पिछले साल यानी 2013 में पिट्सबर्ग में जब एक डॉक्टर ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी थी तो भारत में रह रहीं बांग्लादेश की निर्वासित और विवादास्पद लेखिका तसलीमा नसरीन ने घटना का विरोध करते हुए इंटरनेट पर लिखा था कि मैं सुरक्षित महसूस करती हूं क्योंकि मैं पति या प्रेमी के साथ नहीं रहती हूं। लेकिन बीते 20 अक्तूबर को तसलीमा ने ट्विटर पर एक पुरुष के साथ अपनी तस्वीर पोस्ट की और उसे अपना प्रेमी बताया। तसलीमा ने ट्विटर पर लिखा- माइ बॉयफ्रेंड इज 20 ईयर्स यंगर दैन मी। इट्स कूल।
इस तस्वीर के ट्विटर पर आते ही साहित्य और साहित्य से अलग दुनिया में भी हलचल मच गई। लोग पूछने लगे कि आखिर गुप्त रूप से रह रही तसलीमा ने यह तस्वीर पोस्ट क्यों की और यह भी कि आखिर उनका यह नया प्रेमी कौन है? तसलीमा की सुरक्षा के मद्देनजर मीडिया ने भी ज्यादा खोजबीन नहीं की कि उनका यह नया प्रेमी कौन है। इसके बारे में धीरे.धीरे ही जानकारियां सामने आएंगी या फिर तसलीमा खुद लिखकर बताएंगी। जहां तक ट्विटर का सवाल है तो तसलीमा के ट्वीट करने के बाद ट्विटर पर टिप्पणियों को झड़ी लग गई। कुछ ट्वीट में तसलीमा को बधाई दी गई है तो कुछ में उनकी आलोचना करते हुए उन पर भद्दी टिप्पणियां भी की गईं।
किसी सज्जन ने ट्वीट किया- क्या वह वाकई आपसे 20 साल छोटा है ? लगता तो आपके जैसा ही है। बल्कि आप ही ज्यादा जवान लग रही हो।
एक अन्य ट्वीट में कहा गया- ये तो आपके बेटे जैसा लग रहा है।
एक और टिप्पणी इस तरह है- उसकी जन्मतिथि का प्रमाणपत्र अच्छी तरह से चेक कर लें। आपसे 20 साल बड़ा लग रहा है।
उल्लेखनीय है कि तसलीमा की उम्र इस समय 52 साल है। तसलीमा ने इस ट्वीट का जवाब भी दिया है और लिखा है कि उन्होंने चेक कर लिया है। तसलीमा ने एक और ट्वीट का जवाब दिया है। एक पुरुष ने उनसे पूछा है कि क्या उनके प्रेमी का खतना हो रखा है। इस पर तसलीमा का जवाब है- नहीं।
किसी ट्वीट में तसलीमा से पूछा गया है कि उन्होंने इस पुरुष को कैसा पटाया? किसी ने उन्हें मर्दखोर औरत करार दिया है। एक महिला ने जो लिखा है, उसे पढ़कर विश्वास नहीं होता कि कोई महिला भी ऐसा लिख सकती है। इस महिला ने लिखा है- देखो इस रांड के जलवे। इस उम्र में भी मजे ले रही है बुढ़िया। शर्म नहीं आती क्या ?
अन्य अनेक ट्वीट तो और भी भद्दे और शर्मनाक हैं। निश्चय ही तसलीमा ने भी वे ट्वीट देखे होंगे और उन्हें गुस्सा भी आया होगा, मगर क्या करें, सोशल मीडिया की ये दुनिया है ही ऐसी। ये काजल की कोठरी जैसी है, जिसमें आप अपने जोखिम पर ही कदम रख सकते हैं। इस दुनिया में आप काले हुए बिना रह नहीं सकते। यहां कोई रोक नहीं है। कोई कुछ भी कह सकता है। लेकिन तसलीमा शायद दूसरी ही मिट्टी की बनी महिला हैं। जिस महिला ने अपनी जान की परवाह नहीं की, वह इस तरह के ट्वीट से शायद ही विचलित होगी।
इससे पहले तसलीमा की जिंदगी में आए पुरुष
यहां बताते चलें कि तसलीमा के साथ दिख रहा यह अज्ञात पुरुष, ज्ञात रूप से तसलीमा की जिदंगी में आने वाला चौथा पुरुष है। सबसे पहले तसलीमा नसरीन ने 20 साल की उम्र में कवि रुद्र मोहम्मद शहीदुल्ला के साथ प्रेम किया और फिर 22 की उम्र में घरवालों को बताए बिना उसी से शादी भी की। रुद्र, तसलीमा के शहर मयमन सिंह नहीं बल्कि ढाका में रहता था। आमने-सामने मिलने से पहले दोनों के बीच काफी पत्राचार और प्रेमभरे शब्दों का आदान-प्रदान हो चुका था।
तसलीमा की आत्मकथा के अनुसार जब यह युवक पहली बार उनसे रूबरू मिलने ढाका आया तो दाढ़ी और लंबे बालों वाले रुद्र को देखकर वह आश्चर्य में पड़ गई थीं। यह मुलाकात एक परिचित के घर हुई थी। तसलीमा नानी के घर जाने का बहाना करके घर से निकलीं थीं। उनकी आत्मकथा से हमें पता चलता है कि उनके प्रेमी ने एक दिन ढाका से आकर बस शादी का एक अनुबंध पत्र उन्हें लाकर दे दिया और बिना पढ़े और देखे उस पर दस्तखत करने को कहा। बिना देखे-पढ़े दस्तखत करने को लेकर दोनों के बीच तकरार भी हुई, पर बाद में तसलीमा ने उस कागज पर दस्तखत कर दिए। बाद में तसलीमा घर छोड़कर रुद्र के पास चली गईं।
आत्मकथा से हमें यह भी पता चलता है कि पहले मिलन के दौरान ही उनके प्रेमी और पति रुद्र ने उन्हें यौन रोग दे दिया था। दरअसल उनके प्रेमी को सिफलिस की बीमारी थी, जिसमें यौनांग पर फुंसी और घाव बन जाते हैं। उनके प्रेमी का शादी से पहले कोठे की औरतों के पास जाना था, जो शादी के बाद भी जारी रहा। इसे लेकर भी तसलीमा ने आत्मकथा में दुख जाहिर किया है।
तसलीमा ने आत्मकथा में यह भी लिखा है कि पहली रात उन्हें बहुत तेज दर्द हुआ था और उनके दर्द की परवाह न करते हुए प्रेमी पति उनके शरीर में उतरने को बुरी तरह प्रयासरत था। तमाम कोशिशों के बावजूद उनका और प्रेमी का संपूर्ण मिलन नहीं हो पाया था। हालांकि दूसरी रात दोनों ने सफल संसर्ग किया था। इसके बाद जब रोग का पता लगा तो सवाल उठा कि इलाज कैसे हो? डॉक्टर होकर भी तसलीमा अपने शहर के अस्पताल में इलाज नहीं करवा सकीं क्योंकि इससे भेद खुलने का डर था। बाद में वह रुद्र के साथ ढाका गईं और वहां इलाज कराया।
तसलीमा और रूद्र का संबंध 1982 में बना और 1986 में दोनों में तलाक हो गया। तलाक का कारण इस पुरुष की गलत आदतें ही रहीं। इसके बाद तसलीमा ने पत्रकार और संपादक नइम उल इस्लाम खान से शादी की, लेकिन 1991 में दोनों का तलाक हो गया। तसलीमा ने उसी साल एक साप्ताहिक के संपादक मिनार महमूद से शादी कर ली, लेकिन अगले ही साल यानी 1992 में दोनों अलग हो गए, क्योंकि तब तक तसलीमा अपने लेखन के कारण बुरी तरह विवादों में घिर चुकी थीं। इसके अलावा रुढ़िवादी बांग्लादेशी समाज में अपने खुले और नारीवादी विचारों के कारण भी उनकी किसी भी पति से नहीं बनी। इनके अलावा भी तसलीमा के कुछ और पुरुषों से संबंधों की बातें कही जाती रही हैं, मगर उनकी कभी भी पुष्टि नहीं हो पाई, इसलिए यहां हम उनका जिक्र नहीं करेंगे।
तसलीमा की आत्मकथा से हमें पता चलता है कि वह बचपन में ही यानी महज पांच वर्ष की उम्र में यौन शोषण का शिकार हो गई थीं और ऐसा करने वाला शख्स और कोई नहींए उनके अपने सगे मामाओं में से एक था। इसी आत्मकथा से हमें यह भी पता चलता है कि मामा के बाद सात साल की उम्र में उनके सगे चाचा ने भी उनका यौन शोषण किया। तसलीमा ने अपनी आत्मकथा में इस बात का भी जिक्र किया है कि कैसे लड़के और पुरुष उन्हें छेड़ते थे और वह परेशान हो उठती थीं।
तसलीमा का जन्म 25 अगस्त 1962 को बांग्लादेश के मयमन सिंह शहर में रजब अली और इदुल आरा के घर में हुआ था। उनके पिता डॉक्टर थे, लिहाजा हाईस्कूल और इंटरमीडिए प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने भी एमबीबीएस की डिग्री ली और डॉक्टर की सरकारी नौकरी की। 1986 से 1993 तक उन्होंने डॉक्टर के रूप में गांवों में काम करने के अलावा मेडिकल कॉलेज और अस्पतालों के गायनेकोलॉजी और एनेस्थेशियोलॉजी विभागों में भी काम किया।
एक डॉक्टर के रूप में ज्यादातर उनका सामना ऐसी लड़कियों से होता था, जो रेप का शिकार होकर परीक्षण के लिए आती थीं। इसके अलावा डिलीवरी रूम में जब लड़की होने पर महिलाएं रोती थीं तो इससे भी तसलीमा हिल जाती थीं। शायद इससे भी उनके लेखन को एक दिशा मिली। 1993 में लेखन से उठे भारी ववादों के बाद उनकी डॉक्टरी की नौकरी जाती रही।
तसलीमा नसरीन ने चार उपन्यास, ढेरों कविताएं, निबंध और आत्मकथा की सात पुस्तकें लिखी हैं। उनकी 30 से ज्यादा किताबों में से ज्यादातर का हिंदी समेत दुनिया की अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। उनके उपन्यासों में “लज्जा” सबसे ज्यादा चर्चित हुआ। “फ्रेंच लवर” भी काफी पढ़ा गया। आत्मकथा में “द्विखंडितो” को बहुत चर्चा मिली। इन पुस्तकों में उनके नारीवाद, इस्लाम और प्रगतिशीलता को लेकर व्यक्त विचारों के कारण बांग्लादेश में उनके खिलाफ फतवा दे दिया गया।
“लज्जा” में उन्होंने बांग्लादेश में गैर मुसलिमों पर ढाए गए जुल्मों की चर्चा की तो वहां के कट्टरपंथी उनसे बुरी तरह नाराज हो गए। हालांकि तटस्थ रहे लोगों ने भी कहा कि तसलीमा इस किताब में गैर मुसलिम औरतों पर ढाए जुल्म की ही बात करतीं तो ठीक था, लेकिन उन्होंने किताब में एक गैर मुसलिम औरत के साथ किए गए रेप का बहुत ही विस्तृत ब्योरा देकर ठीक नहीं किया।
तसलीमा ने लेखन 13 साल की उम्र से ही शुरू कर दिया था। 1986 तक उनके दो कविता संग्रह छप चुके थे और 1989 तक अखबारों, पत्रिकाओं में महिला अधिकारों संबंधी लेखन ने उन्हें काफी लोकप्रिय बना दिया था। 1990 से उनके खिलाफ अभियान शुरू हो गया, जो 1993 में “लज्जा” के प्रकाशन पर अपने चरम पर पहुंच गया। एक पुस्तक मेले में उन पर हमला भी हुआ। उनके खिलाफ देशभर में हड़ताल हुई। उन्हें फांसी पर लटकाने की मांग की गई। उनके खिलाफ केस दर्ज हुआ और अंततः इस सबका अंत उनके बांग्लादेश से निष्कासन के रूप में हुआ।
जहां तक उनके परिजनों की प्रतिक्रिया का सवाल है तो तसलीमा के पिता रजब अली ने एक साक्षात्कार में कहा था कि उन्हें अपनी बेटी और उसके साहस पर गर्व है। उसने सच ही बयान किया है। वह सच्चाई के साथ खड़ी हुई है और अगर वह मारी जाएगी तो उसकी मौत एक सम्माननीय मौत होगी।
जिंदगी को खतरा देख्र तसलीमा बांग्लादेश से निकल गईं। उन्होंने कुछ दिन स्वीडन, जर्मनी, अमेरिका और फ्रांस में भी निर्वासित जीवन जिया। देश से बाहर निकलने के बाद तसलीमा नसरीन को यूरोप के अलग-अलग देशों में अनेक सम्मान और पुरस्कार मिले। 1998 में वह तीन महीने के लिए बांग्लादेश जा सकीं, जब उनकी मां बीमार हुई और इसी अवधि में उनकी मां की मौत हो गई। हत्या की धमकियों के बीच उन्हें फिर देश छोड़ना पड़ा। 2000 में उन्हें भारत का वीजा मिल गया तो वह भारत आ गईं। 2002 में उनके मरणासन्न पिता को देखने के लिए भी उन्हें बांग्लादेश जाने की अनुमति नहीं मिली। बेटी को देखे बिना ही उनके पिता की मौत हो गई।
2004 में उनकी भागदौड़ कुछ कम हुई और वह कोलकाता में सेटल हो गईं। हालांकि 2007 में कोलकाता से भी उन्हें निकलना पड़ा और तब दिल्ली में छुपकर रहीं। 2009 के चुनावों में लाभ पाने के मद्देनजर 2008 में भारत सरकार ने उन्हें देश छोड़ने के लिए कहा। 2009 मेें तसलीमा को भारत छोड़ना पड़ा। छह महीने पेरिस में रहकर वह फिर लौटीं और कुछ शर्तों के साथ उन्हें रहने की अनुमति मिली। उन्होंने भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया है, लेकिन भारत सरकार ने अभी तक उस पर कोई फैसला नहीं लिया है। पिछले दिनों वे इस सिलसिल में दिल्ली में गृहमंत्री राजनाथ सिंह से भी मिली थीं।
कुछ जानकारों का कहना है कि तसलीमा बहुत दिनों से इधर-उधर भागी-भागी फिर रही थीं। जबरदस्त एकाकीपन के बीच वे बहुत दिनों से किसी पुरुष मित्र की तलाश कर रही थीं। संभवतः अब जब उनकी तलाश पूरी हो गई है तो शायद उनसे रहा नहीं गया और उन्होंने नए प्रेमी के साथ अपनी तस्वीर को ट्विटर पर पोस्ट कर दिया।
वैसे ट्विटर से अलग इंटरनेट पर की गई एक टिप्पणी विचारणीय है। इसमें किसी सज्जन ने तसलीमा से सवाल किया है कि जब तसलीमा यह कहती हैं कि पॉलीगेमी यानी बहुविवाह, रेप का ही नया संस्करण है तो ऐसे में अपनी जिंदगी में जल्दी-जल्दी प्रेमी बदलने को वे क्या नाम देंगी?
जिसे नास्तिक होना हो होए मगर नास्तिकता को कभी भी बढ़ावा नहीं देना चाहिए नास्तिकता भी एक कटट्रपंथ ही हे नास्तिकता का मतलब हे खासकर पारिवारिक अराजकता तस्लीमा रश्दी और बहुत से लेखको का जीवन इसकी मिसाल हे एक बड़े नास्तिक भारतीय लेखक की लेखिका पत्नी के संस्मरण पढ़ रहा था उन्होंने बताया की वो तो नौकरी करती थी तब महान लेखक साहब ने साठ के आज से सौ गुना शांत जीवन के समय में भी अपनी नवजात एकलौती बेटी को भी सँभालने की जिम्मेवारी से पीठ दिखा दी थी और अपनी औलाद को रिश्तेदारो से पलवाया वो भी दिल्ली से बहुत दूर कलकत्ता में . इसलिए ट्रस्ट दा गॉड , ईश्वर पर विशवास करो
ek tawaif lekhak aur kiya kar sakti hai.
jise allah ka dar na ho woh aur kiya kar sakti hai. india walo ne use ek bada lekhak bana diya.
“हास्यास्पद”
वही कौम जो भारत में असहष्णुता की बात करती है,वही तस्लीमा के जिक्रभर से असहष्णु हो जाते हैं। भरत सरकार को उन्हें ऩागरिकता दे देनी चाहिये…तब सहष्णु होने की बारी उनकी होगी…
तस्लीमा नसरीन के भारतीय नागरिकता के सम्बन्ध में कोई विशेष खबर नहीं मिल पायी है अगर उनका आवेदन विचाराधीन है तो भारतीय संविधान की गरिमा के तहत मानवता एवं विलक्षणता के आधार पर उसे स्वीकृति मिलनी चाहिए