगी में खुद जितना सोचता हु उतना लिख नहीं पाता ( लेख ) वजह जीवन में एकांत की अकेलेपन की हमेशा कमी रही हे और ममता कालिया के शब्दों में की ”बाकी कलाय समूह में निखरती हे मगर लेखन एकांत मांगता हे ” किस्मत इतनी खराब हे की गाज़ियाबाद और नोएडा में परिवार के फ्लेट खाली पड़े हे मगर दिल्ली में प्रदूषण जाम इतना हे की जीना मुहाल हे दिल्ली से वहां जाना और टिकना भी आसान नहीं हे खेर फिर भी कोशिश जारी रहेगी बाकी अफ़ज़ल भाई क्योकि बिज़नेस और बाल बच्चों वाले आदमी हे हो सकता हे की उन्हें भी एकांत ना मिल रहा हो वैसे फेसबुक पर अफ़ज़ल भाई थोड़ा बहुत लिखते रहते हे
http://www.upuklive.com/2016/07/darul-uloom-deoband-support-zakir-naik.html
सिकन्दर साहब
आवाज़ तो उठाई हे जाकिर साहब के लिए मगर जान नहीं हे और हम बात भी पहले से अब तक की कर रहे थे इसमें तो कोई शक ही नहीं हे की ना तो जाकिर साहब ने कभी दूसरे धर्माधिकारियों को मुंह लगाया ना ही दूसरों ने कभी जाकिर साहब को पसंद किया पाकिस्तान में भी मेने वहां के धर्माधिकारियों को जाकिर साहब को नापसंद करते हुए ही देखा वजह यही हे की इंसानी फितरत में इंसान अपनी फिल्ड के कामयाब को कोई खास पसंद नहीं करता उससे ईर्ष्या करता वाही कामयाब भी दूसरों को घास नहीं डालता यानि दीन धर्म की बड़ी बड़ी बाते करने पर भी इंसान अंदर से अपनी फितरतें छोड़ नहीं पाता इसलिए हम कहते हे की जमीनी सच्चाइयां से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए खेर में भी हिमांशु कुमार से सहमत हु वो लिखते हे Himanshu Kumar9 July at 09:53 · Palampur · अगर आपको लगता है कि ज़ाकिर नाइक के भाषण सुन कर कोई आतंकवादी हरकत करता हैतो आतंकवादी हरकत करने वाले पर कार्यवाही कीजियेजाकिर नायक पर कार्यवाही की मांग मत कीजियेक्योंकि अगर आप ऐसी मांग करेंगे तो अपने तर्क में खुद ही फंस जायेंगेजैसे सरकार लम्बे समय से कोशिश कर रही है किआदिवासियों के लिये आवाज़ उठाना जुर्म घोषित कर देऔर आवाज़ उठाने वाले को जेलों में डाल देसरकार वहाँ भी यही तर्क लगाती हैसरकार कहती है कि आदिवासियों के लिये नक्सलवादी लड़ रहे हैंऔर यह मानवाधिकार वाले भी आदिवासियों के लिये आवाज़ उठाते हैंइससे यह सिद्ध होता हैकि मानवाधिकार कार्यकर्ता और नक्सलवादी एक ही विचारधारा के हैंऔर चूंकी नक्सलवादी हिंसक संघर्ष में यकीन करते हैंइसलिये मानवाधिका कार्यकर्ताओं को भी जेल में डाल देना चाहियेसरकार यह भी कहती है कि यह सामाजिक कार्यकर्ता नक्सलियों के प्रति सहानुभूति रखते हैंइसलिये इन सामाजिक कार्यकर्ताओं को सज़ा दी जायऔर इस तर्क के आधार पर बहुत सारे कार्यकर्ताओं को पुलिस जेल में डाल भी देती हैसोनी सोरी , बिनायक सेन , प्रशांत राही , सीमा आज़ाद और सैकड़ों कार्यकर्ताओं को पुलिस ने जेलों में डाला भी हैलेकिन भारत का सर्वोच्च न्यायालय इस मामले में कई बार संविधान की मंशा स्पष्ट कर चुका हैसुप्रीम कोर्ट का कहना है कि विचारधारा को अपराध घोषित नहीं किया जा सकता
सल में जाकिर भाई ये सुन्नी सय्यद देवबंदी वाली बात जानबूझ कर टेपरिकॉर्डर की तरह दोहरानी पड़ती हे क्योकि एक तो अधिकांश भारतीय सेकुलर मुस्लिम लेखक शिया बरेलवी बोहरा आदि ही रहे हे दूसरा की जाकिर नायकों की इनसे काफी लॉग डाट रही हे तो डर रहता हे की कही कोई नया पाठक कही हमें भी कोई शिया बोहरा बरेलवी ना समझ ले इस डर से ये बात दोहरानी पड़ती हे जिसे हन्नान साहब पकड़ कर बैठ गए और हमारा ” सर्टिफिकेट ” रद्द करने की धमकी देने लगे इसी विषय पर रविश कुमार के प्रोग्राम में हिलाल अहमद ने भी यही बात कही थी की ” इन जाकिरो से बहस करना सरल नहीं हे जैसे ही इनसे बहस करो पांच मिनट में ये अरबी बोलने लगते हे धर्मग्रन्थ बीच में ले आते हे और कहते हे या तो हमारी बात मानो नहीं तो हम चिल्लायेंगे की तुम इन ग्रंथो का विरोध कर रहे हो ” ( जैसे हिन्दू कठमुल्ला हर बहस में पांच मिनट में देश को ले आता हे और समर्थन न करने पर आपको देशद्रोही बताता हे ) फिर हो चुकी बहस———– ? और फिर उसी को अपनी जीत मानकर ये आत्मुग्द रहते हे
हन्नान साहब, हमने भी जाकिर नायक पे प्रतिबंध की माँग नही की. और कोई एक जाकिर नायक तो है नही, उनके जैसे हज़ारो लोग, मज़हब के नाम पे दूरियाँ बढ़ा रहे हैं. इस लेख मे भी उनपे प्रतिबंध लगाने की माँग नही की गई, बल्कि मुस्लिम समुदाय को जाकिर नायको से सावधान रहने की अपील की.
जाकिर नायको से आपत्ति का कारण, अपने फील्ड के किसी व्यक्ति को आगे बढ़ने की वजह से जलन का है, तो ऐसा नही है. शिया, बरेलवी धर्म-गुरुओं के लिए आप ऐसा कह सकते हैं. लेकिन मेरे और सिकंदर जैसे लोग तो धर्म-गुरु के पेशे मे भी नही है, फिर भी इनसे आपत्ति रखते हैं. जबकि वहीं दूसरे रोशन ख़याल उलेमाओ की हमने तारीफ भी की है.
जहाँ तक बात हिंसा की वकालत की है तो जाकिर नायक साहब ने स्पष्ट रूप से करी है. मैं उस पर भी लिखूंगा. मज़ारो, क़ब्रों की इबादत के खिलाफ बोलना कतई ग़लत नही. मैं भी एक और निराकार ईश्वर मे ही आस्था रखता हूँ, बात बहुलतावाद के प्रति सहजता है. ये सहजता, दूसरे धर्मो की आलोचना के बाद भी बरकरार रह सकती है, लेकिन विचारो की विविधता को हिंसा के ज़रिए दबाना सही नही.
जाकिर नायक साहब, बहुत स्पष्ट रूप से कह चुके हैं कि विचारो की विविधता को हिंसा के नाम पे दबाया जाना चाहिए. और इस हिंसा को उन्होने इस्लाम-सम्मत भी बताया है. इस विषय पे मैं आपसे बहस करने को तैयार हूँ. भले ही इन्होने सेलेकटिव तौर पे सिर्फ़ इस्लामिक स्टेट की हिंसा को गैर-इस्लामी बताया, लेकिन हिंसा को नही, इसी वजह से ताज्जुब नही कि इस्लामिक स्टेट से जुड़े आतंकवादियों के भी वो हीरो ही रहे. लाखो की भीड़ ही उचित या अनुचित का मापदंड रहेगी तो इस देश के प्रधान मंत्री को इस दौर का सर्वश्रेष्ठ राजनेता घोषित किया जा सकता है.
हन्नान साहब, संख्या के साथ गुणवत्ता भी कोई चीज़ होती है.
जाकिर भाई इन हज़ारो लोगो के कारनामे देखे की जहां जहां कटटरपंथ होगा वहां समाजसेवा ही ही नहीं सकती हे जैसे एक लेडी हे में उन्हें जानता हु इतनी अच्छी इतनी काबिल अपनी फिल्ड की जीनियस हे लेडी . मुझे तो लगता हे की आने वाले दस सालो में इतने बड़े भारत में अपने फिल्ड के दस बड़े नामो से एक होंगी उनके काम को देख कर मुझ ऐसे लगा . दो छोटी बेटियों की माँ भी हे मगर खुद देखने में गुड़िया जैसी लगती हे इंसानियत इतनी की एक एन जी ओ जब दूर दराज़ के गरीब बच्चों को दिल्ली घुमाने लाता हे तो उन्हें अपने फ्लेट पर ठहराती हे ( आज के ज़माने में लोग रिश्तेदारों को भी नहीं पूछते ) और उन्हें अपने खून पसीने की कमाई से खेल का समान भी दिलाती हे उधर मेरी कज़िन हे ( लेडी जाकिर नायक टाइप ) इनका टास्क हे छोटी छोटी गरीब बच्चियों को हिजाब करवाना हो सकता हे मेरी कज़िन भी दस साल बाद अपने फिल्ड के दस बड़े नामो में से एक हो अल्लाह भला करे इनका .
कटरपंथ फैलाने तो इन्हें भारी कामयाबी मिल जाती हे बाकी इंसानो को सुधारने में इन्हें कोई खास कामयाबी नहीं मिलती हे तो दो जाकिर सपोटरो का एक किस्सा बयान कर करता हे तो एकतरफ तो ये एकतरफ हम जैसे टुच्चे बकौल इनके नास्तिक आदि तो हुआ ये की बड़े सपोटर और छोटे सपोटर की मुलाकात हुई हमने ही कराइ दोनों की गाढ़ी घुटने लगी छोटा कई बार तबलीग आदि में भी जा चूका मगर क्या करे मेट्रो सिटी में जीना इतनी महगाई आफत नाफत , तो ऐसा कोई सगा नहीं जिसको इसने ठगा नहीं तो आदत से मज़बूर इसने बड़े सपोटर से चेक में कुछ गड़बड़ी करके बीस हज़ार के करीब ठग लिया सबूत कोई नहीं तो बड़े वाले ने खेर कहा तो कुछ नहीं मगर खिंच गए अब हमें गए बड़े वाले के साथ कार में कुल तीन लोग दिल्ली से अपने शहर मुज्जफरनगर एक शादी में , तो वहां छोटा सपोटर भी कही और से पंहुचा हुआ था बातो बातो में उसने पूछ लिया और मेने बता भी दिया की हम बड़े वाले के साथ कार में आये हे उसने कहा वापसी पर मुझे भी ले लेना मेने कहॉ ठीक हे जगह तो हे ही खेर अब जब बड़े वाले को पीछे ये बात पता चली तो बड़े जाकिर सपोटर ने छोटे को बैठाने से साफ़ इंकार कर दिया मुझे ”काटो तो खून नहीं ” मेने बहुत समझया की मेने तो कह दिया अब किस मुह से मना करूँगा फिर गाड़ी भी खाली हे ही कहने लगे नहीं इस को तो में कभी नहीं बिठाऊंगा अपनी गाडी में ठग हे . मेने कहा सर इसका अमाल इसके साथ जो हुआ सो हुआ अल्लाह पे छोड़ो ( बीस हज़ार कोई बड़ी रकम भी नहीं उनके लिए कोई खास नहीं ) ऐसे कुरुर ना बनो प्लीज़ बैठा लो इसका दो साल का बच्चाभी साथ ह प्लीज़ यानी हमजैसे सेकुलर इनके शब्दो में नास्तिक ने बड़े जाकिर सपोटर से छोटे को बैठा लेने की पुर जोर कोशिश की मगर वो ठस से मस नहीं हुए ——————-?
यहाँ ये लेख और उस पर जाकिर हुसैन भाई के कई कमेंट भी पढ़ने जरुरी हे इससे और बेहतर समझ बनेगी http://khabarkikhabar.com/archives/942
नमाज़ रोजा हज कीजिये सही हे मगर भूल से भी मुस्लिम यूनिटी सुप्रियोरिटी इकवेल्टी की बातो में मत पढ़िए वो चाहे कोई जाकिर करे या कोई ओवेसी करे कोई बुखारी करें कोई मदनी करे कोई देवबंदी बरेलवी वहाबी करे या कोई फेसबुकिया आदि इनमे मत पढ़िए इन तिलों में तेल नहीं हे असगर अली इंजिनियर लिखते हे इस्लामी भाईचारा इन आदर्शवादियों का गढ़ा हुआ एक और मिथक हे आरम्भ से ही इस्लामी समाज वर्गों और श्रेणियों में बटा हुआ रहा हे ————– हमारे दौर में जो लोग इस्लामी भाईचारे की बात करते हे वे भी सामजिक वास्तविकताओं से तथा समाज के विभिन भागो और वर्गों के बीच मौजूद आपसी टकराव से अनजान हे इसलिए ये कहना शुद्ध आदर्शवाद होगा की मुक़्क़मल भाईचारा सिर्फ धर्म के आधार पर कायम किया जा सकता हे जो ऐसे भाईचारे को जारी रखने के लिए आवशयक दशा तो हो सकती हे पर्याप्त दशा नहीं हो सकता सामान्य धर्म और विशेषकर इस्लाम का इतिहास इसे साफ़ साबित करता हे लेकिन तथ्यों के नाक के सामने होते हुए भी इस्लाम के पैरोकार इस्लामी भाईचारे के मिथक को बने रखने की कोशिश करते आये हे मेरी राय में इस्लाम के ये पैरोकार उसके लक्ष्यों की सेवा नहीं कर रहे हे ”
ऊपर कमेंट में मेने अपनी जिन ”लेडी जाकिर नायक टाइप सिस्टर ” का जिक्र किया था ये भी जाकिर साहब की तरह अपना ”एम्पायर ”बढ़ाना चाह रही हे सूना हे की फण्ड भी मिल रहा हे दावत -धर्मपरिवर्तन की दुनिया के एक बड़े नाम हमारे दूर के और इनके करीबी रिश्तेदार हे ही इनकी भी वेल्थ के किस्से सुनते हेसत्ता की दुनिया के एक बड़े मुस्लिम नाम इनके भक्त बताय जाते हे तो खेर सिस्टर भी अपना साम्रज्य बढ़ाना चाह रही हे तो अब एक मौत हो गयी हमारे यहाँ वहां ये भी गयी तो पुरसे के बाद अपना प्रचार करने लगी की किस तरह से हम चारो तरफ दीन की अमन की भाईचारे की सादगी की हवा चला रहे हे ( सूना हे उनकी संस्था के लिएमहंगे एसी की खरीद हुई हे भई सादगी अपनी जगह मगर क्या करे दिल्ली की गर्मी भी तो उफ्फ ) तो इस पर हुआ ये की हमारी एक और रिलेटिव सूना हे की भड़क गयी और उन्होंने उनकी गुरु उनकी ”अहमद दीदात ” के बारे में भी कहा की वो तो अच्छी लेडी नहीं हे में उसे खूब जानती हु सूना हे की खासी बहस हुई अब ये लेडी क्यों इनसे थपि हुई थी -? उनके पुराने जख्म की उन्होंने अपने बड़े बेटे को ही दीनी तालीम मज़हबी गतिविधियों में ही ज़्यादा लगाया था पढाई लिखाई में कम ज़ाहिर हे की ऐसे ही लोगो ने उस समय खूब ?दाद दी होगी . खेर अब लड़का बड़ा हुआ उधर इनकी पहले ही आम इकोनॉमी और बिगड़ गयी और अब उन्होंने चाहा की बेटा कमाय मगर कैसे — ? बेस ही नहीं हे – ?
खेर वो जैसे तेसे दिल्ली आकर प्राइवेट पढ़ने लगा मगर कोई खास फायदा नहीं और जो हो भी तो दिल्ली की महगाई बचत नामुमकिन और वो लोग जिन्होंने कभी बढ़ चढ़ कर दाद दी होगी अब गायब ? कोन किसे पूछता हे गेर छोड़ो अपने ही ऊँचे सरकारी जॉब वाले देवर यानी चचा तक ने ही भतीजे को एक दिन भी अपने घर तक नहीं रखा तो और किसे से क्या उमीद – तो हमारी वो रिलेटिव पहले ही थापि होंगी और जब उन्होंने हमारी लेडी जाकिर नायक सिस्टर को देखा तो उन्हें याद आया होगा की ऐसे ही किसी ने उन्हें बड़े बेटे की पढाई लिखाई से ज़्यादा धार्मिक गतिविधियों में भेजने को प्रेरित किया होगा तो शायद जख्म हरे हो गए और सूना हे की खासी बहस सी हो गयी थी सिस्टर को भी अजीब लगा होगा क्योकि उन्हें भी सिर्फ जयकार सुनने की आदत होगी क्योकि लोग इनकी जयकार करते हे फिर रोजमर्रा में लग जाते हे जो नहीं लगता उसका हश्र मेने उस लड़के के माध्यम से बताया ही हे जो अब दिल्ली यु पि भटक ही रहा हे न दीन का रहा न दुनिया का
अधिकतर जिन्हे हम मज़हबी मानसिकता मज़हबी प्रचार आदि समझते हे वो सब असल में दुनियावी साइकि से भी जुडी कुछ बाते हो सकती हे अब हमारी ये जो कज़िन सिस्टर हे इनके बैकग्राउंड के बारे में बता दू की इनके परिवार में लड़के तो पढ़े मगर लड़कियों को कोई कोई खास पढ़ने लिखाने का रिवाज़ नहीं था यु तो हमारे सोशल सर्किल में जल्दी शादियों का रिवाज़ नहीं हे मगर इनकी शादी बीस के आस पास इंटर के आस पास हो गयी थी इनके हसबेंड ठीक ठाक पैसे वाले थे लगबग अमीर ही कहे जा सकते हे मगर थे सीधे साधे और इनसे डबल नहीं तो 15 के आस पास तो बड़े थे ही गल्फ में रहते थे अब समझिए की जीवन में शायद कोई प्यार शायद नहीं कोई रोमांस नहीं कोई उत्तेजना नहीं करने को कुछ नहीं अय्याशी हर आदमी कर नहीं सकता सोशल सर्किल कोई खास नहीं 90 के बाद विजुअल मीडियम की भरमार वाले जीवन में एक नए माहौल में भारत ही नहीं सारी दुनिया में रिश्तों की गर्माहट कम होती जा रही हे अब सिस्टर जीजा दोनों पैसे वाले , तो कुदरत का कानून हे की अमीरो को अधिक बच्चे ना होते हे न वो चाहते हे ( चाहते भी नहीं हे अगर अगर चाहे तो होते भी नहीं हे कुदरत का करिश्मा हे ) तो सिस्टर के बच्चे भी दो ही हे ज़्यादा होते तो उनसे ही फुसरत नहीं मिलती ” जाकिर नायकपन ” फिर आता ही नहीं क्योकि टाइम और एनर्जी बचती ही नहीं —- ?
, अय्याशी आवारागर्दी हर कोई कर नहीं सकता उपभोक्तावाद में भी सबका मन खूब लगे ही ये भी जरुरी नहीं तो समजसेवा करना भी बेहद बोझ वाला काम वो भी नहीं कर पाते . यानि जीवन में एक खासा खालीपन —? तो मेरी थ्योरी ये हे की अपने जीवन में उसी खालीपन को सिस्टर इस तरह से भर रही होती हे टाइम भी कटता हे फंडिंग भी मिल रही हे शायद खुद को दूसरे से ( खासकर पढ़े लिखे कामयाब लोगो से ) ऊँचा होने का अहसास भी होते हे अहमियत भी मिलती हे ( अहमियत हर कोई चाहता हे ) एक संतुष्ठि भी मिलती हे ईगो सेटिस्फाइड होती हे की भाई हम भी कुछ हे शायद बांग्लादेश के कातिलों का भी यही इतिहास रहा होगा बात अमीरी गरीबी की नहीं बात हे जीवन में आये खालीपन नीरसता अहमियत की कमी का अहसास उसी को ये इस तरह से भर रहे होते हे ( मेने भी जीवन में हार हार हार के सिवा कुछ नहीं देखा मगर मेरे जीवन में कोई खालीपन कोई इमोशनल वेक्यूम नहीं हे क्योकि हम थकते नहीं हे हम जीवन को समझते हे हार नहीं मानते हार का भी मज़ा लेते हे उसमे भी पॉजिटिविटी तलाश लेते हे हास्य रस में रंगे हे जो ट्रेजिडी में भी कॉमेडी ढूंढ लेता हे ) स्वस्थ आध्यात्मिकता में कोई हर्ज़ नहीं हे खुद जीरो स्प्रिचुअल होते हुए भी में इस कि अहमियत और फायदे खूब समझता हु ( क्योकि खुद इन फायदों से महरूम रहा हु ) मगर अति की तरफ जा रहे हे इन लोगो को ह्मे रोकना ही होगा क्योकि अति हर चीज़ की बुरी ही होती हे फिर अंतर्राष्ट्रीय राजनीति स्वार्थ झगडे मतभेद और आग में घी डाल देते हे तो हमें इन कटट्रपन्तियो से भिड़ना ही होगा इनका कोई बहाना हम नहीं सुन सकते हे
एक और रिटायर्ड साहब हे हमारे परिचित भ्र्ष्टाचार की कम से कम दस बीस करोड़ की सम्पति के मालिक खाली बर्तन जैसे जिंदगी में कोई रिश्तेनातों की गर्माहट नहीं कुछ नहीं डायबटीज के पुराने मरीज जाहिर हे उत्तेजना भी अब किसी काम की नहीं औलाद सिर्फ एक उसकी भी शादी को चार साल हो गए मगर दादा बनने के अभी कोई आसार नहीं लाइफ में यार दोस्त भी नहीं क्योकि आगे बढ़ने के चक्कर में ये लोग ” फालतू बोझ ” लादते ही नहीं अकेले आगे बढ़ते हे और कामयाब होने के बाद एक दिन पाते हे की कोई कामयाबी बांटने वाला ही नहीं हे हर शादी और मय्यत में मिलते हे शायद अमिताभ बच्चन की तरह घर के सन्नाटे से घबराते होंगे तो जी अब सूना हे की ये भी लोकल जाकिर नायकों के रडार पर हे और ये भी काफी रिलिजियस हुए ही जा रहे हे मेरे दोस्त के शब्दों में की फेसबुक से पता चला की ”अभी तो यूरोप में बीच पर पड़े थे उसके बाद सब लोग उमरा पर चले गए ” . यानी जिंदगी के खालीपन से झुझ रहे हे और भी कई मुसलमानो को में देख रहा हु जिनके पास सब कुछ हे मगर फिर भी खालीपन सूनापन आ गया हे मुझे डर हे की आने वाले समय में ये लोग या तो अयाशी की तरफ झुकेंगे या अति मज़हबी हो जाएंगे दोनों ही बात हमें सही नहीं लगती गेर मुस्लिमो में भी ये खूब हो रहा हे बस गनीमत हे की उनके यहाँ अभी हिंसा करके स्वर्ग पाने का कोई विचार नहीं हे हालांकि बुराइया वहां भी खूब हे अभी दिल्ली में एक पैसे वाला रिटायर्ड आदमी एक लड़की का शोषण करते हुए उसके हाथो मारा गया ये भी करे क्या — ? पैसे वाले हे बच्चे एक दो वो भी इन्हे पूछते नहीं वो अपने में मस्त पैसा हे तो करे क्या ? या तो कोई धार्मिक चैनल या गुरु की शरण लेते हे या उतेज़ना में चले जाते हे कहने का आशय ये हे की किसी जाकिर नायक के किसी बाबा के भक्त होने से पहले तब्लीग़ में जाने से पहले अतिमजहबि होने से पहले अपने आप से पूछिए दूसरों से पूछिए की कही जिंदगी से हताश निराश परेशान इमोशनल वेक्यूम से दुखी हो होकर तो आप ऐसे नहीं हो रहे हे-? अछि तरह से सोच विचार कर लीजिये
इन जाकिरों के कहने पर जब आप जरुरत से ज़्यादा रिलिजियस हो जाओगे तो आपके दुनिया भर से टकराव अवशय होंगे या तो ये टकराव टालिए जो हम लोग बता रहे हे वो सुनिए समझिए नहीं तो फिर टकराव से होने वाले नुकसानों के लिए तैयार रहिये फिर रोइये मत ——-? अब इन मोहतरमा को देखियेhttp://www.amarujala.com/world/rest-of-world/unless-you-remove-your-hijab-you-are-wasting-your-time?pageId=2 इस तरह के लोग सारे वेस्ट में टकराव मोल ले रहे हे समझ नहीं आता की अगर आप इतने ही रिलिजियस हो तो आप अपने मुल्क में रहो दाल रोटी खाओ अल्लाह अल्लाह करो आखिरत की तैयारी करो किसने रोका हे किसे ने भी नहीं मगर ये अजीब लोग इन खुले मग़रिबी देशो में जाते भी जरूर हे और वहाँ ये सब करते हे और अपनी और साथ में खामखा इस्लाम की भी हंसी उड़वाते हे क्या वेस्ट के लोग आते अपने स्ट्रिप क्लब स्ट्रिप बीच मिनिमम क्लॉथ लेकर आपके मुल्क में —? नहीं ना फिर ये जबरदस्ती की पंगेबाजी क्यों ? आप शालीन कपडे पहनो कोई मना नहीं कर रहा हे ( में खुद फुटबॉल तक फूल स्पोर्ट्स पजामा पहन कर खेलता हु दौड़ता हु दिल्ली हाफ मैराथन में तो में शायद अकेला ही था जो ऊपर से निचे तक ढका हुआ था मुझे अंगप्रदर्शन बिलकुल पसंद नहीं. मगर दुसरो की जान इस विषय पर में नहीं खाऊँगा ) नमाज़ रोजा हज करो मगर ये बुर्केपरदे हिज़ाब दाढ़ी की जिद क्यों ———? हसन निसार इसे उन्ही की गोद में बैठ कर उन्ही की दाढ़ी खीचना कहते हे https://www.youtube.com/watch?v=v6_RR5omrao
Shamshad Elahee Shams
23 July at 21:20 ·
हिन्दुस्तानी मुसलमानों के दुरंगेपन का भी जवाब नहीं, तुर्की के नरभक्षी अर्दोआन का महिमामंडन करेंगे मिस्र के जमाती मुर्सी पर मातम भी करेंगे और अपने देश में नरभक्षी मोदी की मुखालफत भी करेंगे.
शिया मुसलमान तो हिज्बोल्लाह की दुकान एक मिनट में खोलने को तैयार बैठे रहते हैं, नसरुल्लाह इनका इमाम जो ठैरा. सुन्नियों को हमास ऐसा प्यारा कि बस पांचवा खालीपा मिल गया हो. अगर ये ताकतें इन्हें प्रिय है तब तार्किक रूप से संघ विरोध बेमानी है. —— कथावाचक जाकिर नायक का मोदी समर्थन ब्यान अस्वाभाविक नहीं है, वह शातिर है और सोच समझ कर दिया गया बयान है.
इनका झंडा जहाँ उठे वहां वाह वाह और मोदी-ट्रम्प जैसा जहाँ चुनौती दे वहां हाय हाय.
धर्मनिरपेक्षता का तकाजा इतना भर है कि राजनीति में धर्म के नाम पर जो भी गोलमट्ठा करे उसका सामाजिक, राजनीतिक बहिष्कार किया जाए. इत्ती सी बात नी समझ आती इन्हें, चेहरा क्लीन शेव रखने से पेट की दाढी नहीं मरा करती.
zakir naik जन्नत का लालच देकर लोगो का धरम परिवर्तन कर रहा है,
उस्कि विदेओस देखो वोह जन्नत मे limited number of seats होने केी बात करता है,
और कह्ता ह जन्न्त सिर्फ मुस्लिम्स को मिलेगेी, लालच सिर्फ पैसे का नहि होता,
ये धोखा है, पअह्ले जकिर अप्नि seat toh book kar le
or वैसे भि हिन्द्दु धरम के अनुसार तोह जन्नत होति हि नहि है…
स्वर्ग लोक देव्ताओ के लिए बनाया ग्या था ओर प्रिथ्वि इन्सानो के लिये
कोइ जहान्नुम भि नहि होता
पाताल लोक असुरो के लिये बनाया गया था
जाकिर नाइक के खातों में साठ करोड़ की रकम जमा होने की खबर आई हे कोई ताजुब नहीं ये लोग असल में कैरियरिस्ट लोग हे इस्लाम में अच्छा कैरियर बना रखा हे इन्होंने नाम भी दाम भी शोहरत भी रुतबा भी और क्या चाहिए ? यही सब तो चाहता इंसान दुनिया में . ये लोग कहते रहते हे की आख़िरत की तैयारी करो तैयारी करो मगर असल में लगे होते हे दुनियादारी में ये बात समझनी चाहिए इनके जिंदगी से परेशान अनुयायियों फेन्स मुरीदों को
जाकिर नायको और उनके साथियो पर हबीब जालिब ने बड़ा बेहतरीन व्यंग्य कसा था लाल बेंड ने गाया भी बहुत बढ़िया हे https://www.youtube.com/watch?v=0UYBlke9ekY
Mohammed Afzal Khan
3 hrs ·
जाकिर नाईक ने कहा, मेरे ऊपर हमला यानि भारत के 20 करोड़ मुस्लिमों पर हमला माना जाएगा, उन्होंने कहा के ये हमला मुझ पर नहीं भारतीय मसलमानो के खिलाफ है , ये हमला शान्ति , लोकतंत्र और न्याय के खिलाफ है ! आखिर जाकिर नाइक ने वही नीति अपनायी जैसा के हमारे यहाँ के मुस्लिम सेलिब्रिटी अपनाते है जब वह किसी समस्या में पड़ते है तो उन्हें धर्म याद आ जाता है जैसे सलमान खान जेल जाते है तो टोपी लगा लेते है , अजहरुद्दीन फंसते है तो कहते है के मुस्लिम के कारण उन्हें फंसाया गया है जबके ये सभी सेलिब्रिटी क्यों भूल जाते है के आज जो नाम और शोहरत है तो इसी देश के कारण! जाकिर नायक साहब आप कब मुसलमानो के नेता हो गए आप ने इस्लाम धर्म का बिजनेस किया और आपने खूब धन कमाया , मुस्लिम समुदाय के लिए आप ने कुछ नहीं किया है मेहरबानी कर पुरे मुस्लमान को न घसीटे ! अगर आप गलत नहीं है तो भारत क्यों नहीं आ रहे है आ कर अपना पक्ष रखे और बेगुनाही का सुबूत दे ! आप के नहीं आने के कारण आप शक के घेरे में है ! आप अपने ही शिक्षा से पलट रहे है के में अल्लाह के सिवा किसी से नहीं डरता !Mohammed Afzal Khan
अभी में वेस्ट यु पि गया हुआ था वहां एक जगह मेरा कज़िन डॉक्टर हे मुस्लिम बहुल सम्पन्न इलाका , वेस्ट यु पि की मुस्लिम आबादी का साफ़ तब्लिगीकरण हो चुका हे ( एक जाट केंद्रीय मंत्री के पिता के शब्दो में पहले तो यहाँ का मुस्लिम हमारे जैसा था अब हमसे बिलकुल अलग हो चूका हे जो भी हुआ उसका भारी फायदा लोकसभा चुनावो में भाजपा को मिला अब वही कहानी विधान सभा चुनावो में दोहराने की कोशिश जारी हे ) खेर मेरा कज़िन पढ़ा लिखा डॉक्टर , पुश्तेनी इलाका , खानदानी सय्यद यानी इलाके पर उसका खासा प्रभाव लेकिन रवैया वही अलीगढ़ जामिया या कही के भी पढ़े लिखे कल्चर्ड मुस्लिम वाला की – पैसा अच्छा खासा , खुद मॉडर्न , बच्चे पब्लिक स्कूल में , बीविया बुर्के परदे हिज़ाब से बहुत दूर , गेर मुस्लिमो से भी बेहद अच्छे रिश्ते , मगर वो कठमुल्लाशाही को ना कोई समस्या मानता हे ना उसके खिलाफ चु भी करता हे इलाके में चारो तरफ बच्चे ही बच्चे ( कठमूल्लशाही का परिवार नियोजन विरोध ) मेने मेरे कज़िन को उसी के अवचेतन मन के बारे में ये समझाया की ” तुम कठमुल्लाशाही तब्लिगीकरण के खिलाफ कुछ नहीं बोलोगे क्योकि इसी में तुम्हारा फायदा हे कठमूल्लशाही मतलब इलाके में कोई और डॉक्टर होने के चांस कम नतीजा तुम्हारे लिए कम्पीटिशन नहीं फिर इसी से अधिक बच्चे तो तुम्हारे लिए अधिक मरीज फिर अधिक आबादी यानी तुम्हारी जमीनों के दाम अधिक , फिर अधिक आबादी यानी सस्ती लेबर , पूंजी तुम्हारे पास हे ही और बस सस्ती लेबर मिल जाए तो तुम लोकल अम्बानी , यानी दुनिया में मज़े ही मज़े फिर कठमुल्लाशाही का बचाव कर करके सोचते हो की जन्नत में सीट रिजर्व और दुनिया में भी हमारी खुशाली को किसी की नज़र ना लगे यानी ये हे तुम्हारी टोटल साइकि
बेहतरीन जानकारी है। आभार।
http://www.bbc.com/hindi/india-38154048
”Ameeque Jamei कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया
16 November at 19:15 ·
सच कहू जाकिर नायक से सहमत नहीं रहा कभी, दुसरे मसलक या अकीदे पर चोट करना हमले की शक्ल में बिलकुल मुत्तफ़िक़ नही, दंभ में किसी को हराना यह इस्लाम नहीं हो सकता, सऊदी सलफी फंडिंग पर चलने वाले उनके टीवी को कौन नहीं जानता लेकिन यह सब भारत जैसी विशाल जम्हूरियत में ही हो सकता था, लेकिन उनपर आतंकवाद फ़ैलाने का इलज़ाम बेहूदा है उनके वीडियोज़ छिपे नहीं है, संघ खुद आतंकी गिरोह का सरगना है जो इजराइल में हिन्दू राष्ट की दुकाने चलाता है जिनके नाम “समझौता ब्लास्ट” केस में शामिल है , बीते महीनो में टीस्ता सहित उनके एनजीओ का ऍफ़सीआरए पर रोक नया नहीं है, ऐसे इल्ज़ामात बढ़ेंगे तैयार रहिये, जाकिर नायक के सरपरस्त सऊदी राजा जिन्होंने मोदी जी को फर्स्ट सिटिज़न अवार्ड दिया यह उसका बदला समझे और वोह सलफी मौलवी हजरात भी भी जो सऊदी विजिट में शामिल थे, शायद ऍफ़सीआरए पर बैन हटवा लेंगे टेंशन न ले! ”
इस विषय पर अमीक जमाई जैसे लोगो पाकिस्तानी मानवाधिकार कार्यकर्त्ता फौज़िया सईद की बात समझनी चाहिए की आतंकवाद तो दसवा स्टेप होता हे और बहुत से लोग एक से नो तक ख़ुशी ख़ुशी साथ चलते हे फिर जब दसवा स्टेप हो जाता हे तो खिसक जाते हे संघी आतंकवाद का विरोध होना चाहिए मगर समझदार मुसलमानो दुआरा जाकिरों के बचाव का कोई फायदा नहीं हे इस विषय पर जो समझदारी की बात हे वो हिमांशु कुमार जैसे मानवाधिकार कार्यकर्त्ता कर ही रहे हे ( ऊपर लगाई भी हे ) हमें तो हर हाल में जाकिरों का विरोध ही करना चाहिए
तारिक फ़तेह के साथ मार पिट पर दो दक्षिणपंथी झुकाव वाले’ सेकुलरो ” के विचार. मोहम्मद ज़ाहिद ”एक मुस्लिम होने के नाते मुझे तारेक फतेह की बहुत सी बातों से तकलीफ है, तारेक फतेह संघ द्वारा भारत में इम्पोर्ट किया गया उनका वह “फूफा” है जो भारत के मुसलमानों को गाली देने के लिए लाया गया है। यह देश का दुर्भाग्य है कि भारत में एक विदेशी से भारतीयों को गाली देने के लिए संघ और भाजपा ने उस व्यक्ति को बुलाया जिसे उसके अपने देश पाकिस्तान ने भगाया और फिर सऊदी अरब ने तो अपने यहाँ घुसने पर ही प्रतिबंध लगा दिया है। सोचिएगा कि भारत में इन संधियों के अंदर मुसलमानों के प्रति नफरत किस हद तक भरी हुई है।संघ और भाजपा की यह नीति रही है कि जिस धर्म या जाति का विषय हो उस मुद्दे पर वह अपने उसी धर्म या जाति वाले एक पालतू गुड्डे को अपना बचाव या आक्रमण करने के लिए आगे कर देता है।मैं प्रसन्नचित मन से तारेक फतेह की भरपूर पिटाई की निंदा करता हूँ। Source: indian Express मोहम्मद ज़ाहिद” —संजय तिवारी Sanjay Tiwari2 hrs · तारिक फतेह के साथ मारपीट हुई यह दुखद है, लेकिन उससे ज्यादा दुखद यह है कि इसकी सूचना अभिव्यक्ति की आजादी वाली गैंग बांट रही है। वह भी मजे लेकर। हंसते खिलखिलाते हुए। भला हुआ। बड़ा अच्छा हुआ। यह नफरत फैला रहा था। इसको जवाब मिल गया।तो लिबरल जिहादियों का फरमान मान लिया जाए कि तारिक फतेह जैसे “पाकिस्तानी” नफरत फैलाते हैं और जाकिर नाईक जैसे “हिन्दुस्तानी” प्यार का दरिया बहाते हैं? हिन्दुस्तान के पाकिस्तान परस्त मुसलमानों की तारिक फतेह से नफरत जग जाहिर है। एक बीमार समुदाय में भला चंगा आदमी बीमार न घोषित किया जाए तो भला वे खुद को निरोग कैसे घोषित करेंगे लेकिन ताली बजाने से पहले यह तो देख लेते कि जिसने तारिक फतेह के साथ मारपीट की है वह कौन है? एक कश्मीरी नौजवान अगर तारिक को मारकर सच्चा हिन्दुस्तानी बन जाता है तो हम उसका स्वागत करेंगे लेकिन क्या वह ऐसा करेगा?तारिक फतेह पर यह हमला अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला तो नहीं है क्योंकि तारिक पंजाबी नस्ल का बंदा है, इतने से हार नहीं मानेगा लेकिन उनका मानसिकता दिवालियापन जरूर है जो खुश होकर ताली बजारहे हैं।
में भी तारिक साहब से सहमत था मगर धीरे धीरे वो कुछ ज़्यादा ही लाउड हो गए उन्हें संघियो और छी न्यूज़ जेसो की गोद में भी नहीं बैठना चाहिए था दूसरा की जो वो चाहते हे ( लिबरल इस्लाम ) ये काम चुपचाप शांति से करने की कोशिश करनी चाहिए हमें” टी आर पि ” और वायरल होने के मोहजाल से बचना चाहिए क्योकि फिर पता ही नहीं चलता की कब ”विचार ” की जगह ”व्यक्ति ” केंद्र में आ जाता हे मुद्दे की जगह व्यक्ति मुद्दा बन जाता हे खेर शमशाद साहब जो तारिक की तरह खुद कनाडा और वहां के लेफ्ट से हे Shamshad Elahee Shams
14 hrs ·
मेरा स्पष्ट मत है कि बात का जवाब बात से, किताब का जवाब किताब से और लात का जवाब कानून से ही दिया जाना चाहिए. तारेक फ़तेह के साथ हुई कथित मार पीट की मैं किसी भी हालत में तरफदारी नहीं कर सकता. ६७ वर्षीय आदमी से उसके बेटों की उम्र के लडके बदसलूकी करें ये कौन सा जनवाद है ? हमारी तारेक फ़तेह से लाख असहमतियां सही लेकिन कोई उसे मारे पीटे तो आप में और प्रोफ़ेसर साभरवाल (मध्य प्रदेश काण्ड ) को पीटने वालों में क्या अंतर रह गया? तारेक फ़तेह की पिटाई पर मुसंघियों और जनवादियों की एकता गज़ब दिखी. मैं भारतीय समाज के मनस में छिपी इस बर्बरता की तीव्र भर्त्सना करता हूँ.
तारेक फ़तेह भड़काऊ आदमी है, आप अगर भड़क गए तो माफ़ करना आप उसके शिकार बन गए. आपके दो चार थप्पड़ लगने से वह आपका शिकार कतई नहीं बना, इस गलतफहमी में न रहिएगा
Tabish Siddiquiतारिक़ फ़तेह आपकी ही आवाज़ हैं.. ये आप कब समझियेगा?चौदह सौ सालों से लग रहा है आपको कि आलिम और मौलाना आपके क़ौम की आवाज़ हैं मगर आप ये नहीं देखते कि उन आवाज़ों ने आपको कहाँ से कहाँ पहुंचा दिया है.. आप कितने गुट में बंट गए और कितना खून ख़राबा हो रहा है.. कोई आपकी इस गुटबाज़ी और सदियों की जेहालत पर आवाज़ उठाये तो आप उसे मारेंगे?जिन्होंने आपकी क़ौम के एक बड़े हिस्से हो दहशतगर्द बना दिया है उनको आपने कभी पकड़ के मारा है आजतक? आप उसे मारेंगे जो आपको दहशतगर्द बोलेगा.. ये तो वही हुवा की डॉक्टर बिमारी बता दे तो आप उसे पकड़ के पीट दें.. स्वीकार कीजिए कि सदियों से इन उलेमाओं ने आपके यहाँ वैज्ञानिक नहीं पैदा होने दिए.. सदियों से इन उलेमाओं ने आपकी समझ को ज़ंग लगा दिया है.. और आप उन्हें अभी भी क़ौम की आवाज़ समझते हैंतारिक़ साहब के सवालों का जवाब दीजिये.. अपनी क़ौम में “कलाम” (तर्क वितर्क) को प्राथमिकता दीजिये.. मोदी चाहे रहें या जाएँ उस से आपके अपने हालात नहीं सुधरने वाले हैं क्यूंकि आप सदियों से जहाँ थे आज भी वहीँ हैं.. पहचानिए उन छुपे हुवे लोगों को अपने बीच जो बुद्धिजीवी बन के छुपे हुवे हैं और हर मर्ज़ की दवा अभी भी आपको “मज़हब” बताते हैं और सुब्हान अल्लाह सुब्हान अल्लाह करते हैंतारिक़ फ़तेह आज के इस्लाम की वही आवाज़ हैं जैसे वर्तमान भारत सरकार का विपक्ष, जिसमे आप भी बड़ी मात्रा में शामिल हैं.. गिने चुने तीन चार लोगों, तारिक़ फ़तेह, तस्लीमा नसरीन, रुश्दी को मार डालियेगा तो क्या बच जाएगा? इस्लाम बच जाएगा कि ईमान बच जाएगा?
सुनिये इन्हें ध्यान से.. आपके लाखों आलिमों के पास इनकी एक भी बात का जवाब नहीं है.. अगर होता तो ये आपसे उन्हें ख़त्म करने को न कहते.. कितनी सदियां और आप यही बेवकूफ़ी करेंगे?~ताबिशLike · Reply · 1 · 7 minsMohammad Arif DagiaMohammad Arif Dagia तारिक फतह की हर बेवकूफाना दलील का मेरे पास जवाव है। उसके कुतर्कों पर आप फ़िदा हैं ,ये हैरत की बात है।आपको मालूम नही कि वह मुसलमानों पर नही इस्लाम पसर हमला करता है ;पर आप इसको नही मानेगे और मुझको भी वही नाम देंगे—कट्टरपंथी ;जबकि वो खुद तारिक फतह है -इस्लाम के प्रति कट्टर ///
तारिक फ़तेह का साथ जो हुआ खुद तारिक जिन्हें हम बहुत पहले से रावल टीवी पर इतने बड़े बुद्धिजीवी की तरह सुनते थे सीखते थे पर वो जिस तरह से भारत आकर कभी कभी अजीब से लगते हे अजीब सी बाते करते हे ये तो होना ही था इसलिए तो हमने हमेशा कहा की एक ”शुद्ध सेकुलर भारतीय मुस्लिम ” होना दुनिया का सबसे बड़ा ” भेजा फ्राई ” हे ( उसमे भी सुन्नी देवबंदियों का तो काम पूछो ही मत कितना कठिन हे इसलिए सारी लिबरल भारतीय मुस्लिम आवाज़े शिया या सूफी या बरेलवी ही मिलेगी ) इससे ज़्यादा कठिन और दिमाग को पीस देने वाला और कोई काम नहीं हे हर काम में सफल होने पर सरदर्दी कम होती हे अच्छा लगता हे मगर एक शुद्ध सेकुलर भारतीय मुस्लिम का काम इतना जटिल हे की जो इस काम में जितना सफल होता जाएगा उसका जीवन उतना ही कठिन होता जाएगा . राहत नहीं मिलेगी सिर्फ आफत मिलेगी . तारिक साहब के साथ भी यही हुआ उनका काम चिंतन कनाडा में बहुत आसान था और तो और पाकिस्तान में भी शुद्ध सेकुलर मुस्लिम होना इतना दिमाग की चटनी नहीं करता हे जितना भारत में . तारिक साहब इन सब जटिलताओं को नहीं समझ पाए उम्र और केंसर के बाद वो कुछ जल्दी में भी लगते हे नतीजा उन्हें पता ही नहीं चला की काम भारत आकर कठमुल्लाशाही का विरोध करते करते करते कब वो उन लोगो की गोद में सेटल हो गए जो खुद बेहद संकीर्ण और छोटी सोच के हे—- ?
जाकिर नायक के समर्थक किस प्रकार की मानसिकता के लोग हो सकते हे ये इन ज़ाहिद साहब की ” वहशी ” बात से समझिये और ये याद रखिये की ज़ाहिद साहब जैसे लोग तो फिर भी खुद के लिबरल सेकुलर होने का खासा दिखावा करते हे मगर ज़ाकिर नायक का सपोर्ट भी नहीं सिर्फ बचाव करने से हि केसी अजीबो गरीब मानसिकता हो सकती हे पढ़िए एक बेचारी बेकसूर लड़की को धोखे से मार दिया गया था और ये साहब देखिये क्या बक रहे हे —- ? ” Mohd Zahid
3 hrs ·
Short Post/16-1419
बदचलन और अश्लील कंदील बलोच की मौत पर पछाड़ मार कर रोने वाली भाँड मीडिया आज जुनैद जमशेद की मौत पर चुप है।
सिद्ध करता है कि भाँड मीडिया का किसी की मौत से कोई मतलब नहीं बल्कि मतलब केवल इस्लाम और मुसलमानों को बदनाम करना होता है।
लानत ”
Sanjay Tiwari संपादक विस्फोट
Yesterday at 09:29 ·
गिरोहबाजी के मामले में इस्लाम सबसे कट्टर गिरोह है। पलक झपकते लोग पगला जाते हैं। जैसे बुद्धि विवेक से कोई वास्ता ही नहीं है। सोचने समझने की शक्ति मुसलमानों से छीन ली जाती है। उन्हें एक संगठित गिरोह में तब्दील कर दिया जाता है कि तुम एक मुसलमान हो और तुम्हे एक सामान्य इंसान की तरह नहीं जीना है।
यह जो लोग मुसलमानों को सच्चे मुसलमान का पाठ पढ़ाते हैं उनका अपना बड़ा संगठित तंत्र होता है। पूरा भरापुरा कारोबार होता है। वे इस्लाम का बड़ा जबर्दस्त कारोबार करते हैं। इमाम बुखारी से लेकर आले सऊद तक। सब इस कारोबार में लिप्त हैं। उनका यह कारोबार चलता रहे इसके लिए जरूरी है कि मुसलमान माइन्डलेस रहे। दिमाग लगायेगा तो सबसे बड़ी प्राब्लम इन्हीं ठेकेदारों को आनेवाली है। इसलिए दीन के नाम पर दुनियाभर के प्रपंच रचे जाते हैं।
यह जो राष्ट्रवादी गिरोह है हिन्दुओं के साथ वह भी ऐसा प्रपंच रचे बैठी है। राम मंदिर बना देंगे। मुसलमानों को भगा देगी। पाकिस्तान की ईंट से ईंट बजा देगी। कश्मीर से धारा 370 हटा देगी। समान नागरिक संहिता लागू करवा देगी। सारा काला धन विदेश से वापस ला देगी। यह सब सुना सुनाकर पहले आपको माइन्डलेस कर दिया फिर चुपके से कैशलेस स्कीम चला दिया। धंधा करो, धंधा। लड़ने झगड़ने में कुछ नहीं रखा है। धंधा ही असली राष्ट्रवाद है। जैसे वो इस्लाम के नाम पर अल्लाह के नाम पर जिहाद करवा रहे हैं वैसे ही ये राम के नाम पर पेटीएम बिकवा रहे हैं। सबका अपना अपना धंधा है।Sanjay Tiwari संपादक विस्फोट
”Nirendra Nagar
23 December at 20:09 ·
आज ऑफ़िस में क्रिसमस सेलिब्रेशन था। पहले दिवाली और होली सेलिब्रेशन भी हुआ। लेकिन कभी ईद सेलिब्रेट नहीं की गई जबकि कम्पनी में मुस्लिम कर्मचारियों की संख्या ईसाई कर्मचारियों से ज़्यादा ही होगी। हमारे मुस्लिम साथी इस पर क्या सोचते होंगे, कभी HR ने सोचा? कभी हमारे बाक़ी साथियों को लगा कि कहीं कुछ भेदभाव हो रहा है? ईद पर पुरुष कुर्ता-पायज़ामा और महिलाएँ शलवार-कुर्ता पहनकर आएँ, नीचे क़व्वाली और ग़ज़ल का कार्यक्रम हो, सेवैयाँ और दूसरे पकवान हों। क्यों नहीं हो सकता ऐसा? ” वरिष्ठ पत्रकार और संपादक नीरेंद्र नागर जी का मुद्दा अपनी जगह सही हे सेकुलर हिन्दू अपनी तरफ से कोशिश करते रहे हे करते भी हे सही हे लेकिन फिर भी अगर ऐसा होता नहीं हे फिलहाल जैसा नागर जी छह रहे हे तो शिकायते नहीं बल्कि हमें कुछ बाते समझनी चाहिए की एक तो ईसाइयत से तुलना नहीं क्योकि ईसाइयत ने तो अपने सभी प्रतीको का सेकुलरिकरण कर दिया हे बात करे मुस्लिम प्रतीको की तो हम मुस्लिमो को भी समझना होंगा फिर आगे समझाना ही होगा की उपमहादीप हर जगह एक हिन्दू मुस्लिम सभ्यताओ के बीच वर्चस्व का संघर्ष या खींचतान सी चलती रहती ही हे जिसका इलाज़ कोई भी शिकायत तेरी मेरी किंतुपरंतु से नहीं होगा इसका एक ही इलाज़ हे शुद्ध विशुद्ध सेकुलर बनना हे बिना ये देखे की सामने वाला कैसा हे कैसा नहीं . बस जो भी हे हमें शुद्ध सेकुलर बनना हे और बनाना हे यही हे और कोई हल नहीं हे
ये सिकंदर हयात तो मुझे इस्लाम का दुश्मन लगता है। जाकिर नायक जिसने भटके हुए गैर मुस्लिम लोगो को इस्लाम मे दाखिल किया । उन पर इल्जाम लगाते है कैसे आस्तीन के सांप है।
नफीस भाई ये शायद आपका इस साइट पर पहला कमेंट हे आपका यहाँ बहुत बहुत इस्तकबाल हे शुक्रिया नफीस भाई लेख मेरा नहीं हे मरहूम साज़िद रशीद का हे और जब भी समय हो तो ज़रा विस्तार से बताइये की में आस्तीन का सांप कैसे और क्यों हो गया कैसे भला ——- ?
जाकिर नायक साहब ने अनेको लोगो को उनकी समझ वाला मुसलमान बना दिया. वो और इन जैसे अनेको सो कोल्ड इस्लामी विद्वानो ने अधिकांश लोगो के सामने, इस्लाम की ये परिभाषा रख दी कि इस्लाम के मुताबिक, ईश्वर एक है, मुहम्मद साहब उसके आख़िरी पैगंबर है, बहू-ईश्वरवाद शीर्क है, जो नाकाबिले माफी है. और जो इस पर यकीन करते हैं, वो कलमा पढ़ कर मुसलमान बन सकते हैं, और जो ये संदेश मिलने के बाद भी और मरते दम तक इससे असहमत रहते हैं, वो जहन्नुम या दोजख की आग मे जलेंगे, और जो मुसलमान बन गये, वो अपने गुनाहो की छोटी मोटी सज़ा काट कर, जन्नत मे जाएँगे. जन्नत भी अनंत काल तक, और दोजख भी अनंत काल तक.
जितने लोगो को उन्होने अपनी समझ का मुसलमान बनाया है, उससे सैकड़ो हज़ारो गुना लोगो तक इस्लाम की ये परिभाषा गढ़ दी. इसका नतीजा यह हुआ कि तथाकथित गैर-मुस्लिमो ने बिना आगे इस्लाम के बारे मे जानने के, इस्लाम के प्रति अपनी राय बना ली.
उनको ये बताने वाले लोग नही है कि जनाब, कितने ही मशहूर गैर-मुस्लिमो ने क़ुरान और पैगंबर मुहम्मद की जीवनी पढ़ने के बाद, उनकी सादगी और मूल्यो की भूरी-भूरी प्रशंसा की है. और वो जाकिर नाइक टाइप के मुसलमान नही बने. अगर इस्लाम के मुताबिक, परलोक मे न्याय का पैमाना यही होता, तो मुहम्मद साहब के प्रशंसक होने के बाद, क्या वो कलमा पढ़ कर, दाढ़ी बढ़ा कर वैसे वाले मुसलमान नही बन गये होते, क्यूँ अपने आप को दोजख की आग मे जलाने की तैयारी करते?
ऐसे एक नही हज़ारो जाकिर नाइक अब समाज मे मौजूद है, जिन्होने सो कोल्ड गैर मुस्लिमो के जहन मे इस्लाम शब्द और मुहम्मद साहब के बारे मे ठूस ठूस के नफ़रत भर दी.
मेरे सर्कल मे जितने भी लोग है, वो जाकिर नाइक वाले इस्लाम को ही असल इस्लाम समझे बैठे हैं, और इस्लामोफ़ोबिया के शिकार हो गये हैं. अब ये जनाब इस्लाम की सेवा कर रहे हैं, या नुकसान, ये जनता ही जाने.
इंसान की ये आम कमज़ोरी है के वह हर चीज़ को अपनी ज़ात के लिहाज़ से नापता है , जो चीज़ उसकी बड़ाई मैं इज़ाफ़ा करे या कम अज़ कम उसकी बड़ाई को बाकी रख्खे उसका वह पुर जोश तोर पर हामी बन जाता है इस के बर अक्स जो चीज़ इस को अपनी बड़ाई के लिए खतरा नज़र आए उसका वह दुश्मन बन जाता है खुवाह वह बजाए खुद कितनी अच्छी चीज़ क्यों ना हो |
तस्वीरे मिल्लत
मौलाना वहीदुद्दीन खान
” हज़ारो जाकिर नाइक अब समाज मे मौजूद है, जिन्होने सो कोल्ड गैर मुस्लिमो के जहन मे इस्लाम शब्द और मुहम्मद साहब के बारे मे ठूस ठूस के नफ़रत भर दी.मेरे सर्कल मे जितने भी लोग है, वो जाकिर नाइक वाले इस्लाम को ही असल इस्लाम समझे बैठे हैं, और इस्लामोफ़ोबिया के शिकार हो गये हैं. अब ये जनाब इस्लाम की सेवा कर रहे हैं, या नुकसान, ये जनता ही जाने. ” सही कहा जाकिर भाई ने मेरी एक कज़िन सिस्टर ने इंजीनियरिंग की हुई हे मल्टीनेशनल में काम करती आई हे पूरी तरह सेकुलर लेडी . जाकिर नायको के उदय से पहले वो मुझे बताती थी की उनके गेर मुस्लिम कुलीग उनके लिए कितने उत्साह और एहतराम से इफ्तार पार्टी का इंतजाम करते थे आदि आदि अब मुझे उनकी टोन बदली हुई लगती हे ” इस्लामफोबिया ” की बाते , झुंझुलाहट , कुलीग से बहस की बाते मेने उनसे सुनी हे ये हालात जाकिरों और मोदियो के कारण ही हुए हे जहां मोदियो के खिलाफ हिन्दू सेकुलर वर्ग जी जान से जुटा हे वही मुस्लिम एजुकेटिड वर्ग तक जाकिरों के सामने सरेंडर रहता हे ( धूलागढ़ दंगो की पृष्टभूमि पर लिखे अगले मुस्लिम इन्टॉलरेंस पर लेख में में विस्तार से लिखने की कोशिश करूँगा ) हमने इसलिए ये बड़वानी के छात्र का मुद्दा भी उठाया हे क्योकि बात सिर्फ जाकिर की नहीं हे हज़ारो जाकिर घूम रहे हे एक मेरी ”लेडी जाकिर नाइक ” कज़िन हे ऊपर उनके बारे में विस्तार से बताया हे ये आजकल अपने लिए मुस्लिम नौकरानी ढूंढ रही हे हिन्दू नौकरानी से घर के काम भी इनसे बर्दाश्त नहीं हे हो चुकी हे . इनके दो टीन एज बच्चे हे सोचिये उन पर क्या असर होगा इस इन्टॉलरेंस का , वो भी भारत जैसे देश में जहा कदम कदम पर विवेधताये हे समस्याए हे ———- ?
अगर आदमी सच्चा ख़ुदा परस्त है तो लाज़िमन वह सच्चा ‘इन्सानी दोस्त’ भी होगा! यह दोनो सिफ्तें कभी एक दूसरे से जुदा नहीं होतीं !!
इस्लाम की विकृत परिभाषा से भी अधिक भूमिका, इस्लाम या पैगंबर मुहम्मद की नकारात्मक छवि बनाने मे, उस उकसावे की रही है, जिसे राजनैतिक इस्लाम या शरीयत कहा जाता है. इस तरह के धर्मगुरू, पैगंबर मुहम्मद के जीवन से प्रेरित एक राजनैतिक व्यवस्था की पैरवी करते हैं. जाहिर तौर पे अन्य राजनैतिक विचारधाराओं की तरह, अनेक लोग इससे भी अनेक जगह असहमत होते हैं. अब चूँकि इस राजनैतिक विचारधारा को पैगंबर मुहम्मद की आड़ लेके प्रचारित किया जा रहा है, असहमति के ये स्वर, उनकी आलोचना या अपमान की तरह इन्हे नज़र आते हैं. जिसे ये ब्लेस्फेमी कहते हैं, और इनकी इस्लाम की समझ के तहत, ब्लेस्फेमी के लिए किसी की हत्या भी कर दी जाए तो गुनाह नही. इसे ये बड़े बेशर्म और भौड़े तरीके से कहते भी हैं.
अब इस तरह की हिंसक प्रतिक्रिया, एक आम और धार्मिक बहसो से दूर रहने वाले व्यक्ति को भी विचलित कर देती है, और उसे भी इस विचारधारा जिसे ये उस महान व्यक्ति से प्रेरित बतलते हैं, को उसकी निंदा करने के लिए मजबूर कर देते हैं.
ऐसी सूरत मे इनकी दुकान और चमकती है, क्यूंकी पैगंबर मुहम्मद की निंदा, को ये इस्लाम की असुरक्षा से जोड़ कर प्रचारित करते हैं, और फिर तथाकथित मुस्लिम समुदाय के शांतिप्रिय तबके को भी अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं.
यानी दोनो वर्गो मे असुरक्षा और नफ़रत. यानी बैठे बिठाए, आ बैल मुझे मार.
” Mohammed Afzal Khan
19 hrs ·
क्या ज़माने में पनपने की यही बाते है !देखिये अरब के शैख़ अपने पशु पक्षियों को हवाई सफर करा रहे है , क्या बेवक़ूफ़ी है , हराम की कमाई को फ़ालतू शौक़ पे लुटाया जा रहा है !!Sheetal P Singh
20 hrs ·
बिना किसी मशक़्क़त के मिले पैसे का स्तेमाल
सऊदी शेख़ अपने पालतू बाज़ और दूसरे पालतू पशु पक्षियों के लिये हवाई यात्राओं पर भारी भरकम ख़र्च किया करते हैं
दुनिया को यह अहमकाना लगता है । ” याद रहना चाहिए की इसी बिना मेहनत के पैसे ने उपमहादीप में जाकिर नायको की फौज भी पैदा की हे इसलिए ये कही भी कुछ ही पॉजिटिव करने में विफल रहे हे बिना पसीने का पैसा कभी भी कोई अच्छा रिजल्ट दे ही नहीं सकता हे
एक शादी में एक चरित्र से मुलाकात हुई ये साहब पिछले साल अपनी माँ की मौत के बाद डिप्रेशन से में आ गए थे और बेहद रिलजियस हो गए थे रिलिजियस होने में हर्ज़ नहीं हे दिक्कत हे इन जाकिरों की फौज से . खेर वो साहब विभन्न धर्मगुरुओ उनकी संअस्थाओ में उनकी गतिविधियों में चक्कर लगाने लगे यहाँ तक की इनकी आद्यमत्मिक और सूकून की तलाश इतनी बड़ी की बिना देवबंदी बरेलवी का भेद किये वो सब जगह जाने लगे पिछले साल तक तो बड़े खुश थे बड़बड़ाते दीखते थे इतना सकून मिलता हे इतना अच्छा लगता हे ये होता वो होता हे आख़िरत ये वो आदि आदि खेर अब जब परसो एक शादी में मिले तो मेने आदत से मज़बूर होकर उनसे पूछताछ शुरू की तो पता चला की वो तो भरे बैठे थे सबको सबको सारे मज़हब के बड़े बड़े खिलाड़ियों को भला बुरा कहने लगे ( ऊपर मेने अपनी जिन लेडी जाकिर नायक सिस्टर का जिक्र किया उन्हें भी कहने लगे ) बोले की सब धंधेबाज़ हे दीन दीन करके सबको बेवकूफ बनाते सब एक एक करोड़ रूपये की गाड़ियों में घूम रहे हे खूब पैसा छाप रहे मदरसे की बात करते हे अपने बच्चे सबके पॉश पब्लिक स्कुल में करोड़ो अरबो के एम्पायर खड़े कर रखे हमसे कहते हे की तुम सादगी से रहो आख़िरत की तैयारी करो और भी बहुत भला बुरा कहा सबको
Tabish Siddiqui
9 hrs ·
देखिये ये कैसे आप को अपना ग़ुलाम बना के रखते हैं.. हम होली का रंग लगाएं तो ये आएंगे हमारे पास और बोलेंगे “जनाब.. क्या कर रहे हैं आप.. ये तो हराम काम है”
हम पूछेंगे कि “हराम कैसे है जनाब?”
के कहेंगे “जनाब हदीस है.. और हदीस में लिखा है ऐसा”
आप कहिये कि ऐसी तो कोई हदीस नहीं हैं तो कहेंगे जनाब “हदीस तो नहीं मगर 1300 ईस्वी में एक आलिम थे इब्न-क़य्यूम, उन्होंने कहा था कि दूसरों धर्मों के लोगों को मुबारकबाद देना और उनके त्यौहार मनाना हराम है”
हम पूछेंगे “कि वो आलिम साहब कहाँ के थे?”
कहेंगे “जी वो सीरिया के आलिम थे”
हम कहेंगे “तो सीरिया में इस वक़्त जो बग़दादी साहब हैं वो भी लगभग यही सब कहते हैं.. तो उनकी भी बात मानी जाए फिर? हम रहें हिंदुस्तान में और राय लें सीरिया वालों से कि कैसे हम अपने देशवासियों के साथ रहें और कौन सा त्यौहार मनाएं और कौन सा नहीं?”
फिर ये कोई हदीस छांट के निकाल के लाएंगे.. जिसमे लिखा होगा कि मुहमद साहब ने ऐसे कहा था.. जब मैं कहूंगा कि हदीस की रवायत कैसे होती है आपको पता है? जिस बात को आप इतने दावे से कह कर आप हमको हराम और हलाल समझा रहे हैं आपको पता है वो कैसे लिखी गयी?
हदीस इसको कहते हैं समाझिये “पैगंबर साहब के जाने के ढाई सौ साल, मतलब आज से लगभग बारह सौ साल पहले, कुछ लोगों से पूछा गया कि फलाने प्रकरण के बारे में पैग़म्बर की क्या राय थी तो जब किसी ने कहा कि “क” ने “ख” से कहा कि उसने “ग” से ये सुना कि “घ” ने अपने दादा “च” से ये सुना था कि “द” ने “न” के बेटे को ये कहते सुना कि मुहम्मद साहब ने इस बारे में ऐसा कहा था”.. इसे सही हदीस मान लिया गया.. ऐसे लिखी गयी थी हदीसें..ज़बानी बातों को लोगों से सुन सुन कर इक्कट्ठा कर के.. वो भी पैग़म्बर के जाने के सैकड़ों साल बाद
और ये हदीसें आज लगभग सौ प्रतिशत मुसलमानो के जीने का ढंग निर्धारित करती हैं.. ये किताबें और ये बातें जो सैकड़ों साल पहले उस समय और परिवेश के अनुसार रची गयीं वो आज हम इक्कीसवीं सदी के लोगों को बताएंगी कि कैसे जियें.. जो दोस्त और पड़ोसी दूसरे धर्म का है और जिसके साथ सारी उम्र का ताना बाना है और उसी के साथ कमाना खाना और जीना है, उसके त्यौहार और खुशियों को हम सीरिया और इराक़ में लिखी गयी किताबों के हिसाब से मनाएं और बहिष्कार करें
सोच के दिल से बताईये कि बहिष्कार इन विदेशी धारणाओं और वहां के परिवेश में लिखने वाले इन लेखकों का हमे करना चाहिए कि अपने भाई, पड़ोसी और देशवासी के दिल का करना चाहिए?
आप कभी नज़ीर अकबराबादी की बातों को हदीस जैसा क्यूँ नहीं मानते हैं? आप कबीर की बातों को धार्मिक तौर पर क्यूँ नहीं देखते हैं? आप बुल्ले शाह को अपना आलिम क्यूँ नहीं स्वीकार करते हैं? आपको ये विदेशी इब्ने क़य्यूम और इब्न तैमिया बताएँगे कि हिंदुस्तान में अपने देशवासियों के साथ कैसे रहना है और कैसे जीना है? इनकी बातें मान कर आप कभी अपने समाज का सामंजस्य देश के अन्य धर्मों के लोगों के साथ बिठा पाएंगे?
पाकिस्तानियों ने इन्ही विदेशी लेखकों को अपना सब कुछ माना और देखिये उनका जीवन.. नर्क से बदतर हो चुका हैTabish Siddiqui
Sanjay Tiwari
7 mins ·
योगी सरकार ने कहा है कि अब मदरसों में व्यावसायिक शिक्षा भी दी जाएगी। हिन्दी, गणित, अंग्रेजी के साथ साथ कुछ रोजी रोजगार वाला हुनर भी सिखाया जाएगा। पता नहीं यह पहल अच्छी है या नहीं, यह भी पता नहीं, मदरसे इसके लिए तैयार होंगे या नहीं क्योंकि वो जो शिक्षा देते हैं उसमें व्यवसाय के लिए कहीं जगह नहीं है। मदरसा दीनी तालीम के लिए हैं, दुनियावी तालीम के लिए नहीं। दीनी तालीम के नाम पर क्या पढ़ाया जाता है मदरसों में? पाकिस्तान के एक मॉडरेट इस्लामिक विद्वान जावेद अहमद घामड़ी बताते हैं कि दुनिया में कहीं भी मदरसा होगा वो चार चीजें पढ़ायेगा ही। आपके सामने न पढ़ाये तो आपके पीछे पढ़ायेगा, लेकिन पढ़ायेगा जरूर। वो चार बातें हैं-१) दुनिया में जहां कहीं भी शिर्क (मूर्तिपूजा) कुफ्र (इस्लाम के खिलाफ व्यवहार) और इर्तिदाद (इस्लाम छोड़कर जाना) होगा उसकी सजा मौत है और यह सजा देने का हक हमें (मुसलमान को) हासिल है।२) दुनिया में गैर मुस्लिम सिर्फ महकूम (शासित होने) के लिए पैदा किये गये हैं। दुनिया पर मुसलमानों के सिवा किसी को शासन करने का हक नहीं है। गैर मुस्लिमों की हर हुकूमत नाजायज हुकूमत है, जब हमारे पास ताकत होगी, हम उसे पलट देंगे।३) संसार में मुसलमानों की एक ही हुकूमत होनी चाहिए जिसे खिलाफत कहते हैं। मुसलमानों की अलग अलग हुकूमतों का कोई मतलब नहीं है।३) राष्ट्र राज्य (लोकतंत्र) कुफ्र है, हमें इसे खत्म करना है।ये चार बुनियादी बातें हैं जो हर मदरसा और हर इस्लामिक सियासी जमात अपने लोगों को सिखाती और समझाती हैं। जावेद घामड़ी सवाल करते हैं कि अगर ये चार बातें आपको सिखा दी जाएं तो आप क्या करेंगे? वही करेंगे जो मुजाहिद बने मुसलमान कर रहे हैं।लेकिन हमारे यहां मुश्किल ये है कि मदरसों को पवित्र गाय बना दिया गया है। वोट देनेवाली पवित्र गाय। मदरसों की जांच पड़ताल करने की बजाय उसे सरकारी मदद दी जाती है। क्यों दी जाती है? क्या सिर्फ इसलिए कि वो लोकतंत्र के खिलाफ जिहाद की ट्रेनिंग देते हैं?मदरसों को व्यावसायिक बनाने की मूर्खतापूर्ण कोशिश की बजाय मदरसों को मिलनेवाली सरकारी मदद बंद करनी चाहिए। जो शिक्षण संस्थान जिस बात के लिए डिजाइन ही नहीं किया गया उसमें आप वह कहां से भर देंगे? बुनियादी शिक्षा अगर जिहाद ही है तो कम्प्यूटर सिखाने से उस मानसिकता में क्या बदलाव आ जाएगा?योगी जो कर सकते हैं वो ये कि मदरसों को मिलनेवाली सरकारी इमदाद बंद करें। और मदरसों को ही नहीं, किसी भी प्रकार की धार्मिक शिक्षा व्यवस्था को सरकार पैसा क्यों देगी? उलटे सरकार इस बात की जांच जरूर करे कि वहां पढ़ाया क्या जा रहा है? अगर कहीं उसे कुछ ऐसा लगता है कि यह लोकतंत्र के खिलाफ है तो उसके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए।Sanjay तिवारी–संपादक विस्फोट ——————————————Shambhunath नाथ शुक्ल अमर उजाला
6 hrs ·
देवबंद जाना हो तो मुझे लगता है कि दारुल उलूम अवश्य जाना चाहिए। इसलिए नहीं कि यह इस्लामिक शिक्षा का एक विश्वप्रसिद्घ केंद्र है बल्कि इसलिए भी कि यहां का अनुशासन और विद्यार्थियों की जनतांत्रिक चेतना आपका मन मोह लेगी। बड़ी-बड़ी कक्षाओं के बावजूद गैलरी में जगह-जगह विद्यार्थी बैठे हुए अपने अध्ययन में डूबे मिल जाएंगे। चौकी पर पुस्तक रखे ये विद्यार्थी अपना पाठ रटते ही नहीं बल्कि आपस में बहस-मुबाहिसा कर किसी समस्या अथवा प्रश्न की तह तक पहुंचने का प्रयास करते हैं। यहां हर छात्रावास के बाहर परचे चिपके मिल जाएंगे जो दरअसल बुलेटिन की तरह के अखबार होते हैं और ये छात्र हर समस्या पर बेखौफ होकर अपने विचार रखते हैं। ठीक फेसबुक की तरह। बस फेसबुक पर सब कुछ आभासी और क्षणिक है जबकि यहां पर हर कुछ स्थायी है। यहां पर हर कमरे में मुफ्ती बैठे मिल जाएंगे जो दुनिया भर से आए खतों का जिज्ञासा का जवाब देते मिल जाएंगे। इनके जवाब को कुछ लोग फतवा बताने की मूर्खता कर बैठते हैं लेकिन उनका जवाब यह बताता है कि इस्लामी शरीयत में इस बारे में ऐसा कहा गया है बाकी आप मानें या न मानें। यह फतवा नहीं बल्कि इस्लामिक शरीयत की व्याख्या है।
POSTED ON 13TH APRIL 2017 BY शम्भूनाथ शुक्लCOMMENT
एक बार दारुल उलूम अवश्य जाएंDarul Uloom Deoband शंभूनाथ शुक्लदेवबंद जाना हो तो मुझे लगता है कि दारुल उलूम अवश्य जाना चाहिए। इसलिए नहीं कि यह इस्लामिक शिक्षा का एक विश्वप्रसिद्घ केंद्र है बल्कि इसलिए भी कि यहां का अनुशासन और विद्यार्थियों की जनतांत्रिक चेतना आपका मन मोह लेगी। बड़ी-बड़ी कक्षाओं के बावजूद गैलरी में जगह-जगह विद्यार्थी बैठे हुए अपने अध्ययन में डूबे मिल जाएंगे। चौकी पर पुस्तक रखे ये विद्यार्थी अपना पाठ रटते ही नहीं बल्कि आपस में बहस-मुबाहिसा कर किसी समस्या अथवा प्रश्न की तह तक पहुंचने का प्रयास करते हैं। यहां हर छात्रावास के बाहर परचे चिपके मिल जाएंगे जो दरअसल बुलेटिन की तरह के अखबार होते हैं और ये छात्र हर समस्या पर बेखौफ होकर अपने विचार रखते हैं। ठीक फेसबुक की तरह। बस फेसबुक पर सब कुछ आभासी और क्षणिक है जबकि यहां पर हर कुछ स्थायी है। यहां पर हर कमरे में मुफ्ती बैठे मिल जाएंगे जो दुनिया भर से आए खतों का जिज्ञासा का जवाब देते मिल जाएंगे। इनके जवाब को कुछ लोग फतवा बताने की मूर्खता कर बैठते हैं लेकिन उनका जवाब यह बताता है कि इस्लामी शरीयत में इस बारे में ऐसा कहा गया है बाकी आप मानें या न मानें। यह फतवा नहीं बल्कि इस्लामिक शरीयत की व्याख्या है।पूरे दारुल उलूम का माहौल एक तरह से शैक्षिक ही लगता है। यहां पर विशालकाय लायब्रेरी है और उसमें न सिर्फ इस्लामिक ग्रन्थ मिल जाएंगे बल्कि वाल्मीकि की रामायण और ऋग्वेद का अरबी लिप्यंतरण भी मिल जाएगा। गीता और महाभारत का लिप्यंतरण व अनुवाद भी आप यहां पा सकते हैं। यहां पर कोई भी छात्र आकर शिक्षा ग्रहण कर सकता है। यहां तक कि गैर मुस्लिम भी। अंदर आने पर यहां भी किसी संस्कृत स्कूल का माहौल ही नजर आता है। पर यहां के छात्रों का अनुशासन देखकर कहना पड़ता है कि एक तरफ वे शहरी विश्वविद्यालय हैं जहां पर अनुशासन और पढ़ाई नाम की कोई चीज नहीं होती इसके उलट दारुल उलूम है जहां पर पढ़ाई और अनुशासन ही अहम है। यहां आकर लगता है कि आप वाकई सरस्वती के मंदिर में आ गए हैं।मेरी पसंदीदा जगह है देवबंद। यह कस्बा मुजफ्फर नगर से कुल 24 किमी दूर है। यहां पर बनियों और मुसलमानों की लगभग बराबर की तादाद है। इसके अलावा राजपूत हैं, दलित हैं और कुछ बांभन व अन्य किसान बिरादरियां जाट-गूजर व सैनी। मुसलमानों की संख्या कम भले हो पर पढ़ाई-लिखाई व शिष्टाचार में वे अन्य हिंदुओं से बीस हैं। यहां पर इस्लाम दर्शन का सबसे बड़ा केंद्र दारुल उलूम है और उसके बूते मदनी भाइयों की लंबे समय से राजनीति भी चल रही है। असम में बदरुद्दीन अजमल जी की भी। मैं जब भी जाता हूं दारुल उलूम जाकर कयाम जरूर करता हूं। वहां पर उर्दू जबान के सबसे बड़े शायर नवाज देवबंदवी साहब रहते हैं और इस्लामिक दर्शन के विश्वप्रसिद्घ विद्वान मौलाना बनारसी भी। वे इस दारुल उलूम के मोहतमिम भी हैं। दारुल उलूम के अंदर आपको जगह-जगह पर अध्ययनरत छात्रों की टोलियां मिलेंगी। अध्यापनरत मुदर्रिस मिलेंगे और कलमबद्घ करते मुफ्ती भी। दुनिया भर से मुसलमान यहां पर इस्लामी शरीयत के मुताबिक चलने हेतु अपनी-अपनी शंकाएं भेजते हैं और मुफ्ती उनका जवाब पर यह जवाब उनके लिए अपरिहार्य नहीं होता बस यह कहा जाता है कि इस्लामी शरीयत से यह सही है और यह अनुचित पर जनता को आचरण तो अपने देश के संवैधानिक कानून के मुताबिक ही करना पड़ता है।बाकी तो सब ठीक एक बात मुझे अजीब लगी कि भारत के हर कोने से छात्र यहां आते हैं और सब अपने-अपने इलाके की जबान बोलते हैं पर यूपी-बिहार और अन्य हिंदीभाषी इलाकों के छात्र न तो हिंदी बोलते हैं न हिंदी लिपि का प्रयोग करते हैं। वे उर्दू जबान और उर्दू लिपि का ही प्रयोग करते हैं। आपको यहां पर असमिया, बांग्ला, मलयालम और तेलगू के परचे निकलते मिलेंगे पर हिंदी का एक भी नहीं। ऐसा लगता है मानों हिंदी भाषा ही सांप्रदायिक और सिर्फ हिंदुओं की ही भाषा है। दारुल उलूम के अंदर आपको टोपी लगाए और गोल मोहरी का ऊँचा पाजामा पहने छात्र दिखेंगे। संभव है यह सब देखकर आपको लगे कि यहां पर गैर मुस्लिम का कोई काम नहीं पर ऐसा नहीं है। इन छात्रों को समझने की कोशिश करिए तो ये सब आपको उतने ही स्वजन लगेंगे जैसे कि आपके बंधु-बांधव। ये छात्र अन्य आधुनिक विश्वविद्यालयों के जींस धारी छात्रों से अलग भले हों पर इनमें इंसानियत और मानवीयता कहीं ज्यादा है। शायद इसलिए भी कि ये यहां दर्शन पढऩे आते हैं राजनीति के दांवपेच सीखने नहीं।मैं जब वहां गया तो ड्राइवर ने अपनी मूर्खता से गाड़ी का अगला टायर एक नाले में फँसा दिया। कुछ ही देर में तमाम छात्र दौड़े-दौड़े आए और गाड़ी उठाकर सड़क पर रख दी। एक और घटना याद हैं जब मैं मेरठ में एक लोकप्रिय अखबार का संपादक बनकर पहुंचा तो शुरू-शुरू में वहां के चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के अतिथि गृह में कुछ दिन रुका था। एक दिन ऐन कुलपति आफिस के सामने अखबार के दफ्तर से मुझे लेने आई गाड़ी धक्कापरेड हो गई। ड्राइवर ने तमाम जींस टीशर्ट वाले छात्रों से मदद की गुहार की पर एक भी मदद को आगे नहीं आया। ऐसे में वे टोपी लगाए छात्र मुझे देवदूत से लगे, जिन्होंने इनोवा जैसी भारीभरकम गाड़ी को हाथों से उठाकर सड़क पर रख दिया।शम्भुनाथ शुक्ल पूर्व संपादक अमर उजाला
Tabish Siddiqui
14 hrs ·
ज़ाकिर नायक और उनकी विचारधारा के लोगों ने एक अभियान शुरू किया था.. उस अभियान के तहत उनकी टीम विभिन्न धर्म ग्रंथों को पढ़कर उसकी व्याख्या अपने हिसाब से कर के ये साबित करने की कोशिश करती थी कि सारे ग्रंथ “एक ईश्वर” यानि “एक अल्लाह” की ही बात करते हैं.. और दूसरे धर्म के लोग अपने ही धर्म ग्रंथ की बात नहीं मानते हैं और मूर्ति पूजा जैसे “विकार” में फंसे रहते हैं.. एक आम इंसान ज़ाकिर नायक के इस प्रयास में कोई बुराई नहीं दिखेगी मगर ये ऐसी ख़तरनाक विचारधारा थी जो लाखों के दिलों में ज़हर घोल रही थी
नायक और उसकी टीम “मूर्ति पूजा” को विकार बता रही थी और बड़े बड़े मंच से अपनी बातों को मनगढंत व्याख्या से साबित कर रही थी.. सोचिये जब मूर्ति पूजा विकार है और आप उसे नही छोड़ रहे हैं जबकि आपके ग्रंथों में ही इसका विरोध है तो आप कितना बड़ा “गुनाह” कर रहे हैं फिर.. कितने अधिक गुनाहगार हो गए आप उन लोगों की नज़र में जो ज़ाकिर नायक को मानते और सुनते हैं.. पहले मामला इस्लाम तक ही था अब तो ज़ाकिर नायक बता रहा था कि आपके भी धर्म ग्रंथ ये कहने लगे कि आप “ग़लत” रास्ते पर हैं.. समझ रहे हैं आप इसे? किस तरह का ज़हर है ये.. उसके हिसाब से आप अपने ही धर्म ग्रंथों की नहीं सुनते हैं आप.. कितना गिर गए आप अब इनके समर्थकों की नज़र में सोचिये
एक और प्रोपोगंडा ज़ाकिर और उसकी टीम ने फैलाया.. और वो ये कि पहले पैग़म्बर “आदम” से लेकर ईसा तक सब इस्लाम के मानने वाले थे.. आप देखिए और ग़ौर कीजिये फेसबुक पर ही आपको अब लोग कहते हुवे मिल जाएंगे कि “जनाब इस्लाम आज से नहीं है.. ये तो आदम के समय से है.. बीच बीच मे पैग़म्बर आते गए और सही रास्ता यानी एक ईश्वर की पूजा, को बताते गए मगर लोग बार बार भटक जाते थे”.. मतलब ये कि इस्लाम के सिवा कभी कुछ था ही नहीं और ये तीन हज़ार से अधिक धर्मों के मानने वाले लोग “भटके” हुवे हैं और अपने पैग़म्बर और किताबों की बात नहीं मानते हैं और इन सबको अपने अपने भगवानों की परिक्रमा छोड़कर “काबा” का चक्कर लगाना शुरू कर देना चाहिए
ये बड़ी खतरनाक विचारधारा है.. और सालों से ये लोग इसे फैला रहे थे.. पहले तो मामला यहीं तक था कि चलिए यहूदियों ने अपनी किताब बदल दी, ईसाईयों ने बाइबिल बदल दी.. मगर ज़ाकिर नायक और उनकी टीम ने ये प्रोपोगंडा फैलाया कि सारे धर्मों के लोगों ने अपनी अपनी बातें बदल दीं.. अब सब ग़लत.. सब इस्लाम वाले ही थी ज़बरदस्ती सब हिन्दू, सिख ईसाई बन के बैठ गए.. पृथ्वी के शुरू होने के समय से एक ही धर्म था और वो था इस्लाम और इसलिए अब ज़ाकिर नायक एंड कंपनी के सिवा सब “भृमित” हैं
इस विचारधारा के साथ उसके समर्थक अब लगभग सबके दुश्मन हो गए और सब उनके दुश्मन..समझिये इसे.. ये आतंकवाद की जननी है.. ये विचारधारा जो आपको कमतर और मुझे पाक, पवित्र और सच्चा बताए वो किस तरह की नफरत मेरे भीतर भरेगी आप नही जानते
इसलिये मुझे नही लगता है कि आतंकवाद की भर्त्सना करने से अब कुछ होने वाला है.. इसीलिए मैंने निंदा टाइप पोस्ट डालनी बंद कर दी.. इस्लामिक आतंकवाद अब उस जगह जा पहुंचा है जहां अब निंदा से कुछ नहीं होने वाला है.. रमज़ान जैसे पवित्र महीने में अभी तक करीब पांच सौ लोग मारे जा चुके हैं विभिन्न धमाकों में.. अभी सिर्फ 8वां रोज़ा हुवा है.. काबुल वालों ने कौन सा इराक़ पर हमला किया था जिसके वजह से वो मारे गए?
मैं क्यों लिखता हूँ ऐसी पोस्ट जो इस्लामिक मान्यताओं को झकझोर देती है? क्यूंकि मैं अब मूल यानि जड़ सुधारने के प्रयास में हूं.. निंदा से कुछ नहीं होना है अब..अब तो हमे नस्लों को बचाना है उस शिक्षा से जो पूरी तरह से दूषित हो चुकी है.. जिसमे बस हम ही सही हैं बाक़ी सारी दुनिया ग़लत.. और ग़लत भी इस हद तक कि उन सबका मारा जाना मुझे प्रसन्न कर दे
अब जो आपसे कहे कि आपके यहाँ एकेश्वरवाद था और आप मूर्ति पूजने लगे तो फ़ौरन उसकी कॉलर पकड़िए और पूछिये कि पूजने लगे तो आपसे क्या? गर्व से पूजिये मूर्ति.. जो आपसे कहे कि ईसा से लेकर मूसा तक सब इस्लाम के मानने वाले थे तो उस से फ़ौरन वाद विवाद कीजिये.. जब ये कहें कि आप शिया हैं और गलत हैं तो इनसे छिपिये मत.. गर्व से बोलिये कि हां हम शिया हैं और हम लोग नहीं बल्कि आप ग़लत हैं और सारी दुनिया आपकी ग़लती और धूर्तता अब देख रही है.. सारी दुनिया मे कोहराम मचा के रखा हुआ है आपने और ऊपर से ये सीनाज़ोरी कि शिया ग़लत हैं, मूर्तिपूजक ग़लत, ये गलत वो ग़लत.. शर्म नहीं आती आपको?
~ताबिशTabish Siddiqui
14 hrs ·
करीब ५०० करोड़ रुपये जाकिर जी ने कमा लिए
अपने पिता जी की मौत पर जाकिर जी नहीं आये
क्योकि खतरा था कही जेल न जाना पड जाये
अब वह मलेशिया के नागरिक बनने जा रहे है !
Mohammad Anas
Yesterday at 04:24 ·
Problems of privileged Muslims: It is a favourite pass-time of liberal Muslims who proudly disown their faith to champion the causes of “reform” within Islam although their own basic understanding of the religion is shallow and childish. It is also a favourite pass-time of liberal Muslims to bash “fundamentalists” who have become “caretakers” of the faith and need to be thrown out. They, however, would not do this work as they come from a privileged background and look down upon their poor cousins with disdain, with whom they would never want to be associated.
Liberals have failed the community as much, if not more, as those clerics who became caretakers to fill the leadership vacuum, since liberal elites were too busy safeguarding their own interests.
Pick any important political turning point in independent India’s history, and you will notice that Muslim elites and so-called political leaders have largely remained mute spectators, exactly the reason why clerics get priority by the poor.
– Mohammad Reyaz
Tabish Siddiqui
8 hrs ·
मुसलमान भाईयों.. क्या आपने ग़ौर किया कि “गऊ हत्या” के मामले में भीड़ का कितना भी साथ देने वाले लोग सामने आ जाएं मगर उनमें से भी बहुत कम लोग ऐसे मिलेंगे जो ये कहते मिलें आपको कि “ये जो मार रहे हैं भीड़ बनकर ये हिन्दू नहीं हैं”.. कितनी तेज़ी से इस समाज ने स्वीकारा है कि ये “उन्ही” के लोग हैं जो “धार्मिक उन्माद और नफरत से ग्रस्त हैं”.. बहुत हैं जो इन्हें बचाने में लगे हैं मगर उसके बावजूद वो ये नहीं कह रहे हैं कि ये “हमारा धर्म मानने वाले लोग नहीं हैं
इन लोगों ने समस्या पहचान ली है फ़ौरन.. भले मोदी जी की कथनी करनी पर लाख सवाल उठाएं हम मगर उन्होंने ये तो स्वीकारा है कि ये लोग “गऊ रक्षक” ही हैं जो हिंसक हो गए हैं.. उन्होंने ये नहीं कहा कि जनाब ये “नेपाल” की चाल है और ये तो हमारे धर्म के लोग ही नहीं हैं
मुसलमान भाईयों.. आपने कभी ग़ौर किया कि आपके आलिमों और उलेमाओं का रटा रटाया जुमला क्या होता है आतंकवादियों के बारे में? वो कहेंगे “ये मुस्लिम हैं ही नहीं”.. वो कहेंगे “ये यहूदी हैं”.. वो कहेंगे “ये अमेरिका की चाल है”.. आपके आलिम और आप कभी ये ना स्वीकारेंगे कि “ये हैं तो मुसलमान ही मगर हां ये हिंसक हो चुके हैं”
समस्या को पहचान लेना समस्या को हल करने के दिशा में पहला और कारगर क़दम होता है.. मुस्लिम समाज समस्या तो जानता है मगर मुँह फेर लेता है..क्या वजह है कि आज तक आतंकवाद ख़त्म न हो सका? यही सबसे बड़ी वजह है.. क्यूंकि जब आप स्वीकारेंगे ही नहीं कि आतंकवादी मुस्लिम हैं तो फिर इसे हल कौन करेगा आख़िर? जब ISIS यहूदी संगठन है फिर तो अब मुसलमानो की कोई ज़िम्मेदारी ही न बनी उस पर.. जब इस तरह मुह फेरा जाएगा तो फिर समस्या की “जड़” कहाँ है उस तक भला कैसे कोई जाएगा?
हिन्दू समाज ने कितनी तेज़ी से इस समस्या को पहचाना है.. कैसे दुत्कार रहे हैं ये लोग अपने ही लोगों को.. आपके समाज से कोई रवीश जैसा इस तरह से अपने ही समाज के ख़िलाफ़ खड़ा हो जाये और कहे कि समस्या “हमारा धार्मिक उन्माद” ही है तो क्या आप उसका साथ देंगे? आप उसे तारिक़ फ़तेह बना देते हैं और उसकी बेटी कितने लोगों के साथ सोती है या तारिक़ फ़तेह दारू पीता है ये कहकर आप उसे दुत्कार देते हैं
ये बात बहुत ज़रूरी था कहना क्यूंकि ये जो लोग आपके साथ हाथों में काली पट्टी बांध कर आये हैं ये आपके धर्म के लोग नहीं हैं.. इनके अपने और इनके समाज के सैकड़ों लोग आपके ही “धार्मिक आतंकवाद” का शिकार हो चुके हैं मगर आपके यहाँ सिर्फ कुछ मासूम मारे गए और ये लोग तुरंत भारी संख्या में आपके साथ खड़े हो गए और आपके विरोध को सफ़ल बनाया.. ये किस तरह की शिक्षा है इनकी जो आपकी शिक्षा से एकदम अलग है.. ये क्या है इनके मूल में जो इंसाफ़ के हक़ में बोलने के अपने समाज और सरकार से टक्कर लेने पर इन्हें मजबूर कर देता है?
ये क्या है इनके भीतर जो “हिन्दू राष्ट्र” का सब्ज़बाग़ दिखाने के बाद भी कोई इन्हें भ्रामित नहीं कर पाता है और ये उनके ख़िलाफ़ खड़े हो जाते हैं जबकि “शरीया” के ख़्वाब देखने वालों के प्रति आप मौन रहते हैं और मूक समर्थन दे देते हैं? क्या है ये.. ये सैकड़ों और लाखों लोग जो न नमाज़ पढ़ें और न रोज़ा रखें उन्हें आपके यहाँ मारे जा रहे मासूमों की फ़िक़्र आपके मदरसों के पांच वक़्त नमाज़ी आलिमों से भी ज़्यादा है?
ये किस तरह की शिक्षा है इनकी.. ये किस सोच के लोग हैं जो समस्या तुरंत पहचान गए और लड़ने को खड़े हो गए.. ये किस तरह के लोग हैं जो बिना “शांति” के धर्म को अपनाए इतनी शांति और इंसाफ की बात करते हैं? ये क्या पढ़ते हैं अपने घरों में जो आप इनके अगल बगल रहने के बावजूद आज तक नहीं पढ़ पाए?
सोचिये थोड़ा इस पर और आपको समझ आये तो मुझे भी समझाइये.. क्यूंकि अब समस्या आपको भी पहचाननी है.. वक़्त आ चुका है
~ताबिश Siddiqui
Abhijeet Singh
11 hrs ·
जब मैं असम में था तब वहां के एक सूदूर गाँव में जाना हुआ. गाँव में अधिसंख्यक आबादी बांग्लादेशी घुसपैठियों की थी. वहां के एक छोटे से मोबाइल रिचार्ज दुकान में रिचार्ज करवाने गया तो देखा कि वहां छः-सात युवा कंप्यूटर पर एक बांग्लादेशी मौलाना की तक़रीर सुन रहे थे. तक़रीर में वो मौलाना जो बोल रहा था उसके बोल कुछ यूं थे,
“दूसरे धर्म का कोई कैसा भी पंडित क्यों न हो हमारे ज़ाकिर नाइक के सामने नहीं टिक सकता. आपलोगों ने कुछ दिन पहले इंडिया से आई एक विडियो देखी होगी जिसमें हिन्दू धर्म के सबसे बड़े विद्वान् श्रीश्री रविशंकर को हमारे ज़ाकिर नाइक ने उठा-उठा के पटका. आप विश्वास नहीं करेंगें, जाकिर सवाल पूछते जा रहे थे और वो रविशंकर आएँ-बाएँ-साएँ बके जा रहा था. यहाँ तक कि ज़ाकिर की तक़रीर खत्म होने के बाद झुण्ड के झुण्ड लोग अल्लाह के दीन में शामिल होने आगे गये. उस दिन फिर से हक़ (इस्लाम) बातिल (हिन्दू धर्म) पर ग़ालिब आया”.
इस विडियो को देखने के बाद उनके चेहरे खिले हुये थे. मैंने उन लड़कों से पूछा, तुमलोग जानते हो ज़ाकिर नाइक कौन है तो उनमें एक भी नहीं था जिसने इंकार में सर हिलाया हो.
ये बात आपको मैं असम के नगांव जिले के एक सूदूर गाँव की बता रहा हूँ तो आप कल्पना कर सकतें हैं कि ज़ाकिर नाइक की पहुँच कहाँ तक है.
हमारे धर्म के एक NGO चलाने वाले मॉडर्न बाबा को गुजरात दंगों के दौरान सेकुलर सर्वधर्म सम्भावी कीड़े ने काटा, बड़ी तकलीफ हुई कि इस मुल्क के अमन में ये साम्प्रदायिकता का जहर कैसे घुल सकता है और मुल्क के सेकुलर ताने-बाने को बचाने की कोशिश करते हुये उसने हिन्दू-मुस्लिम एकता को बल देने के लिये एक किताब लिखने का इरादा बाँधा. कहने की जरूरत नहीं है कि जिस इन्सान ने न तो हिन्दू धर्म को पढ़ा हो और न इस्लाम को उसकी जहालत से निकली किताब कैसी रही होगी. कुछ पीं० एनo ओक की किताब से चुराया और कुछ गूगल से उठाया और लिख डाली किताब फिर खुद को अमन का राजकुमार होने का भ्रम पालने लगा और इसी भ्रम में एक दिन उसने “इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन” को आमन्त्रण दिया कि क्यों न मैं और आपके मुखिया ज़ाकिर नाइक एक बड़ी भीड़ को संबोधित करें और हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रयासों को गति दें.
कहने की जरूरत नहीं है कि इस मूढ़ मति के छल्ले को ये पता नहीं था कि ये जिसको आमन्त्रण देने जा रहा है वो इसकी तरह न तो ज़ाहिल है और न ही महामूर्ख. “इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन” ने देखा कि जब जाहिल बकरा खुद ही हलाल होने आ रहा है तो क्यों न उसकी बोटियाँ, चर्बी और हड्डी बांटने का पूरा इंतजाम किया जाये. इसलिये उन्होंनें फ़ौरन सारे इंतज़ामात किये और इस मूढ़मति को आमंत्रित किया.
21 जून, 2006 को हमारे लिये कलंक दिवस के रूप में चिन्हित किया जाना चाहिये क्योंकि उस दिन बंगलौर के एक मंच पर जाकिर और ये मूढ़मति बैठे. डिबेट का विषय था “Concept of GOD in Islam and Hinduism”. ज़ाकिर नाइक ने अपने स्वभाव के अनुसार वेदों, गीता, पुराणों और उपनिषदों से सन्दर्भों की झड़ी लगा दी. कहा कि अंतिम अवतार जिसे आप कल्कि मानते हो वो हमारे नबी के रूप में हो चुके हैं और इसका वर्णन आपकी किताबों में भी है. इसके लिये भी ज़ाकिर ने हमारी ही किताबों से दलीलों का अंबार लगा दिया. अब सामने बैठी पचास हज़ार की भीड़ और टीवी पर लाइव देख रहे करोड़ों लोग सांस थामे इस इंतज़ार में थे कि ज़ाकिर के इन दावों पर ये क्या जबाब देतें हैं. ये उठे, अपना पल्लू संभाला और मंच पर जाकर कहने लगे, “मुझे ताअज्जुब है कि इनके पास इतना इल्म कैसे है और इनकी मेमोरी इतनी जबर्दस्त कैसे है”.
इस मूढमति के छल्ले से ज़ाकिर के किसी भी सवाल का जबाब देते नहीं बना. न ही ये कुरान से एक आयत भी बोल सका और खींसे निपोरते हुये कबीर के प्रेम वाले दोहे पढ़ने लगा.
ज़ाकिर इतने पर भी कहाँ पसीजने वाला था, उसके बाद उसने इसकी लिखी उस कूड़ा किताब का पोस्टमार्टम शुरू कर दिया जिसमें इसकी मूर्खता और कमअक्ली के तमाम सबूत थे. ज़ाकिर ने इसके किताब की एक-एक पेज खोली और इसे नंगा कर दिया. जब इसकी बारी आई तो इसने फिर दांत निकालते हुये कहा, “दिस बुक वाज रिटेन इन हरी” यानि इसे मैंने जल्दबाजी में लिखा था इसलिये इसमें गलतियाँ हैं पर जाकिर नाइक को समझना होगा कि मेरी मंशा पवित्र थी और मैं इस किताब के जरिये से हिन्दू और मुसलमानों को एक साथ लाना चाहता था.
इसे बोलने के लिये पचास मिनट का समय दिया गया था और ये बमुश्किल 35 मिनट ही बोल पाया. जब कार्यक्रम खत्म हुआ तो वहाँ एक अजीब शोर बरपा था. इस मूढमति ने सनातन को शर्मसार कर दिया था और वहां ज़ाकिर के लोग विजय का जश्न मना रहे थे.
IRF ने उस कार्यक्रम की संभवतः लाखों सीडियाँ बनवाई, उस विडियो को youtube से लेकर सारे इन्टरनेट पर फैला दिया और दुनिया उस मजमे में हिंदुत्व की पराजय का दृश्य देखती रही. जाकिर ने न जाने किस-किस तरीके से इस विजय को कैश किया और मतान्तरण की फसल काटी. दावतियों को नया हौसला मिला कि अब सब कुछ संभव है.
आप कहते रहिये कि हमारे वो गुरूजी हिन्दूधर्म के प्रतिनिधि नहीं है तो वो ऐसे हैं वैसे हैं पर ज़ाकिर और IRF उसे हिंदुत्व पर इस्लाम के विजय रूप में ही चिन्हित करती है. दुनिया के लाखों हिन्दू जिनमें आपकी तरह कूटनीति समझने और समझाने लायक बुद्धि नहीं है (आपके अनुसार) वो अपने धर्म पर शर्मिंदा होतें हैं उस विडियो को देखकर और उधर असम के सूदूर गाँव तक में बैठे उन लड़कों को ज़ाकिर ये हौसला देता है कि तुम बौद्धिक युद्ध में भी इनसे कम हो क्या? देखो, कैसे हमारे नाइक ने हिन्दू धर्म के सबसे बड़े पंडित को सारी दुनिया के सामने नंगा कर दिया.
अब कोई मुझे ये समझाए कि :-
१. आपको न तो अपने धर्म का इल्म है और न ही उनके तो आप किस हैसियत से इन विषयों पर डिबेट करने जातें हैं?
२. आप अपने NGO के प्रतिनिधि बनकर कुछ भी करते रहें कोई हर्ज़ नहीं पर हिन्दू धर्म का प्रतिनिधि आप किस हैसियत से बन जातें हैं?
३. सेकुलर कीड़ा एकतरफ़ा आपको ही क्यों काटता है?
४. आपकी समझदानी भेड़ और भेड़िये में फ़र्क क्यों नहीं कर पाती?
और अंतिम सवाल केवल उस मूढमति के छल्ले “डबल श्री” से है कि एक बार नंगा होकर मन नहीं भरा जो बार-बार अपनी नथ उतराई करने आगे आ जाते हो? अब क्या हमारे दिन इतने खराब आ गयें हैं कि नाक कटवाने वाले को हम अपने नाक और अस्मिता की लड़ाई सौंप दे?
दलाली बंद करो, अपने साबुन-सर्फ़, मूंग दाल, ब्रश-पेस्ट बेचो वरना नंगा करना अकेले ज़ाकिर को ही थोड़े आता है…
Shambhunath Shukla
18 November at 07:28 ·
कम्युनलिज्म फैलाने के लिए अकेले ज़िम्मेदार कट्टर हिंदू ही नहीं है कथित उदारवादी हिंदू और भारत का मुस्लिम समाज भी कम नहीं है। अब देश में जो मुसलमान तोमर, चौहान, राठौड़, पँवार या गौड़, त्यागी, भट्ट, पंडित जैसे कुलनाम लगाते हैं वे भी यह बताते हैं कि हम मुसलमानों ने हिंदुस्तान आकर यहाँ पर रह रहे हिंदुओं को रहना सिखाया, उनको खाना-पीना सिखाया। इस देश को आलू, टमाटर, आम, केला, चीकू, गेहूँ, दालें, चावल की सौग़ात दी। हिंदुओं को जलेबी, समोसा, बर्फ़ी, गुलाबजामुन, रसगुल्ला बनाने की विधि बताई। मुग़लई, चिकनई बनाना सिखाया। उनका दावा है कि हम मुसलमान न आते तो यह देश ज़ाहिल ही रहता। अब जब कुलबोरनी ही कुलवधू को नैतिकता के उपदेश देगी तो क्या होगा! यह तो वही हुआ कि जहाज़ को डूबता देख समुद्र में छलाँग लगा देने वाले चूहे आज देशप्रेम का पाठ पढ़ाने लगे। अगर मुहम्मद गजनवी, मुहम्मद गोरी से लेकर अलाउद्दीन ख़िलजी और औरंगज़ेब तक हिंदुओं के हित और उनका विस्तार चाहते रहे तो क्या मथुरा के मंदिर हिंदू शासकों ने तोड़े? आख़िर क्यों हिंदुओं के अंदर मुसलमानों के प्रति एक संदेह है? क्यों मुस्लिम मोहल्लों में औसत हिंदू जाने से डरता है? ज़ाहिर है हिंदुओं पर असहनीय अत्याचार हुए होंगे वह कटुता अभी शेष है। इसीलिए आज मोदी राज में हिंदुओं को लगता है उनका त्राता आ गया। और यही कारण है कि आज रोज़मर्रा की समस्याएँ अहम नहीं रह गई हैं अहम है तो बस हिंदू स्वाभिमान।
आज पद्मावत पर इतना विवाद चल रहा है। रानी पद्मिनी से लेकर दीपिका पादुकोण को ऊँट-पटाँग बोला जा रहा है। दोनों स्त्रियों की छीछालेदर हो रही है। हो सकता है रानी पद्मिनी एक कवि की कल्पना भर ही हों किंतु ख़िलजी का चित्तौड़ पर हमला, राजा की पराजय और वहाँ की स्त्रियों का जौहर तो सच्चाई है। आज इस विवाद में एक तरफ़ तो मध्यकाल में जौहर करने वाली क्षत्राणी है तो दूसरी ओर राजपूत पुरुषों की आक्रमकता का जवाब अपने जौहर से देती ब्राह्मणी दीपिका पादुकोण है। तीसरी तरफ़ मुसलमान समाज है जो बस एक ही रट लगाए है कि अलाउद्दीन ख़िलजी तो बड़ा ही न्यायप्रिय और महान शासक था। अगर वह इतना ही महान था तो चित्तौड़ पर हमला क्यों किया? क्यों रण में राजा और उनके सेनानियों के मारे जाने पर उनकी पत्नियों और बेटियों-बहनों ने आग में कूदकर जान दी? क्यों हिंदू राजा मुस्लिम शासकों से बचते रहे बस एक जयपुर घराने को छोड़कर। क्यों शिवाजी आजीवन औरंगज़ेब जैसे कथित न्यायप्रिय और प्रतापी शासक और उसके उत्तराधिकारियों से लड़ते रहे। ज़ाहिर है इतिहास में कहीं झोल है। यह वक़्त फ़ालतू में चिढ़ाने का नहीं बल्कि इतिहास के पुनर्लेखन का भी है। ऐसा इतिहास जिसमें एक समाज को तुच्छ, हीन, कायर व असभ्य न बताया जाए जैसा कि मध्यकालीन इतिहासकारों ने हिंदू शासकों के प्रति किया है।Shambhunath Shukla ————————————————————–
Varshaख़िलजी की जीत को हार मे बदल दिया उन औरतों ने ,ख़िलजी ने ये जंग कयू लड़ी थी ?
पदमावती के शरीर को पाने के लिए, उसने वो शरीर ही नष्ट कर दिया इससे बेहतर शिकस्त कया दे सकती थी उस ज़माने की औरत एक बलात्कारी शासक को ,
एक औरत के दिल और दिमाग़ की हालत कोई मर्द कैसे समझ सकता है
जबकि वो औरत जानती हो कि उसके शरीर की वजह से कितने लोगो की जान गई ,कितने लोग कष्ट मे है,कितनी औरतों के सुहाग उजड़ गए , कितने बच्चे अनाथ हो गए ,कितने बूढ़ों के जीवन के सहारे बलिदान हो गए ,
सिर्फ़ और सिर्फ़ उसके शरीर की खुबसूरती की वजह से ,
वो जब भी ख़ुद को देखती होगी आइने मे तो कया सोचती होगी,चारों तरफ़ से घूरती हुई आँखों के सवाल उसे हर क्षण चुभते होगे ,हर नज़र कहती होगी इसके कारण …,
ये जवाब था ख़िलजी को पदमावती का, तमाचा था एक व्हशी जानवर के मुँह पर । Varsha
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Varsha – सिकंदर हयात • 2 days ago
खुदा के वास्ते बस किजीए सिकंदर हयात जी ?
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zakir hussain Varsha • 8 hours ago
मैं राजस्थान मे पला बढ़ा हूँ. पद्मावती एक काल्पनिक किरदार भी हो तो उसके प्रति मेरे मन मे एक आदर है. इतिहास के जितने भी वर्ज़न है, उनमे या तो पद्मिनी एक कल्पना मानी गई है या खिलजी की हवस से अपने आप को बचाने के लिए जौहर करने वाली स्वाभिमानी.
जाहिर सी बात है, संजय लीला भंसाली इतिहास, पद्मावती के इस जौहर वाले स्वाभिमान को ही भव्य तरीके से पर्दे पर उतारने वाले हैं. और वो कोई डाकुमेंट्री नही बना रहे हैं, तो काल्पनिक बाते भी पद्मावती या पद्मिनी के किरदार के महिमा मॅंडन के लिए ही फिल्म मे डालेंगे. ये सब बाते बिना फिल्म देखे भी कॉमन सेंस से समझी जा सकती है.
लेकिन अब इस महामूर्ख करनी सेना और उसके समर्थको को देखो. किसी ने कह दिया कि इसमे खिलजी और पद्मावती के प्रेम को दर्शाया गया है तो अपने गिरवी दिमाग़ को घर पर रख कर प्रदर्शन करने चल दिए. मारपीट करने लग गये.
वो कहानी है ना कि किसी ने कहा कि कौव्वा कान काट कर चल दिया तो लोग कौव्वे के पीछे दौड़ पड़े.
Zaigham Murtaza
21 December at 00:44 ·
मुसलमान किसे हीरो मानते हैं? …………………………..आज किसी भी आम मुसलमान से पूछिए आपका हीरो कौन? अगर माॅडर्न सा है तो झट से किसी फिल्म स्टार या किसी खिलाड़ी का नाम बताएगा। ज़रा जज़बाती सा है तो किसी सियासतदां या अपने फिरक़े से मुताल्लिक़ किसी मुल्क के सुलतान या सदर का नाम बताएगा। मज़हबी है तो उसके बताए नाम में बादशाह, सुलतान या ख़लीफा होंगे। इन सबमें से नब्बे फीसद की पसंद में एक बात ज़रूर कामन होगी। उनका हीरो फातेहीन, तलवारबाज़, साम्राज्यवादी या वो होगा जिसने मज़हब के नाम पर बड़ी हुकूमतें खड़ी कीं। अपनी ज़िदगी में मैं किसी ऐसे आदमी का नाम सुनने को तरस गया जो साइंस, इल्म या इंसानियत के लिए बड़ा काम करके गया और मुसलमान उसे अपना हीरो मानें। सोशल वर्क या ग़रीबपरवरी तो इनकी हीरोइज़्म के आसपास ख़ैर आती ही नहीं। आज के मुसलमानो मे शायद ही कोई बता पाए केमिस्ट्री या अलजिब्रा से मुसलमानों का क्या रिश्ता है। कोई नहीं जानता हाउस ऑफ विज़डम जैसी कोई जगह उनके दरमियान थी। इसे भी जाने दीजिए, कितने मुसलमान जानते हैं कि उनके रसूल (सअ) सादिक़, अमीन या ग़रीबों के हिमायती भी थे। अपने ख़लीफाओं की दौलत, फतह और हुकूमत के तमाम क़िस्से ऐसे बयान करेंगे मानो यही उन सबके रावी हैं मगर किरदार, इंसानियत और इल्म की बातें करते शर्म आती है। तमाम बादशाहों के हक़, नाहक़ अमल की ऐसे दिफाह करेंगे मानो बस उनकी ही औलाद हैं और चुप रह गए तो शजरे पर सवाल उठ जाएगा। फिर कहते हैं इस्लाम अमन, इंसानियत, इल्म और किरदार का पैरोकार है। एक तो जैसे हीरो वैसे ही अमल। दूसरे आपके अमल इस्लाम की आपकी बताई डेफिनेशन से मेल नहीं खाते। ये आपकी ग़ुरबत, कमइल्मी और आज के दौर का पिछड़ापन है जो आपको माज़ी की तरफ मुतास्सिर करते हैं। बेहतर है जो गुज़र गया उस पर ख़ाक डालो और माज़ी से बाहर निकलो। मुस्तक़बिल सुधारना है तो अपनी सोच में सुधार करो। मज़हब को छोड़ना अगर बुरा है तो इसे अफीम की तरह चाटना उस से भी बुरा है। हर अच्छे बुरे की पैरोकारी सिर्फ फिर्क़े और मज़हब की बिना पर करोगे तो बेवजह उन ग़लतियों के लिए कुटते रहोगे जो आपने की ही नहीं। जिसने अच्छा किया अल्लाह उसे उसकी जज़ा देगा। जिसने बुरा किया उसे सज़ा मिल जाएगी। आपकी गवाही या पैरवी से न गुनाह सवाब बनेंगे न सवाब गुनाह बन जाएंगे। बेहतर है अपने आमाल सुधारो और दूसरों के गुनाहों का टोकरा अपने सिर पर उठाना बंद करो।———–Zaigham Murtaza
20 December at 13:21 ·
पढ़े लिखे मनमोहनसिंह की दो बड़ी दिक़्क़त हैं। एक तो वो शरीफ हैं दूसरे सरदार। बहुसंख्यक वर्ग के एक बड़े समूह के लिए अल्पसंख्यक सिर्फ घृणा और चुटकुलों का मौज़ू हैं चाहे वो मुसलमान हों, चाहे दलित बौद्ध या फिर सिख। सिखों का जो थोड़ा बहुत योगदान माना जाता है वो भी गुरू गोविंद सिंह जी की मुहब्बत मे नहीं औरंगज़ेब की नफरत में है। ये तो बताया जाता है कि ये हमारी रक्षा के लिए जन्मे मगर ये कोई नहीं बताता कि जब इनपर समय पड़ता है तो इनकी रक्षा की ज़िम्मेदारी किसकी है? भैय्या बहुसंख्यकवाद से बाहर निकलिए और बराबरी दीजिए। सत्ता के लिए आप भी वही कर रहे हैं जो औरंगज़ेब ने किया। चुटकुले बनाना बंद कीजिए। किसी को रूखी सूखी सहानुभूति नहीं चाहिए। कोई आपसे भीख नहीं मांग रहा। बराबरी और सम्मान हम सबका हक़ है।Zaigham Murtaza
20 December at 10:54 ·
‘कांग्रेस जीती तो अहमद पटेल सीएम बनेगा’। ये संदेश जब देश का पीएम दे तो गर्व से सीना फूल जाता है। प्रधानमंत्री नीच क़तई नहीं है और न वो साम्प्रदायिक है। वो तो संविधान की रक्षा के वचन से बंधा है। संविधान कहता है कि ये मज़हबी राष्ट्र है जहां ग़ैर मज़हबी लोगों का सीएम बनना दूर ज़िंदा रहना भी दूसरे के रहमो करम पे है। प्रधानमंत्री का धर्म है कि वो अपने धर्म की रक्षा करे और दूसरे धर्म के लोगों को कुछ बनने न दे। उसको ये ज्ञान घुट्टी में पिलाया गया है। वो आदर्श पुरुष है जिसने मां कहने से पहले कहा होगा मैं हिंदू हूं। बाबा, पापा या पिताजी से पहले उसकी ज़बान पर पटेल देशद्रोही है आया होगा। बहरहाल अहमद पटेल नाम ही अजीब सा है। अहमद भी पटेल भी। इसमें दो धर्मों की सी आवाज़ आती है। कुछ कुछ सेक्युलर जैसी बदबू। सेक्युलर कॉकरोचों को सार्वजनिक जीवन से हटाने का प्रण लेकर तो प्रधान सेवक बने हैं। जो वचन न निभाए वो 56 इंच कैसा? बहरहाल ये मज़ेदार बातें नई नहीं हैं। बहुसंख्यक इसकी ख़ुराक फांकते रहे हैं। इसमें बुराई नहीं है। बुराई तब पैदा होती है जब अहमद पटेल तादाद में बढ़ जाते हैं। इनके वैचारिक समूह को याक़ूब और दाऊद चाहिएं जिनके बहाने देश के दूसरे सबसे बड़े बहुसंख्यक समूह को कूट सकें, गलिया सकें और अपनी हीन ग्रंथि को शांत कर सकें। प्रोग्रेसिव, पढ़ा लिखा, मज़बूत और जागरुक मुसलमान धर्महित में नहीं है। उसे देखकर हीन भावना पैदा होती है। हीन भावना से ही तो धर्म ख़तरे में आता है। सो कोई अहमद पटेल इस देश में कुछ बनने की न सोचे। बनने के लिए दुनिया पड़ी है। बनना ही है तो नजीब, पहलू, अफज़रुल, अख़लाक़ जैसा कुछ बने ताकि जान से भी जाए और रो भी न पाए। चलिए काम पे जाना है। बाक़ी फिर कभी। भारत माता की जय… धर्म की विजयZaigham Murtaza
19 December at 03:06 ·
मणिशंकर अय्यर, अरुण नेहरू, सुब्रमण्यम स्वामी, अमिताभ बच्चन, अजीत जोगी में क्या काॅमन है? ये सब राजीव गांधी के बेहद क़रीबी दोस्त हैं। राजीव की वजह से इनकी औक़ात में कई सौ गुना इज़ाफा हुआ। अपने दम पर ये गधों की मंडली के मुखिया न चुने जाते मगर राजनीति में राजीव की बदौलत बड़े मक़ाम तक गए। राजीव राज में जमकर मलाई खाई और ये सब राजीव के मरते ही नमक हरामी की जीती जागती मिसाल बन गए। वैसे मौला अली कह गए हैं ‘किसी पर अहसान कीजिए और फिर उसके शर से डरिए’। मौलाना निकोलो मेक्यावेली ने कहा है कि ‘आदमी को औक़ात से ज़्यादा उपकृत करने से उसकी महत्वाकांक्षाओं में इज़ाफा होता है’। मामा अरस्तू कह गए हैं कि ‘मित्र और चरित्र की पहचान कठिन समय में होती है’। हमारे पिताजी कहते थे कि ‘मित्र बनाने से पहले आदमी का चरित्र ज़रूर समझना चाहिए’। मां बताती हैं कि हमारे दादाजी हर ऐरे ग़ैरे को मुंह लगाने के एकदम ख़िलाफ थे। बाकी एक चच्चा ने एक मज़ेदार सा शेर भी कहा है…
‘किसी के ज़र्फ से बढ़कर करो न मेहर ओ वफा हरगिज़
के इस बेजा शराफत का बड़ा नुक़सान होता है’। ?
See Translation
पुरे उपमहाद्वीप में ऐसा अदभुत नज़ारा हे की इसके किसी भी कोने में जाओ कही ही कभी कोई भी किसी भी वजह से अगर अगर जनहित और इन्साफ की जगह हिन्दू हित या मुस्लिम हित और मांगो की बात अगर कर रहा हे तो समझ जाओ की वहा कोई न कोई परदे के आगे या बहुत डीप में कोई ना कोई हे जो इन बातो की आड़ में अपने हित साध रहा हे इसी का मन्जर आजकल देखने को मिल रहा हे किसी ने कहा था की उस कौम का कुछ नहीं हो सकता हे जो चुनाव में अपने लिए कब्रिस्तान की मांग करती हे तो खेर आजकल कुछ लोग कब्रिस्तान को मुद्दा बना कर आप और केजरीवाल को कोस रहे हे लगभग ”खुनी मातम ” की मुद्रा में हे तो खेर मेने गौर किया वैसे तो मुसलमानो पर जुल्म से जुड़े मुद्दों को फ़ौरन ”कैश ” करवाने वाले छोटे इकबाल और उनके सोशल इलाहबादी सिपहसालार ने इस मुद्दे पर बिलकुल ही चुप्पी साध राखी हे जबकि ओवेसी और दूसरे मज़हबी तुर्रेमखानो के साथ सेल्फी वाले खुनी मातम कर रहे हे और केजरीवाल और आप को ” वही ” बता रहे हे यहाँ तक की भाजपा को लाने की धमकी दे रहे हे तो एकतरफ तो ये हाल हे दूसरी तरफ लम्बी खामोशी फिर आज पता चला की छोटे इकबाल का नाम भी आप की राजयसभा की लिस्ट में हे अफवाह
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पाठको पुराने क्लिक डिलीट हो गये हे ये लेख 13 हज़ार के करीब क्लिक था——————————————————————————————————– अब्बास की बाते जायज़ हे मगर में पूरी ही तरह से सहमत भी नहीं हु क्योकि गहन अध्यन से में जान गया हु की भारत में मुसलमानो से जुडी समस्याएं बातो बहसों तानो तिश्नो शिकायतो को केवल ”अल्पसंख्यक ” के बिंदु के ही चश्मे से ही नहीं देखि जा सकती हे में इसे उपमहाद्वीप में पूर्ण जीत की आस वाले हिन्दू मुस्लिम टकराव से जोड़कर देखता हु बाकी खान सितारे और उनकी अध्भुत कामयाबी उपमहाद्वीप हिन्दू मुस्लिम दोनों कटटरपन्तियो के सीने पर सांप लौटाती रहती हे पिछले दिनों दंगल और टाइगर की कामयाबी हिन्दू कठमुल्लाओ के मुँह पर जोरदार तमाचा थी ही बेचारे ट्युबलाइट की नाकामी का जश्न मन ही रहे थे की जोरदार चांटा पड़ा हालांकि ट्युबलाइट भी मरा हुआ सवा लाख का हाथी था —————————————————————————————————————————— ” -Abbas Pathan9 hrs · कल्पना करो …कांग्रेस की सरकार होती और माल्या, मोदी, पूरी, अय्यर, चौकसी, कुमार, कोठारी, की जगह की अगर शाहरुख खान होते??? सोचिये यदि कोई “खान, अहमद, अंसारी” सरनेम तकरीबन 25000 करोड़ का चुना लगाकर विदेश भागे होते तो भक्तो का मामले के प्रति क्या नजरिया होता???
भक्तो ने अबतक शेषनाग को साइड करके धरती खुद के सर पे उठा ली होती… हाहाकार मच गया होता। देशद्रोही मुल्ला गद्दार जैसी बेशुमार गालिया फिज़ाओ में आंधियों की तरह तैर रही होती और उन गालीयुक्त गर्म हवाओ के थपेड़े देश के प्रत्येक अल्पसंख्यक मुसलमान के गाल पे पड़ रहे होते। उधर सोशल मिडीया पे ज्ञान अर्जित करके खुद को नास्तिक घोषित कर चूकी प्रजाति भी देशभक्ति के मोड पे आ गई होती। अनुपम खेर अपनी बेहतरीन अदाकारी के साथ कही देशभक्ति की पुंगी बजा रहे होते… उधर गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी गला फाड़ फाड़ कर भक्तो से हूटिंग करवा रहे होते… शाहरुख़ इतने डर गये होते की उन्हें सोचना पड़ता की वापस मुल्क जाऊ या नही, जैसा जाकिर नाइक के साथ हुआ, उनका कोई गुनाह नही था लेकिन फिर भी उन्हें कुतर्क युक्त आरोप के चलते देश से बाहर जीवन यापन करना पड़ रहा है।
खैर दोगली देशभक्ति इन्सान को उसके सरनेम के आधार पे उपाधि देती है। यदि बेंक कर्ज़ लेकर विदेश जाने वाला “खान” है तो वो मुल्ला गद्दार देशद्रोही हुआ और वो यदि चौकसी मोदी कोठारी माल्या है तो दोगली देशभक्ति इतना कहकर पल्ला झाड़ लेगी की “”वो अय्याश है, चोर है, इसके खिलाफ सख्त कार्यवाही होनी चाहिए, वगेरह वगेरह वगेरह””
अगर कोई “वेमुला कन्हेया उमर” बगावत पे उतर जाए तो देशभक्ति के अंगारे इस कद्र फूटेंगे की कोई मृतक को देशद्रोही का सर्टिफिकेट दे रहा होगा तो कोई जुबान और गर्दन काटने के एवज में लाखो का इनाम घोषित कर रहा होगा। इन छात्रो को ये ताने के साथ याद दिलाया जाएगा की तुम भारत सरकार को टैक्स देने वाले लोगो की कमाई पे पढ़ रहे हो अपनी औकात में रहो। वही दूसरी तरफ केवल 44 कम्पनिया देश का 4.87 लाख करोड़ दबा कर बेठी हे उस विषय में कोई आवाज़ उठती नजर नही आएगी। आवाज छोड़िये चर्चा का चूँ तक नही निकलता। सरकारे घिरती है तो औरतो के बुर्खे में जाकर छुप जाती है।
वहीं कोई “गुज्जर जाट और पटेल” सरनेम वाले आंदोलन के नाम पे हजारो करोड़ का नुकसान कर दे चाहे औरतो को लूट फाड़ कर खेतो में भगा दे तो देशभक्ति को सांप सूंघ जाता है। कोई भी इन सरफिरो को गद्दार देशद्रोही की उपाधि नही देगा। ये उपाधि केवल एक समुदाय के लिए आरक्षित हे।
बहरहाल शाहरुख़ खान की किस्मत अच्छी है की विजय माल्या वाली परिस्थति उनके साथ नही गुजरी…
शाहरुख़ 2014 में विश्वस्तर पे 33 नम्बर के दान दाता रहे है।उन्होंने कश्मीरी पंडितो की भी सहायता की है। भारत के टॉप 5 कर दाताओ में उनका नाम है। फिर भी सरनेम के आधार पे देशद्रोही घोषित हुए पड़े है। उनकी फिल्म यूनिट पे पथराव किया जाता है। कोई भी विजय माल्या के किंगफिशर बियर बार पे हमला नही करेगा। मामला वतन का हे ही नही। मामला तो सरनेम का है।
सारा सियापा “सरनेम” का है तभी तो अमर जवान ज्योति तोड़ने पे 50 लाख का जुर्माना रज़ा अकेडमी पे लगाया गया और अम्बेडकर की मूर्तियां तोड़ने पे मामूली धाराए लगाई गयी अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ। अखबार भी सरनेम देखकर ख़बर को कॉलम देता है, आप कभी ध्यान दीजिएगा। ताजा मामला आज का ही है, एक महिला को जिंदा जला दिया गया कहीं कोई खबर नही है क्योंकि सरनेम उसका वैसा उत्तम गुणवत्ता वाला नही था। ”
मदरसों को बंद करने की बात करने वाले —————— रिज़वी जैसे दलालो की जितनी निंदा की जाए कम हे ऐसे ऐसे डरपोक कायर लोग बहुत भरे हुए हे और भी बहुत देखे मेने जो आजकल इस्लामिक कटरपंथ की निंदा करते हे उदारता की प्यारी प्यारी बाते करने लगे हे लेकिन आज , आज आज ही क्यों ——— ? पहले क्यों नहीं करते थे क्योकि इस्लामिक कटटरपंथ की निंदा आज अब एक कम्फर्ट ज़ोन हे आसान काम हे थू हे इन हिज़डो पर ( हिज़ड़े भाइयो से माफ़ी वो तो इनसे बहुत वीर होंगे ) हमने पंद्रह बिस साल पहले ही मुस्लिम कटटरपंथ की कड़ी आलोचना और उसके दुष्प्रभाव बताने शरू कर दिए थे तब मुस्लिम भारतीय चुनावी राजनीति की नाक के बाल थे हम तब बोले और निन्दित हुए गद्दार कहलाये पागल गधे मुर्ख मुर्तद कहलाये तब मुस्लिम कटटरपंथ से भिड़ना मुश्किल काम था हमने किया आज मुश्किल काम हे हिन्दू कठमुल्वाद हिन्दू कम्युनलिज़्म हिन्दू संकीर्णता हिन्दू आतंकवाद से टक्कर लेना हे वो भी कर रहे हे दूसरी तरफ ये छक्के आज हिन्दू कटटरपंथ के तलवे चाट रहे हे और मुस्लिम कटटरपंथ की निंदा कर रहे हे लानत हे
Chandra Bhushan
25 April at 20:41 ·
आसाराम जैसे पंथियों से लोग जुड़ते ही क्यों हैं
कोई परिवार किसी बाबा की शरण में क्यों जाता है, यह लंबे समय से मेरे लिए उत्सुकता का विषय बना हुआ है। मेरे परिचय के दायरे में इस तरह के व्यक्ति हैं, पूरे के पूरे परिवार नहीं। लेकिन कम से कम इस मामले में मैं अपने दायरे को प्रामाणिक नहीं मानता। देश भर में कल्ट जैसी फॉलोइंग वाले बाबाओं और साध्वियों की संख्या लाखों में न सही पर दसियों हजार में है। औसतन एक हजार परिवार भी एक कल्ट से जुड़ा हो तो भारत के करोड़ों परिवार पारंपरिक देवी-देवताओं या अन्य संगठित धर्मों के समानांतर या उनके साथ-साथ किसी न किसी व्यक्ति आधारित पंथ को मानते हैं। इसलिए ऐसा कोई परिवार मेरे संपर्क में है या नहीं, इससे क्या फर्क पड़ता है?
जरूरत इन पंथों के कामकाज और इनसे लोगों के जुड़ाव की बुनियाद समझने की है। यह जानने की कोशिश भी की जानी चाहिए कि जिस वजह से ये लोग किसी पंथ से जुड़ते हैं, उसका कोई निदान क्या हमारी सामाजिक, धार्मिक व्यवस्था में संभव है। अभी बलात्कार के आरोप में आजीवन कारावास की सजा पाने के बाद आसाराम बापू चर्चा में हैं तो कुछ बात उनसे जुड़े अपने एक परिचित की करता हूं, जो बड़े तार्किक, दुनियादार, समझदार और मददगार किस्म के इंसान हैं। इस सारे हंगामे के बावजूद अपने गुरु के प्रति उनकी श्रद्धा हाल-हाल तक अक्षुण्ण थी। सजा मिल जाने के बाद इसमें कोई फर्क आया है या नहीं, यह अगली बातचीत के बाद ही जान सकूंगा।
वे पर्सनल फाइनेंस के जानकार हैं और अभी अत्यंत सफलतापूर्वक एक निजी कंपनी बनाकर इसी काम में जुटे हुए हैं। लेकिन नब्बे के दशक तक वे एक बैंक में नौकरी करते थे और वहां शेयर कारोबार के सम्मोहन में फंसकर बर्बादी के कगार पर पहुंच गए थे। उनका कहना है कि उसी दौर में उनका संपर्क बापूजी से हुआ, जिन्होंने उनको अपनी सारी चिंताएं प्रभु को अर्पित करके वर्तमान में जीने की सीख दी। इसका लाभ यह हुआ कि अपनी सारी संपदा लुटाकर बेरोजगारी की स्थिति में पहुंचे मेरे परिचित ने निर्विकार भाव से एलआईसी एजेंट और बैंकों से हाउसिंग लोन कराने का काम पकड़ा। शेयर वे कई साल तक सिर्फ दीवाली को बापूजी के नाम पर खरीदते रहे- इस संकल्प के साथ कि नुकसान होगा तो अपना, फायदा होगा तो बापूजी का और अपना आधा-आधा।
उनसे बातचीत के क्रम में पता चला कि आसाराम बापू के लाखों अनुयायियों में एक किस्म का कम्यूनिटी सेंस है। आपसी भरोसे को आधार बनाकर वे शादी से लेकर कारोबार तक तमाम मामलों में एक-दूसरे की मदद करते हैं। यह समुदाय-बोध, यह भरोसा हर इलाके में समय-समय पर होने वाले आयोजनों के जरिये बनता है, जिनमें समुदाय प्रमुख के वीडियो चलते हैं, संगीत बजता है और पूरे परिवार की एक आत्मीय आउटिंग जैसी हो जाती है। ईसाइयत में यह काम काफी हद तक चर्च में होने वाले संडे-मास के रूप में होता है। इस्लाम में जुमे के दिन बड़े पैमाने की नमाज में पूरा परिवार न सही, कम से कम पुरुष एक-दूसरे से मिल लेते हैं। हिंदू धर्म में उत्तर भारत में मंगल और शनिवार की शामों में हनुमान मंदिर जाना इसके करीब की चीज मानी जा सकती है, लेकिन यह अब प्रसाद चढ़ाने-खाने तक ही सिमट गया है, पारिवारिक मेल-मिलाप की गुंजाइश बहुत कम है।
पंथों से जुड़ाव का एक छोर मेरी एक अत्यंत निकटवर्ती बुजुर्ग रिश्तेदार से भी जुड़ा है, लेकिन उसका स्वरूप तुलनात्मक रूप से ज्यादा आध्यात्मिक है। बाल योगेश्वर के पंथ के साथ उनके पतिदेव का जुड़ाव अस्सी के दशक के अंत में बना। फिर दसेक साल बाद पति की और बीसेक साल बाद अकेले बेटे की अकाल मृत्यु हुई। इन भयानक आघातों के बीच उन्हें स्थितिप्रज्ञ देखकर मैं आज भी चकित रहता हूं। अपने टूटते-बिखरते परिवार को उन्होंने न केवल अपने दम पर संभाल लिया बल्कि औरों के लिए भी प्रेरणास्रोत की भूमिका निभाई। कह नहीं सकता कि इसमें अपने पंथ से जुड़ाव ने उन्हें कितनी मदद पहुंचाई और किस हद तक उनकी अपनी मनोवैज्ञानिक बनावट उनके काम आई। लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि वे अपने पंथ के प्रति समर्पित हैं। शक्ति भर उसे चंदा देती हैं। उसके आयोजन स्थलों के निर्माण में बढ़-चढ़कर सक्रिय भूमिका निभाती हैं।
इन दो उदाहरणों से मुझे यही लगता रहा है कि अस्सी के दशक में धीरे-धीरे और नब्बे के दशक से बाढ़ की तरह उभरे चमक-दमक भरे मुनाफा राज ने ज्यादातर लोगों को अकेला और निहत्था बना दिया है। उनकी यह बौखलाहट धर्म और जाति की राजनीतिक गोलबंदियों में दिखाई पड़ती है, लेकिन इसका एक छोर पंथों के साथ उनके जुड़ाव में भी जाहिर हो रहा है। निश्चित रूप से परिधि के विश्लेषण के जरिये आप पंथों के केंद्र को नहीं समझ सकते। बिल्कुल संभव है कि वहां कोई ऐसा व्यक्ति या गिरोह बैठा हो, जो खुद उन्हीं धंधों, दुर्गुणों और दुर्व्यवसनों में लिप्त हो, जिनसे मुक्त या निर्लिप्त रहने की उसकी सलाह कई लोगों के जीवन में किसी न किसी अर्थ में मददगार साबित हो रही हो। यहां एक सलाह सबके लिए जरूरी है कि आपकी आस्था ऐसे किसी पंथ में है तो आप उसे जरूर निभाएं लेकिन आप पर आंख मूंदकर भरोसा करने वाले परिवार, खासकर बच्चों को अपना तर्क और विवेक विकसित करने दें, ताकि बाद में पछताने की गुंजाइश न बने।nslation
Chandra Bhushan
12 October 2017 · New Delhi, India
ध्यान कोई फ्री-साइज शर्ट तो नहीं
भारत में ध्यान और योग का बिजनस काफी बड़ा है। यहां अलग-अलग गुरुओं और बाबाओं के खेमे ध्यान और योग के नाम पर कई तरह की पद्धतियां अपनाकर चल रहे हैं लेकिन पूरी दुनिया में अभी ध्यान की तीन अलहदा पद्धतियों पर वैज्ञानिक अध्ययन जारी है। इन तीन पद्धतियों में पहली, सर्वप्रमुख और सभी ध्यान पद्धतियों का मूल है बुद्ध की विपश्यना पद्धति, जिसमें सांसों पर या अपने शरीर पर ध्यान केंद्रित करके मन को शांत किया जाता है।
इसके अलावा दो वैकल्पिक ध्यान पद्धतियों के नतीजे भी काफी अच्छे देखे जा रहे हैं, जिनमें एक है मन के स्तर पर दो व्यक्तियों की सहानुभूतिपूर्ण साझेदारी। इसमें विपश्यना या ऐसी ही किसी अन्य शांतिकारी ध्यान पद्धति से गुजरे हुए दो अनजान, अजनबी लोग एक-दूसरे की सबसे गहरी समस्याओं पर बात करते हैं और गहरे लगाव के साथ उन्हें समझने का प्रयास करते हैं। तीसरी पद्धति है किसी एक समस्या को अलग-अलग नजरियों से देखने का प्रयास करना। यह काम कोई एक व्यक्ति भी कर सकता है और एक समूह उस समस्या पर एक-दूसरे की सर्वथा अलग राय को समझदारी के साथ जानने की कोशिश भी कर सकता है। इस तीसरी पद्धति को अपनाने वाले लोग भी मन को शांत करने की प्रक्रिया से गुजर चुके होते हैं।
जर्मनी में एक अरसे से मूलभूत विज्ञानों पर काम कर रहे मैक्स प्लैंक इंस्टिट्यूट में ध्यान को लेकर चल रही रिसर्च में इसकी विभिन्न पद्धतियों से गुजर रहे लोगों के दिमाग का समय-समय पर एमआरआई किया जाता है और दर्ज किया जाता है कि उनके दिमाग के किस हिस्से पर इसका क्या प्रभाव पड़ रहा है। इसमें पाया गया है कि विपश्यना पद्धति निर्विवाद रूप से हर किसी के दिमाग को शांत करती है और उसे चीजों पर गहराई से सोचने की तरफ ले जाती है लेकिन बेचैनी की हालत में निकलने वाले हार्मोन कॉर्टिसॉल पर इसका प्रभाव मिला-जुला ही होता है। यानी आपकी दिमागी हलचलें और शोर तो कम हो जाता है लेकिन बेचैनी बनी रहती है।
गौर करने की बात है कि बाद की दोनों पद्धतियां अलग-अलग लोगों में कॉर्टिसॉल का स्तर 51 प्रतिशत तक नीचे ला देती हैं। एक अच्छे ध्यान विशेषज्ञ को यह पता होना चाहिए कि कौन सा व्यक्ति किस तरह की समस्या से गुजर रहा है। अगर उसकी समस्या अकेलखोरी से जुड़ी है, उसकी समस्याओं में सचमुच की साझेदारी करने वाला कोई नहीं है तो एक पार्टनर के साथ एक-दूसरे की समस्याओं की गहरी समझदारी कायम करने वाली ध्यान पद्धति उसके लिए बड़े काम की हो सकती है। लेकिन किसी व्यक्ति की समस्या अगर अलग-अलग नजरियों के टकराव से जुड़ी है, इसकी उत्पत्ति ऑफिस से लेकर घर तक कहीं भी हो सकती है, तो उसके लिए एक समस्या को कई नजरियों से देखने की ध्यान पद्धति बड़े काम की हो सकती है।
संक्षेप में कहें तो ध्यान विशेषज्ञ को खुद में एक अच्छा मनोचिकित्सक भी होना चाहिए। अगर उसके पास साइकायट्री की ऑपरेशनल ट्रेनिंग नहीं भी हो तो उसे लोगों की बात अच्छी तरह सुनने का तजुर्बा होना चाहिए ताकि कथित योग गुरुओं की तरह सभी को एक ही तरह के आसन और प्राणायाम सिखाकर वह उनकी स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ाने वाला न सिद्ध हो। उसे हर व्यक्ति के लिए ध्यान का अलग कोर्स बनाना चाहिए और ध्यान के विविध अंगों की अलग-अलग अवधियों और अनुक्रमों का सटीक पर्सन-स्पेसिफिक नुस्खा बनाने का प्रयास करना चाहिए।
Chandra Bhushan
26 April at 21:53 ·
प्रेस की आज़ादी में फिसड्डी भारत-पाक
पश्चिमी देशों की नजर में भारत और पाकिस्तान का जुड़वांपना 2005 से टूटना शुरू हुआ, जब अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्लू बुश ने भारत के साथ परमाणु करार किया और 1998 में भारत के लगभग साथ-साथ ही परमाणु परीक्षण करने वाले पाकिस्तान को धूप में सूखने के लिए छोड़ दिया। लेकिन अफसोस की बात है कि कुछ मामलों में यह जुड़वांपन अभी दोबारा लौटने लगा है।
मसलन, प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में इस साल भारत का स्थान 180 देशों की लिस्ट में 138वां और पाकिस्तान का इससे ठीक पीछे 139वां है। कम से कम इस मामले में तो दोनों देशों को आसपास भी नहीं होना चाहिए, क्योंकि भारत पिछले 71 वर्षों से लोकतंत्र है, जबकि पाकिस्तान में लोकतंत्र नाम की चिड़िया फौजी तानाशाहियों के लंबे दौरों के बीच थोड़ी-थोड़ी देर के लिए ही उड़ती रही है।
यह भी विचित्र है कि भारत के लोकतांत्रिक सत्ताशीर्ष की सक्रियता अभी प्रेस की आजादी के नाम पर जब-तब कुछेक फर्जी इंटरव्यू कराने तक ही सीमित है। एक विडंबना के तौर पर हाल में यह काम विदेशी धरती पर किसी पत्रकार के बजाय एक फिल्मी गीतकार को सौंप दिया गया था!
इसके उलट राजनीतिक अस्थिरता से गुजर रहे, जिहादी कट्टरपंथियों के प्रभाव वाले पाकिस्तान में फ़िलहाल इसका दूसरा छोर दिखाई पड़ रहा है। वहां बगावत की हद तक जाकर मानवाधिकारों और सत्ता विरोधी विचारों के लिए संघर्ष करने वाले पत्रकारों और कार्यकर्ताओं को पुरस्कृत किया जा रहा है।
पिछले महीने पाकिस्तानी हुकूमत ने बीबीसी के पाकिस्तान प्रभारी और ‘द केस ऑफ एक्सप्लोडिंग मैंगोज’ जैसी विस्फोटक गल्प रचना के लेखक मोहम्मद हनीफ और पूरी दुनिया में अपने मानवाधिकारवादी संघर्षों के लिए चर्चित हाल में ही दिवंगत हुई लेखक-कार्यकर्ता अस्मां जहांगीर को देश के तीसरे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार से सम्मानित किया।
इस प्रकरण को यहां उठाने के पीछे मेरा उद्देश्य पाकिस्तान की मौजूदा सरकार को लोकतांत्रिक मूल्यों की खान बताना नहीं है। हकीकत यह है कि वहां पाकिस्तान मुस्लिम लीग को जनादेश नवाज शरीफ के नाम पर ही मिला था, जिनको पनामा पेपर्स मामले में फंसने के बाद वहां की न्यायपालिका ने जीवन भर चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित कर दिया है।
शाहिद खाकान अब्बासी पाकिस्तान में नाम के ही प्रधानमंत्री हैं और अगले चुनाव में उनकी पार्टी के दोबारा सत्ता में लौटने की संभावना भी कम ही है। लेकिन शायद धार्मिक कट्टरपंथ और फौजी शासन की विद्रूपताओं को नए सिरे से चर्चा में लाने लाने के लिए अब्बासी सरकार ने मोहम्मद हनीफ और अस्मां जहांगीर को पुरस्कृत करने का फैसला किया।
भारत में मोदी सरकार के सामने ऐसी कोई मजबूरी नहीं है तो मीडिया के प्रति अपनी जिम्मेदारी वह भक्त पत्रकारों को पद्मश्री बांटकर निभा रही है। शौक से निभाए, उसका हक है। लेकिन जान पर खेलकर जमीनी रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों के जीवन और सम्मान की रक्षा के लिए न्यूनतम संवेदनशीलता दिखाना भी उसे इतना गैरजरूरी आखिर क्यों लगता रहा है?
बहरहाल, इस मौके का इस्तेमाल हम लोग 1977 से 1988 तक 11 साल पाकिस्तान के राष्ट्राध्यक्ष रहे जनरल जिया उल हक की विमान दुर्घटना में हुई संदिग्ध मौत के इर्दगिर्द रची गई ‘द केस ऑफ एक्सप्लोडिंग मैंगोज’ के दो दिलचस्प हिस्सों पर नजरसानी के लिए कर सकते हैं।
एक जगह वह नेत्रहीन लड़की जनरल जिया को बुरी से बुरी मौत का शाप देती है, जिसके साथ हुए सामूहिक बलात्कार के बाद जिया के लाए शरिया कानून के मुताबिक व्यभिचार के आरोप में उलटे उसे ही कोड़े लगाए जा रहे हैं! दूसरी जगह जनरल जिया अपने मातहत फौजी अफसरों के सामने जल्दी-जल्दी कुरान पढ़ते हुए फफक-फफक कर रो पड़ते हैं और अफसर उनकी नजर फिरते ही उनकी इस हरकत की व्याख्या में जुट जाते हैं।
एक कहता है, अपने पापों को लेकर वे शायद कुछ ज्यादा ही गंभीर हो गए हैं। दूसरे का अनुमान है कि सरकारी कामकाज का दबाव बहुत बढ़ गया है। तीसरा यह अटकल पेश करता है कि फर्स्ट लेडी (जनरल जिया की बीबी) ने आज शायद सुबह ही सुबह इन्हें कुछ ज्यादा ही बुरी तरह डांट पिला दी है!
Chandra Bhushan
2 May at 06:52 · Ghaziabad ·
इस महीने माफ करें
मई का महीना, शादियों का महीना, आंधियों का महीना। महीनों पहले ट्रेन का रिजर्वेशन कराकर कई मित्र जहां-तहां अटके पड़े हैं। मामला वेटिंग लिस्ट से खिसक कर आरएसी में आ जाए तो भी गनीमत है। कुछ मामले ऐसे भी सुनने में आ रहे हैं कि रिजर्वेशन के बावजूद बर्थ नहीं मिली। बीस घंटे का सफर वहां पहले से जमे लोगों के बीच जैसे-तैसे काट देना पड़ा। बक्से भर-भर सामान लिए हुए कोई बीबी-बच्चों समेत अपनी बहन, भतीजी, भांजी की शादी में जा रहा है। इंसानियत के नाते उसके लिए कुछ करने का फर्ज आप का भी बनता है। कम से कम उससे झगड़ा तो आप नहीं ही करना चाहेंगे।
शहरों में अब शादियों का कोई फेवरेट सीजन नहीं रह गया है। अपवाद जैसे कुछेक दिनों को छोड़कर पूरे साल ही बैंड बजने लगे हैं। फिर मई में शादियों की ऐसी आफत क्यों आई हुई है कि ट्रेनें हमारी पहुंच से बाहर हो गई हैं? मामला सीधे तौर पर खेती-किसानी से और उससे भी ज्यादा ग्रामीण उत्तरी भारत की आदतों से जुड़ा है। मध्य अप्रैल से मध्य मई के बीच रबी की फसलें कट चुकी होती हैं। आने-जाने का सुभीता हो जाता है। उपज घर में आ गई हो तो किसान का हौसला बढ़ा होता है। न भी आई हो तो बाजार में उधार आसानी से मिल जाता है। लिहाजा आधा अप्रैल, पूरी मई और खींच-तान कर आधा जून भी गांव-कस्बे में हर कोई बारात के मूड में रहता है।
आलमारी में एक जोड़ी इस्तरी कराए हुए कपड़े और पॉलिश मारे जूते। एक जेबी डायरी और एक पेन कि बंदा पढ़ा-लिखा सा लगे। साथ में न्यौते वाले अनगिनत लिफाफों समेत ढेरों क्षमायाचनाएं कि बहुत नजदीकी न्यौता पड़ जाने के चलते आपके उधर नहीं आ पाया भाई, मन में कोई मलाल न रखना। शहर में किसी को समझाना मुश्किल है कि गांव के गृहस्थों के लिए मई का महीना कितना टेंशन भरा होता है। दिन भर खड़ी धूप में उड़ते हुए भूसे के बीच फसल की कटाई-मंड़ाई, शाम को मह-मह महकते हुए किसी गैर-दरवाजे की शोभा बढ़ाना!
अपने बचपन के ऐसे कितने ही किस्से मुझे याद हैं, जब ऐसे ही महकते-चमकते लोग द्वारपूजा की तैयारी में थे। मिठाई-नमकीन की कागजी तश्तरियां और दूधिया-गुलाबी शर्बत सामने रखा जा चुका था। कि तभी बिना किसी चेतावनी के अचानक आंधी उठी। घंटे भर की भागाभागी, छिपाछिपी के बाद जब बिजली लौटी, या पेट्रोमैक्स का उजाला हुआ तो कौन घराती, कौन बराती, कौन दूल्हा और कौन तंबू-कनात उठाने वाला, कोई पहचान में ही नहीं आ रहा था। आज भी गांव की शादियों को लेकर कभी कोई टेढ़ी बात मन में उठती है तो इस रोमांच को याद कर मुस्कुरा देता हूं।
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अजीत 10 hrs · नफरत शब्द में बहुत आकर्षण है नफरत शब्द के इस्तेमाल के तरीके दिलचस्प हैं…
एक बहुत ही कॉमन वाक्य….नफरत इंसान को अंधा बना देती है,
ऐसी कहावत जिसने सैंकड़ो सालों के अनुभव से जन्म लिया है,
जब आप किसी इंसान, वस्तु, समाज या जगह से नफरत करतें हैं तब आप उसे उसके वास्तविक रूप में कभी नही समझ सकतें। नफरत आंखों के सामने पर्दा डाल देती है और तब आपको हकीकत नही दिखती बल्कि वो दिखता है जो नफरत के पूर्वाग्रह में आप देखना चाहतें हैं।
मुझ पर आरोप लगतें रहें हैं कि मैं इस्लाम से नफरत करता हूँ , जबकि इस बात में रत्ती भर सच्चाई नही,
मैं इस्लाम से नफरत नही करता, मैं इस्लाम को समझता हूं,
और समझने का दावा यूँ ही हवाबाजी नही, बचपन से आज तक का अनुभव है,
मेरा बचपन मुसलमानों के साथ कंचा, गिल्ली डंडा खेलते बीता है,
मैंने मुस्लिम बस्तियों की मानसिकता को जीया है,
मुसलमानों से नजदीकी लगभग हर व्यक्ति में मुस्लिम समाज के प्रति उदारता पैदा कर देती है सत्य और उदारता दो विपरीत ध्रुवों पर स्थित विचारधारायें है सत्य जरा भी उदार नही होता। वो जैसा होता है वैसा होता है। वो हकीकत के प्रति जरा भी सहिष्णु हो गया तो वो सत्य ना रहकर एक छलावा बन जाता है,
किसी का ड्राइवर मुसलमान है, किसी का रसोइया, किसी का पड़ोसी, किसी का दोस्त। किसी की आया मुस्लिम रही है,
मुझसे किसी ने पूछा, तुम इतनी नफरत ढोकर जी कैसे लेते हो ?
मैंने पलटकर सवाल किया आप मोहब्बत के दरिया में डूबकर सांसे कैसे ले पाते हो ?
सिर्फ नफरत ही नही, मोहब्बत भी इंसान को अंधा बना देती है,
कुछ को नफरत से अंधा बनाया है ,कुछ को मोहब्बत ने।
कोई नफरत या मोहब्बत ढोकर नही जीता, एक पूर्वाग्रह ढोकर जीता है,
बचपन की यादों में दर्ज है जब गांव की मुस्लिम महिलायें सिंदूर लगातीं थीं, चूड़ी पहनती थी। भजन कीर्तन में बैठती थीं,
हमारे गांव के इलियास हर साल दुर्गा पूजा के मैनेजर होते थे,
पर सच्चाई ये है कि तब वो मुसलमान नही थे,
वो अनपढ़ थे, उन्हें इल्म नही था उनके लिये काला अक्षर भैंस बराबर होता था। उन्हें बस इतना पता था वो मुसलमान है मुसलमान होना क्या होता है, वो ये नही जानते थे,
समय के साथ साथ मुस्लिम समाज मे शिक्षा का प्रतिशत बढ़ता गया,
वो जानने लगे कि कुरआन एक आसमानी किताब है, जिसमे लिखे शब्द अल्लाह के हैं सच्चा मुसलमान वही होता है जो अल्लाह के हुकुम को माने अल्लाह का हुकुम मानना मुस्लिम का कर्तव्य है,
मुस्लिम समाज शिक्षित हुआ तो उनकी 6 महीने की बच्चियां हिजाब में दिखने लगीं पजामा टखने से ऊपर उठ गया। मूंछे साफ हो गयी, दाढ़ी में बरगंडी लगने लगी, नल्ला, निहारी की खपत बढ़ने लगी नमाजी समय के पाबन्द रहने लगे इत्र का प्रयोग बढ़ गया,
और इस तरह एक काल्पनिक मुस्लिम संस्कृति ने उनकी भारतीय संस्कृति को कुचल दिया। जो अब अपनी अंतिम सांसे गिन रही है,
प्रेमचन्द की कहानियों का वो मुस्लिम किरदार झूठा नही था जो शहर में आकर मंदिर की सीढ़ियों को गमछे से साफ कर रहा था। वो हकीकत था पर वो सिर्फ नाम से मुस्लिम था, दिमाग से नही,
अब वो शिक्षित हो चुका है, अब वो जानता है मुसलमान होना क्या होता है अब उनका बच्चा भी जानता है कि मोदी से नफरत करनी है क्यों करनी है ये नही पता, क्योंकि उसका समाज ऐसा करता है इसलिये उसे भी ऐसा करना है…
कहने वाले कहेंगे मैं जहर उगल रहा हूँ पर सच अगर जहर लगे तो जहर सही पर ये नफरत नही ये हकीकत है जो जैसी है वैसी है किसी को क्रूर लगे तो उसके लिये कुछ हो नही सकता,
मैं नफरत पालकर नही जी रहा, आप मोहब्बत पालकर जी रहे हैं,
प्यार और नफरत दोनों ही अंधा कर देतीं हैं,
दोनों ही चीजें समाधान तक नही पहुंचाती,
समाधान बहुत जिद्दी होता है उसके तरीके बदल दिये जायें तो समाधान नही रह जाता समाधान तक पहुंचने के लिये इस नफरत और मुहब्बत से दूर हटना पड़ेगा, जैसा है वैसा स्वीकारना पड़ेगा….
अगर उसमे अत्याचार या भाईचारा ढूंढा जाने लगा तब वो बौद्धिक संतुष्टि बना रह जायेगा जैसा आज तक बना हुआ है…
साभार “सत्यकरण”
रितेश
3 hrs ·
अज़हर मसूद के नाम से आप सब परिचित होंगे ही ?? ….
ये वो ही कुख्यात आतंकी सरगना अज़हर मसूद है जिसको 1999 में अटल जी की सरकार के दौरान काठमांडू से भारत आ रहे विमान को हाईजैक कर के अपहरणकर्ता आतंकियों ने रिहा करवाया था …. ज्यादा जानकारी के लिए आप गूगल पे कांधार कांड लिख के सर्च कर सकते हैं ….
अब बड़ा सवाल ये है कि क्या वाकई अज़हर मसूद इतनी बड़ी तोप है या खतरनाक आतंकी है कि अपहरणकर्ताओं ने अपनी जान पर खेलकर उसे भारत की जेल से आज़ाद करवाया ?? ….
तो उसका एक ही जवाब है …. हाँ …. अज़हर मसूद बहुत बड़ा वाला तोपची है ….
लेकिन …. अज़हर मसूद खुद कभी रणक्षेत्र में तीर तलवार भाला बम गोला गोली रायफल स्टेनगन रॉकेट-लॉन्चर ले के जेहाद करने नहीं आता …. फियादीन बन कर आत्मघाती हमला करने नहीं आता …. इस्लाम और अल्लाह की राह में खुद को कुर्बान नहीं करता ….
अब आप पूछेंगे फिर अज़हर मसूद बड़ा वाला तोपची कैसे हुआ ?? ….
अब इसका जवाब भी समझ लीजिए ….
अज़हर मसूद इस्लामिक स्कॉलर्स/रिसर्चर्स है …. वो एक धाकड़ वक़्ता है …. वाक्पटु है …. दूसरे शब्दों में आप उसे इस्लाम का बौद्धिक योद्धा भी कह सकते हैं …. वो योद्धा जो तीर कमान मशीनगन स्टेनगन से ना लड़ के कलम स्याही लेखनी भाषणों और तकरीरों से लड़ता है ….
अज़हर मसूद आतंक की चलती फिरती फैक्ट्री है …. अज़हर मसूद के ज़हरीले भाषण और तकरीरें सुन पढ़ के पाकिस्तान सहित दुनियां भर के इस्लामिक कंट्रीज में हज़ारों लड़ाके खुद को इस्लाम अल्लाह की राह में मर मिटने/मिटाने और मज़हब के नाम पे कुर्बान होने के लिए तैयार हो जाते हैं …. जेहादी बन जाते हैं …. ज़िस्म पे बम बारूद बांध के आत्मघाती फियादीन बन जाते हैं ….
अज़हर मसूद अपनी ज़हरीली तकरीरों से युवाओं का ब्रेनवॉश कर देता है …. उनके दिमाग और नस नस में इस्लाम अल्लाह जेहाद काफ़िर कश्मीर हिंदुस्तान आज़ादी जैसे विचार भर देता है ….
सीमा पार पाकिस्तान से आये कई आतंकी जब भारत मे सरेंडर करते हैं तो उनका स्टेटमेंट होता है …. हमें पाकिस्तान में या अज़हर मसूद जैसे मौलानाओं द्वारा बताया गया कि भारत मे काफिरों/हिंदुओं द्वारा हमारे भाइयों (हमजात मुस्लिमों) पर अत्याचार किया जाता है …. ज़ुल्म हत्या बलात्कार किये जाते हैं …. लेकिन भारत में आने के बाद हमने देखा कि भारतीय मुसलमान पाकिस्तानी मुसलमानों से ज्यादा खुशहाल है ….
अकेला मौलाना मसूद अजहर ही दुनियां में या पाकिस्तान में बौद्धिक योद्धा नहीं है …. ऐसे हज़ारों बौद्धिक योद्धा दुनियां में है जो रणक्षेत्र में घातक हथियारों से लड़ने वाले योद्धाओं/जेहादियों से ज्यादा खतरनाक है ….
रणक्षेत्र में लड़ने वाला योद्धा तो 10-20-50 काफिरों या भारतीय सैनिकों को मार के खुद बेमौत मारा जाएगा …. लेकिन एक बौद्धिक योद्धा अपने बुद्धि कौशल से दुश्मन का हज़ारों लाखों की संख्या में जान और माल का नुकसान कर देगा ….
ज़ाकिर नाइक भी उसी श्रेणी का योद्धा था/है …. बौद्धिक योद्धा ….
पीस टी.वी. …. जाकिर नाइक फाउंडेशन …. सम्मिटस …. सेमिनारों में भाषणों तकरीरों के माध्यम से जाकिर ने हजारों लोगों का धर्मांतरण करवाया है …. वेदों सहित समस्त हिन्दू और ईसाई धर्म शास्त्रों श्लोकों की उसने गलत व्याख्या कर के इस्लामिक वर्ल्ड और युवाओं को गुमराह किया है …. कट्टरपंथी बनाया है ….
बांग्लादेश की राजधानी ढाका में हुए आतंकवादी हमले में पकड़े गए युवाओं ने तो बाकायदा कबूल किया है कि …. हमें ज़ाकिर नाइक का साहित्य पढ़कर …. उसके भाषण तकरीरें पढ़कर जेहाद करने की प्रेरणा मिली है ….
बौद्धिक लड़ाके किसी भी देश के हो किसी भी मज़हब के हो वो एक सैनिक से ज्यादा श्रेष्ठ और घातक होते हैं …. जहां सुई काम आनी होती है वहां तलवार का प्रयोग करना …. जहां कलम काम आनी होती वहां रायफल स्टेनगन मशीनगन का प्रयोग करना कोरी मूर्खता ही होगा ….
अब हमारे खेमे में क्या होता है ?? ….
हमारे बौद्धिक योद्धाओं को हम ही देशद्रोही गद्दार वामपन्थी कांग्रेसी कह के अपमानित तिरस्कृत करते हैं ….
मेरे सहित हम में से 95% लोगों को मालूम ही नहीं होता बौद्धिक युद्ध क्या होता ?? …. बौद्धिक योद्धा क्या होता ?? …. बौद्धिक युद्ध लड़ा कैसे जाता है ?? ….
जबकि वास्तविकता ये है कि एक बौद्धिक योद्धा को सिर्फ दूसरा बौद्धिक योद्धा ही परास्त कर सकता है ….
ना कि कोई सैनिक !!!! ….
रितेश
Vishnu gu
6 hrs · फिर मुसलमान भारत मे क्यों है
स्वतंत्रता दिवस पर यकक्ष प्रश्न-जब धर्म पर आधारित मुसलमानो ने पाकिस्तान बना लिया तो फिर भारत मे मुस्लमान क्यों हैं। मुसलमानों की आबादी के अनुसार भूमि भी मुसलमानो को दे दी गयी थी। सरदार पटेल ने कहा था की जब मुस्लमान धर्म के अनुसार पाकिस्तान बना लिया तो फिर भारत में मुस्लमान क्यों हैं, मुस्लिम फिर भारत के दुश्मन बनेगे, पटेल की बात सही साबित हुई। फिर मुस्लमान भारत के लिये समस्या और दुश्मन बने हैं। मुस्लमनो से भारत को मुक्ति चाहिये। स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर परन लेने की जरूरत है कि मुसलमानो से देश को मुक्ति दिलाएगें। क्योकि मुसलमान कभी देश्भक्त मही हो सकते। विष्णु गु ————————————————————————————————————–इसलिए हे क्योकि गाँधी नेहरू ने मज़बूरी में केवल विभाजन स्वीकार किया था वो भी मज़बूरी में टु नेशन थ्योरी नहीं , गाँधी नेहरू को पता था की यहाँ कोई टु नेशन हे ही नहीं भारतीय उपमहाद्वीप में दो लाख नेशन हे गाँधी नेहरू ना होते तो ना भारत होता ना पाक ना बगंलादेश यहाँ सेकड़ो कीड़े मकोड़े जैसे देश होते बाकी सही हे की मुसलमान देशभक्त नहीं हे वैसे ही जैसे खुद विष्णु गु ( व्यक्ति विशेष नहीं ) देशभक्त नहीं हे जैसे पाकिस्तान बनाने वाले ना पाकिस्तान भक्त थे ना इस्लामभक्त थे ये देशभक्ति धर्मभक्ति सब शोषणकारियो के टूल हे मुसलमान भी शोषणकारी हे शोषित भी हे पुरे उपमहाद्वीप में यही हाल हे
हर आदमी अपने फिल्ड के कामयाब लोगो से जलता हे कॉम्पिटिशन भी करता हे उन्हें गिराने की कोशिश भी करता हे मुल्लागर्दी भी अपवाद नहीं हे उपमहाद्वीप के बाकी बड़े बड़े मुल्ला जाकिर नायक से जलते हे वजह यही लगती हे की अंग्रेजी में माहिर होने के कारण पैसे वाले इलिट्स लोग जाकिर के प्रशंसक होंगे कमाल ये हे की शिव सेना ने कभी मराठी मुस्लिम जाकिर नाइक के खिलाफ मोर्चा नहीं खोला जबकि बाकी सारे मुल्ला जाकिर से चिढ़ते हे पाकिस्तान के बहुत बड़े ” हरामी ” आमिर लियाकत ने पिछले दिनों जाकिर के खिलाफ बहुत बड़ा हल्ला बोला था https://www.youtube.com/watch?v=7rwhSIPRuqA&t=268s